गणतंत्र में प्रजा में शक्ति निहित होती है

1857 ईस्वी के पूर्व से ही प्रचंड रूप से जाज्वल्यमान हो रही भारतीय स्वाधीनता संग्राम के यज्ञकुंड में क्रांतिकारी व अहिंसा समर्थक स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा निरंतर आहुति दिए जाने से चतुर्दिक आंग्ल शासकों के विरुद्ध माहौल गरमाया हुआ था। ऐसे राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में 31 दिसम्बर सन 1929 के मध्‍य रात्रि में राष्‍ट्र को स्वतंत्र बनाने की पहल करते हुए लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हु‌आ, जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की ग‌ई कि यदि अंग्रेज़ सरकार 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का पद (डोमीनियन स्टेटस) नहीं प्रदान करेगी, तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा लेकिन 26 जनवरी 1930 तक अंग्रेज़ सरकार ने भारत को उपनिवेश का पद देने के संबंध में कुछ नहीं किया तो कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 के दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था। इस दिन प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाए जाने का सर्वसम्मति से एक महत्त्वपूर्ण फैसला लिया गया। इस दिन सभी स्वतंत्रता सेनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे। इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा।
 
15 अगस्त 1947 में अंग्रेजों ने भारत की सत्ता की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथों में दे दी लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति की आकांक्षा में स्वतंत्रता के पूर्व ब्रिटिश काल में ही संविधान निर्माण के लिए विचार -विमर्श, बैठक आदि का कार्य 9 दिसम्बर 1946 से ही आरंभ कर दिया गया था। भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। डॉ० भीमराव अम्बेडकर, जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। संविधान निर्माण में कुल 22 समितियाँ थी जिसमें प्रारूप समिति अर्थात ड्राफ्टिंग कमेटी सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण समिति थी। इस समिति का कार्य संपूर्ण संविधान लिखना अर्थात प्रारूप निर्माण करना था। प्रारूप समिति के अध्यक्ष विधिवेत्ता डॉ० भीमराव आंबेडकर थे। संविधान सभा ने संविधान निर्माण के समय कुल 114 दिन बैठक की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। अनेक सुधारों और बदलावों के बाद प्रारूप समिति ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में भारतीय संविधान का निर्माण किया और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 26 नवम्बर 1949 को भारत का संविधान सुपूर्द किया। एक स्वतन्त्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान को अपनाया गया। इसलिए 26 नवम्बर को भारत में संविधान दिवस के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता है।

24 जनवरी 1950 को सभा के 284 सदस्यों ने संविधान की दो हस्तलिखित कॉपियों पर हस्ताक्षर किये। और इसके दो दिन बाद 26 जनवरी 1950 को भारत सरकार अधिनियम 1935 को हटाकर 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन लगाकर बनाए गए भारत के संविधान को भारत में लागू किया गया था। और भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया गया। वस्तुतः 26 जनवरी 1950 को भारत में भारतीय शासन और कानून व्यवस्था लागू हुई। 26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के लिए इसी दिन संविधान निर्मात्री सभा (कांस्टीट्यूएंट असेंबली) द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई। इस प्रकार कभी भारत का पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाने वाला 26 जनवरी का दिन भारत का गणतंत्र दिवस बन गया। इसे लागू करने के लिए 26 जनवरी की तिथि को इसलिए चुना गया था, क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली तथा 21 तोपों की सलामी के बाद इर्विन स्‍टेडियम में भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज तिरंगा को फहराकर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्‍म की घो‍षणा की थी। अंग्रेजों के शासनकाल से छुटकारा पाने के 894 दिन बाद हमारा देश स्‍वतंत्र राष्ट्र बना। तब से आज तक हर वर्ष सम्पूर्ण राष्‍ट्र में बड़े गर्व और हर्षोल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। तदनंतर स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। यही वह दिन था जब 1965 में हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।

 

 गणराज्य में गण का अर्थ जनता और राज्य का अर्थ देश है। जिस देश के शासनतन्त्र में सैद्धान्तिक रूप से देश के सर्वोच्च पद पर आम जनता में से कोई भी व्यक्ति पदासीन हो सकता है, गणराज्य कहलाता है। इस तरह के शासनतन्त्र को गणतन्त्र अर्थात पूरी जनता द्वारा नियंत्रित प्रणाली कहा जाता है। लोकतंत्र अथवा प्रजातंत्र इससे अलग होता है। लोकतन्त्र वह  शासनतन्त्र होता है, जहाँ वास्तव में सामान्य जनता या उसके बहुमत की इच्छा से शासन चलता है। आज विश्व के अधिकांश देश गणराज्य के साथ-साथ लोकतान्त्रिक भी हैं। भारत स्वयः एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। 2024 में 26 जनवरी को भारत का 74वां गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन हर भारतीय अपने देश के लिए प्राण देने वाले अमर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं। विद्यालयों, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारत के राष्ट्रपति दिल्ली के राजपथ पर भारतीय ध्वज फहराते हैं। राजधानी दिल्ली में बहुत सारे आकर्षक और मनमोहक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। देश के हर कोने में स्थान- स्थान पर ध्वजवन्दन होता है और कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विश्व भर में फैले हुए भारतीय मूल के लोग तथा भारत के दूतावास भी गणतंत्र दिवस को हर्षोल्लास के साथ मनातें हैं। भारत के हर कोने कोने में देश के प्रति एक नई उमंग देखने को मिलती है ।
 

यह एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सत्य है कि भारत न केवल दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि लोकतंत्र की जननी भी है। प्राचीन भारत में लोकतंत्र और गणतंत्रवाद के आद्य रूपों के अस्तित्व के अनेक प्रमाण हैं। प्राचीन भारत में गणतांत्रिक शासन व्यवस्था में दो प्रकार की शासन व्यवस्थाएँ विद्यमान थीं- राजशाही और गणतंत्र। राजशाही में राजा निर्वाचित होता था। इसे लोकतंत्र का प्रारंभ माना जाता है। गणतंत्र में राजा या सम्राट के बजाय शक्ति संकेंद्रण एक परिषद या सभा में निहित होती थी। इस सभा की सदस्यता जन्म के बजाय कर्म सिद्धांत पर आधारित थी और इसमें ऐसे लोग शामिल होते थे, जिन्होंने अपने कार्यों से खुद को प्रतिष्ठित किया था। विधायिकाओं की आधुनिक द्विसदनीय प्रणाली का भी एक संकेत प्राचीन संस्था सभा के रूप में प्रतिष्ठित थी, जिसमें सामान्य लोगों का प्रतिनिधित्व होता था। नीति, सैन्य मामलों और सभी को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करने के लिये विदथ का उल्लेख ऋग्वेद में सौ से अधिक बार किया गया है। इन चर्चाओं में महिलाएँ और पुरुष दोनों हिस्सा लेते थे। महाभारत के शांति पर्व के अध्याय 107/108 में भारत में गण कहे जाने वाले गणराज्यों की विशेषताओं के बारे में विस्तृत वर्णन करते हुए कहा गया है कि जब एक गणतंत्र के लोगों में एकता होती है, तो गणतंत्र शक्तिशाली हो जाता है और उसके लोग समृद्ध हो जाते हैं तथा आंतरिक संघर्षों की स्थिति में वे नष्ट हो जाते हैं।