एक कहावत है ‘रोगों का घर खांसी‘। वास्तव में यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। खांसी के कारण अनेक असाध्य बीमारियां फैलती हैं। यक्ष्मारोग (टी.बी.) का तो यह दाहिना हाथ ही है। आयुर्वेद के ग्रंथ सुश्रुत संहिता में लिखा है-‘मुख, कान और गले में धुएं एवं उड़ने वाली धूल के पहुंचने, अधिक व्यायाम करके रूखा आहार ग्रहण करने, अत्यधिक वेग से छींक आने पर उसे रोकने का प्रयास करने, भोजन करते समय छींक आने आदि कारणों से खांसी हो जाया करती है।
आयुर्वेद के अनुसार खांसी के पांच प्रकार होते हैं जिन्हें वात प्रधान खांसी, पित्तप्रधान खांसी, कफप्रधान खांसी, क्षयज खांसी और क्षतज खांसी के नामों से जाना जाता है। वायु से पैदा होने वाली खांसी में कफ नहीं निकलता परन्तु खांसी बहुत ही जोरों से हुआ करती है। जिस खांसी का कारण पित्त होता है उसमें हृदय में जलन होने लगती है और खांसते समय कंठ में पीड़ा होती है।
कफजन्य खांसी में गाढ़ा कफ गिरता है। क्षय द्वारा होने वाली खांसी बहुत समय तक बुखार व जलन को पैदा करने के बाद आती है। छाती के क्षय की वजह से जो खांसी होती है, वह बड़ी प्रबल होती है। खांसते हुए रोगी का गला घर्राने लगता है। बदन में दर्द होता है। खांसने पर छाती के क्षत पर धक्का लगता है जिससे कफ के साथ-साथ खून भी आता है। कंठ और छाती में बड़ी पीड़ा होती है। जब खांसी शुरू होती है, तब सिर्फ सूखी खांसी ही होती है अर्थात् कफ नहीं निकलता परन्तु धीरे-धीरे कफ के साथ-साथ खून भी आने लगता है।
क्षयज अर्थात् क्षय द्वारा होने वाली खांसी भी बहुत घातक होती है। उसमें भी कफ के साथ-साथ पीव और खून आने लगता है। रोगी धीरे-धीरे दुर्बल होता जाता है। खांसी का प्रतिकार अगर प्रारम्भिक स्टेज पर नहीं किया गया तो बाद में जाकर सामान्य खांसी भी छाती पर कुप्रभाव डालने लगती है और रोगी की मृत्यु का कारण बन जाती है।
सामान्य तौर पर खांसी फेफड़ों में अधिक सर्दी या गर्मी का असर होने, नजला-जुकाम हो जाने, न्यूमोनिया, प्लूरिसी, ब्रांकाइटिस, तपेदिक, टाँसिल्स बढ़ जाने, उन पर सूजन आ जाने, गले में खराश हो जाने, श्वांस नली में धूल-धुआं आदि के प्रवेश कर जाने आदि कारणों से भी हुआ करती है। अत्यधिक मात्रा में शराब पीने, धूम्रपान करने, गुटखा-तम्बाकू आदि के सेवन से भी खांसी का संक्रमण हो जाया करता है।
मौसम के अनुसार प्रारंभ से ही बचाव न करने से खांसी का होना निश्चित होता है। अतः मौसम के अनुकूल पहनावा, खान-पान आदि करते हुए खांसी से बचा जा सकता है। खांसी हो जाने पर उसे रोकने व समाप्त करने के लिए निम्नांकित उपायों को करना लाभदायक होता है।
काली मिर्च, अदरक, तुलसी के पत्ते व लौंग डालकर चाय बनाकर पीने से खांसी व जुकाम दोनों में ही लाभ होता है।
अदरक का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में मामूली गर्म करके दिन में तीन-चार बार तक लेते रहने से आराम होता है।
काली मिर्च को पीसकर उसमें चार गुना गुड़ मिलाकर आधा ग्राम की गोलियों को बनाकर रख लें। सुबह, दोपहर, शाम एक-एक गोली चूसने से खांसी में आराम मिलता है।
काली मिर्च और मिश्री समभाग मिलाकर पीस लें। इसमें शुद्ध घी मिला कर मटर के दानों के बराबर गोलियां बनाकर रख लें। दिन में चार बार एक-एक गोली को मुंह में रखकर चूसें। इससे हर प्रकार की खांसी दूर होती है।
कच्चे लहसुन को मुंह में रखकर चूसते रहने से खांसी का वेग कम हो जाता है।