पिरामिडों की मानव जीवन में उपयोगिता

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आदिकाल से चला आ रहा, पिरामिडों का प्रचलन आज भी अपने विभिन्न रंग-रूपों में दिखाई देता है। मौजूदा समय में पिरामिडों के बढ़ते महत्त्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आज के वैज्ञानिक युग में भी लोग पिरामिडों  के चमत्कारी गुणांे से काफी प्रभावित हो रहे हैं। विशेष रूप से पश्चिमी देश इसकी गिरफ्त में दिन-प्रतिदिन पड़ते जा रहे हैं। हमारे यहां भी इसका प्रचलन विभिन्न रूप में बढ़ता ही जा रहा है।
भारतीय वास्तुकला का पिरामिडों से सदियों पुराना रिश्ता रहा है जो विभिन्न कलाकृतियों में अपने को समाहित किये हुये हैं। प्राचीन समय की कलाकृतियों के साथ-साथ पूजा स्थल की आकृति विशेष रूप से पिरामिडों से प्रभावित थी। पिरामिड दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘पिरा़मिड’ में पिरा का अर्थ अग्नि से है जबकि मिड का अर्थ मध्य होता है। दोनों का संयुक्त शाब्दिक अर्थ अग्नि का मध्य अर्थात् शक्ति का केन्द्र हुआ। इससे पता चलता है कि पिरामिड  अग्नि का मध्य अर्थात् शक्ति का केन्द्र हुआ। इससे पता चलता है कि पिरामिड शक्ति संचार के गुण से मुक्त है।
अमूमन यह देखा जाता है कि पिरामिड की आकृति तिकोनाकार होती है। त्रिकोण का हमारे जीवन में विशेष महत्व है क्योंकि त्रिकोण स्थिरता और सुख-समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। चार त्रिकोणों से बना पिरामिड ऊर्जा का एक शक्तिशाली यंत्रा बन जाता है। पिरामिड से निकलने वाली यह ऊर्जा ईश्वरीय ऊर्जा का प्रतीेक मानी जाती है। यही वजह है कि मन्दिरों, मस्जिदों एवं गुरूद्वारों के गोल गुम्बद भी पिरामिड रूप के बने होते हैं। पिरामिडों के विभिन्न में पूजा स्थलों मंे प्रवेश से वहां असीम ऊर्जा का संचार होता है जिससे उस स्थल पर जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर इन ऊर्जाओं का समावेश होता है और व्यक्ति वहां पर एक नई स्फूर्ति का अनुभव करता है।
ज्योतिशास्त्रा के अनुसार भी यंत्रा सुख-समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। इन यंत्रों की आकृति भी पिरामिड सी होती है। आजकल तांबे व स्फटिक के बने पिरामिड यंत्रा लोगों में ज्यादा लोकप्रिय हो रहं हैं। इसकी वजह इन धातुओं में पिरामिडीय आकृति का समावेश होना है।
पिरामिड यंत्रा को सदैव कंपास ‘दिकसूची’ के अनुसार ही रखा जाता है जिसका एक कोना उत्तर की ओर हो। पिरामिडों के एक तिहाई भाग में ईश्वरीय ऊर्जा का ज्यादा प्रभाव होता है जिसका बहाव क्रमश नीचे को होता है। ईश्वरीय ऊर्जा के नीचे बहाव से नकारात्मक ऊर्जा धीरे -धीरे बाहर निकल जाती है और उसका स्थान सकारात्मक ऊर्जा ले लेती है। इसी वजह से पूजा स्थल पर माथा टेकने से यह ऊर्जा व्यक्ति के अन्दर जाती है।
आजकल देखा जा रहा है कि पश्चिमी देशों में पिरामिड युक्त भवनों का प्रचलन बड़ी तेजी से हो रहा है। इसके पीछे पिरामिडों के अपने विशेष गुण के चलते सुख-समृद्धि की लालसा होती हैं। भारत भी  इससे अछूता नहीं है। यहां भी भवनों, सार्वजनिक स्थलों एवं महत्त्वपूर्ण इमारतों के निर्माण के समय पिरामिडों की आकृति को ध्यान में रखकर ही बनाया जाता है। मौजूदा समय की भौतिकवादी सोच भी इसके प्रचलन में उत्तरोतर सहयोग कर रही है। 
 

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