वानस्पति भाषा में तुलसी का वैज्ञानिक नाम ”ओसिमम सैक्टमÓÓ है। यह ”लेबियेटीÓÓ कुल का पादप है। यह पौधा भारतवर्ष में प्राय: सभी स्थानों पर मिलता है। इसे हिन्दी में ”तुलसीÓÓ, ”वृन्दाÓÓ आदि नामों से पुकारा जाता है। बंगाली में इसे ”तुलसीÓÓ, ”काली तुलसीÓÓ, पंजाबी में ”तुलसीÓÓ, मराठी में ”तुलासाÓÓ, गुजराती में ”तालासीÓÓ, तमिल में ”तुलसीÓÓ, तेलगू में ”तुलासीÓÓ, या ”कृष्णा तुलसीÓÓ, कन्नड़ में ”तुलाशी-गिडाÓÓ, मलयालम में ”कृष्णा तुलसीÓÓ, या ”तुन्तपुÓÓ, संस्कृत में ”वृन्दाÓÓ, ”मंजरीÓÓ, ”परनासाÓÓ, ”सुवास तुलसीÓÓ आदि नामों से पुकारा या माना जाता है।
यह पौधा भारत भर में पूजा जाता है एवं मन्दिरों तथा घरों के आंगन में लगाया जाता है। कृषि में इसकी मुख्यत: दो नस्लेें पाई जाती है- (१) हरी नस्ल (श्री तुलसी) तथा (२) कृष्ण तुलसी जिसकी रंगत बैंगनी सी होती है।
तुलसी प्राय: हर हिन्दू परिवार में पायी जाती है। संस्कृत ग्रंथों में इसे प्राय: सभी प्रकार के कष्टïों का निवारण करने वाला पवित्र पौधा कहा गया है। इसे कृष्ण एवं विष्णु के रूप में मानते हैं। इसकी पत्तियों को चरणामृत या पंचामृत (एक प्रकार का द्रव्य प्रसाद जिसमें कच्चा दूध, दही, घी, शहद व शक्कर को मिलाकर भगवान के अर्पण किया जाता है) में तथा विभिन्न पूजन सामग्री में उपयोग किया जाता है। अंतिम संस्कार के समय इसकी टहनियों एवं पत्तियों की आहुति देना पवित्र एवं शुद्घ माना गया है। इसके अतिरिक्त इसको विभिन्न रूपों में महत्ता ”वृत कौमुदीÓÓ, ”नयावदÓÓ तथा कई अन्य ग्रंथों में भी की गई है।
दैनिक जीवन में भी तुलसी एक महत्वपूर्ण पादप है। इसकी पत्तियों को भाप में आसवित करने से एक वाष्पशील पीले रंग का तेल मिलता है, जिसमें लौंग की सी सुगन्ध आती है। इसकी सब्जी भी बनाई जाती है एवं पत्तियॉं सलाद में एवं दूसरे भोजन में मसाले की भांति उपयोग में ली जाती है। तुलसी एक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी औषधिय पौधा भी है।
इससे निकलने वाले तेल में जीवाणुनाशक एवं कीटनाशक गुण पाए जाते हैं। प्रयोगों में यह ”माइकोबैक्टीरियम-टयुबरकुलोसि
इसका उपयोग दाद एवं त्वचा के अन्य रोगों में भी किया जाता है। इसकी पत्तियों का रस, कॉन में डालने पर दर्द में आराम पहुंचता है। यही रस बच्चों के उदर विकारों में क्षुधावर्धक की भांति उपयोग में आता है।
