आत्मविश्वास बनाए रखें

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हमारे बीच बहुत कुछ ऐसा घटता है कि हम जीवन की कठिनाइयों को लेकर , तमाम नकारात्मक परिस्थितियों को लेकर बहुत जल्द ही हार मान जाते हैं और अपने व अपनों के आत्मविश्वास को बहुत जल्द खो बैठते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि घर – परिवार में अशांति व नकारात्मक ऊर्जा घर कर जाती है।


हम लोग आम तौर पर देखते हैं कि घर में किसी के बीमार व कमजोर हो जाने पर हम शुरुआत में ही हार मान जाते हैं। मरीज के आत्मविश्वास व शारीरिक – मानसिक पीड़ा का ख्याल भी नहीं रखते। हम यह भूल जाते हैं कि यह विज्ञान का युग है और हमारे सामने बहुत सारे छोटे – बड़े विकल्प हैं। सरकारी अस्पतालों में भी आज – कल बहुत सारी सुविधाएं मिलने लगी हैं। आम मरीज के लिए बहुत सारी योजनाएं भी हैं। ये योजनाएं संकट काल में हमारी मदद करती हैं। इन सब से बढ़कर एक बात यह है कि जीवन में संघर्ष की बहुत ही अहम भूमिका है। हमारी बुद्धिमत्ता, हमारी मानसिक क्षमता, परिवार के प्रति हमारी जवाबदेही व समर्पण भावना, हमारी इच्छा शक्ति, इन सब बातों की परीक्षा तो तभी हो जाती है जब हम संकट से घिर जाते हैं। अनेक बार तो हमारे पास आर्थिक संसाधन तो होते हैं, मगर हम माता – पिता, भाई – बहन या अन्य परिजनों की अपेक्षा अपनी पत्नी व बच्चों पर खर्च करने पर जोर देते हैं व बीमार को राम भरोसे छोड़ देते या बहुत सारी खरी – खोटी सुनाते हुए इलाज करवाते हैं, जिससे मरीज मानसिक रूप से कुंद व दबा हुआ बन जाता है। वह मौत के करीब पहुंच जाता है।


ऐसी ही कुंठित मानसिकता तब देखने को मिलती है जब बच्चे की पढ़ाई में व्यवधान आ जाता है। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा अमूक – अमूक बच्चों की तरह चतुर और बुद्धिमान साबित हो। मगर यह ईश्वर की लीला ही है कि सब को एक समान विवेक नहीं देता। कुछ माता-पिता अपने बच्चे से दूसरे के बच्चों का लीला – गान करते रहते हैं। इससे बच्चा पढ़ाई में तो कमजोर हो ही जाता है , साथ ही साथ उनका आत्मविश्वास गिर जाता है और उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है , उनकी जीवन शैली अनियमित हो जाती है , स्वास्थ्य भी बिगड़ जाता है।  और एक बात यह है कि आजकल किसी को सही समय पर सही नौकरी मिल जाए ऐसा नहीं होता। अगर किसी को मिल जाए तो यह उसका सौभाग्य होता है , इस आनंद में यह भूल जाता है कि उससे भी ज्यादा ज्ञानी व विवेकवान व्यक्ति बैठा – बैठा खाक छान रहा है , इंटरव्यू पर इंटरव्यू दे रहा है , मगर रास्ता नहीं मिल रहा है। नौकरी के नाम पर लाखों की रिश्वत मांगी जाती है , महिलाओं के साथ यौन उत्पीडि़त की समस्या भी काफी बढ़ रही है। लेकिन माता – पिता व परिजन इस सच्चाई को ध्यान में नहीं रखते , वे उलाहनाएं देते रहते हैं और लोगों के बीच जाकर अपनों की असफलताओं का गाना गाते फिरते हैं। इससे एक संघर्षरत व्यक्ति का आत्मविश्वास डिगने लगता है।


इस कारण ऐसी परिस्थिति में यह तो हरगिज नहीं होना चाहिए कि माता – पिता व परिजन मरीज , शिक्षार्थी व नौकरी तलाशने वालों को अपशब्द कहें, उनका अपमान करें व उनके आत्मसम्मान पर कुठाराघात करें।


माता – पिता व परिजनों को अपनी सहन क्षमता को बनाए रखना चाहिए। उम्मीद लेकर संघर्ष करने वाले आश्रितों के साथ सकारात्मक रूप से पेश आना चाहिए। न अपने आत्मविश्वास को डिगाना चाहिए न संघर्ष करने वाले के आत्मविश्वास को। आत्मविश्वास ही वह कुंजी है जो हवा – पानी के बाद सबसे बड़ा स्थान रखती है। किसी से उम्मीद करना बुरी बात नहीं , बल्कि उसके साथ चलकर , उसकी ताकत बनकर उसे मंजिल तक पहुंचा देना बहुत बड़ी बात है।


अन्यथा रिश्ते – नाते टूट जाते हैं और पारिवारिक स्नेह व सौहार्द समाप्त हो जाते हैं।
 जब ईश्वर ने जन्म दिया तो दो दानों की व्यवस्था वह करेगा ही , भाग्य में जो लिखा है , वह भुगतेगा ही , मगर ये रिश्ते – नाते बड़े संजीदा व नाजुक होते हैं , इन्हें टूटने से बचाने में ही अपनी कारीगरी है , धैर्यपूर्वक रहने का समाधान है। और इससे बढ़कर सोची जाने वाली बात यह है कि हमारी वजह से , हमारे सहयोग से कोई जीतता है तो बहुत बड़ी गरिमा का विषय है।