माता-पिता के प्रति ऐसा व्यवहार करो कि भावी जमाने और पीढिय़ों को नाज हो। माता-पिता की गोद में ही संसार की सारी मंजिलें हैं। भले ही हमारी मंजिलों में मां-बाप के लिए जगह न हो। मां अगर धरती तो पिता आकाश है। जिन्दगी इसके बिना वनवास है। जगत में मां का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा है।
माता-पिता को रुलाकर कोई प्रसन्न नहीं रह सकता है। उनकी गोद में ही सारे संसार की मंजिलें हैं। माता-पिता के असीम उपकारों का बदला अपनी चमड़ी की जूतियां उन्हें पहना देने पर भी चुकाया नहीं जा सकता। जन्मदाता के आशीर्वाद प्राप्त कर लेने पर ही हम उन्नत हो सकते हैं। माता-पिता संपूर्ण शास्त्र हैं। माता-पिता की आंखों में दो बार ऐसे आंसू आते हैं जिनका वर्णन शब्दों में पूरा नहीं होता। एक बार बिटिया घर से विदा होती है तब और दूसरी बार जब बेटा मुंह मोड़ता है तब। बचपन में पुत्र भोजन नहीं करता था तब परेशान मां रो देती थी कि बेटा खाता नहीं है। ऐसे हालात देखकर कोई कैसे विश्वास करेगा कि यही वही राम और श्रवण मातृ-पितृ भक्त की भूमि है। माता-पिता के प्रति ऐसा व्यवहार करो कि हमारे आने वाले जमाने और आने वाली पीढ़ी को उस पर नाज हो। एक पुत्र को पाकर भी श्रवण की मां मुस्कराती है और 100 पुत्रों को पाकर भी गांधारी आंसू बहाती है। माता-पिता के बिना हमारा घर और बिना घर-बार भटकते माता-पिता। ये दोनों संतति के बहुत बड़े दुर्भाग्य हैं। किसी को घर मिला हिस्से में तो किसी को दुकान आयी, मैं घर में सबसे छोटा था तो मेरे हिस्से में मां आयी। जिनके पास मां-बाप हैं तो सब कुछ है। मां है तो जीवन का आनन्द है। माता-पिता का प्यार एवं दुलार की गहराई का अनुमान लगाना संभव नहीं है। जो व्यक्ति माता-पिता का भक्त होता है वही व्यक्ति परमात्मा की भक्ति कर सकता है। मां कभी मरती नहीं है, वह अजर अमर है। माता-पिता स्मरणीय एवं पूजनीय हैं। पिता दुनिया दिखाने का अहसास है, पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है, पिता का नहीं तो बचपन अनाथ है। पिता का कभी अपमान नहीं करो बल्कि अभिमान करो। प्राण का संबंध होते हैं पिता रक्त का अनुबंध होते हैं पिता। विश्व के इस चक्रव्यूह में, शक्ति के भुजबंध होते हैं पिता। पिता का साथ ईश्वर के दिये गये सर्वोत्तम वरदानों में से एक है। पिता प्रेम की पारावार व वट वृक्ष है।
पिता की मार हमें अनुशासन सिखाती है, आवाज हमें सजग रखती है, स्पर्श हमें शक्ति देता है। पिता का प्यार बच्चे को दुनिया में प्रखर व्यक्तित्व पाने की पहली सीढ़ी है। माता-पिता का ऋण कोई भी पुत्र कभी नहीं चुका सकता है तथा उनका प्रेम व समर्पण सदैव अप्रत्यक्ष होता है। इसीलिए माता-पिता देव समान है।
