राम नाम सबसे बड़ा, इससे बड़ा न कोई। जो इसका सुमिरन करें, शुद्ध आत्मा होई। राम का नाम सबसे बड़ा है, जो इस नाम को भजता है, वह बड़ा बन जाता है। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं- राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदय हरष कपि सज्जन चीन्हा।। प्रातःकाल मंदिर से आने वाली भजन कीमधुर आवाज कानों में रस घोल देती है- राम नाम के हीरे मोती, मैं बिखराऊं गली गली… एक भजन और सुनाई पड़ता है-राम नाम की लूट है, लूटा जाए लूट, अंतकाल पछताएगा जब प्राण जाएंगे छूट।यह भजन और इनके एक-एक शब्द जन में चेतना, जागृति, प्रेरणा का संदेश भर देते हैं।
भगवान श्रीराम भारतीय आस्था, चिंतन, शक्ति, भक्ति, योग, ज्ञान आदि सभी के आधार हैं। राम है तो हम हैं। हम सभी प्राणियों के अंदर राम नाम ही बसा हुआ है। राम नाम की महिमा युगों युगों से संत-महात्माओं की वाणी से जन-जन तक पहुंची है और आगे भी पहुंचती रहेगी। भगवान श्रीराम की नाम को केंद्र में रखकर कितने ही कवि, महाकवि बन गए हैं। कितनी ही संत, परमसंत बन गए। कितने ही आनंद से परमानंद में हो गए। कितने ही इस भवसागर से पार उतर गए। राम नाम के बिना तो जीव की मुक्ति ही नहीं है। भगवान श्रीराम तो प्रकृति के कण-कण और रोम-रोम में बसे हुए हैं। वह हर जगह प्रेम से बुलाने से ही प्रकट हो जाते हैं। गोस्वामी जी मानस में लिखते हैं-हरिब्यापक सर्बत्र समाना। प्रेम तें प्रकट होहिं मैं जाना।।भगवान प्रेम से कहीं भी प्रकट हो जाते हैं।बस बुलाने वाले का हृदय साफ होना चाहिए।
भगवान श्रीराम का जीवन, कथा और प्रसंग सभी को जीवन, प्रेरणा और मुक्ति देने का साधन है।रामचरितमानस में धनुष यज्ञ के समय भगवान परशुराम का आगमन हुआ और लक्ष्मण केसाथ संवाद हुआ। प्रभु श्रीराम ने भगवान परशुराम से बड़े प्रेम से समझाते हुए कहा-राम मात्र लघु नाम हमारा। परसु सहित बड़ नाम तोहारा।।मेरा नाम तो राम है, बहुत छोटा सा नाम है और आप तो परसु के सहित परशुराम हो। अपने ज्ञान-भक्ति-शक्ति से भगवान श्रीराम ने परशुराम का सारा क्रोध शांत कर दिया। ठीक इसी प्रकार समाज में हमें अपने को ज्यादा बड़ा दिखाने, बताने की जरूरत नहीं है। बल्कि सही समय पर सही लोगों के साथ जुड़ना, उन्हें समझने, समझाने की जरूरत है, वही बड़ा बनता है।
भगवान श्रीराम का नाम, जीवन और चरित्र प्राणियों में शक्ति का संचार करता है, उनमें नवजीवन और नवप्राण भरता है। व्यक्ति की सोई हुई चेतना, वापस प्रभु का नाम, जप, भजनकरने से ही आ सकती है। पौराणिक युग से वर्तमान संदर्भ तक भगवान श्रीराम के चरित्र, नाम को जिसने भी लिखा है, जिसने भी गाया है, वह उसकी भक्ति का अनुभव कर पाया है। वरना लिखा-पढ़ा तो रोज ही जा रहा है, लेकिन जिस पर प्रभु कृपा करते हैं, जो प्रभु का बन जाता है, उसकी लेखनी और वाणी दोनों में ही प्रभु वास करते हैं। वह जोगाते हैं, जो बोलते हैं, जो लिखते हैं, वह सभी कुछ प्रभुमय हो जाता है।
हिंदी साहित्य में आदिकाल से लेकर पूर्व मध्यकाल, उत्तर मध्यकाल, आधुनिक काल सभी जगह कवियों ने भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का वर्णन किया है। इन भक्त शिरोमणि कवियों की नही कोई जाति है, नही कोई धर्म। यह तो भगवान के कृपा पात्र रहें, भगवान के दास रहें, जो इन्होंने देखा-भोगा वह सभी कुछ अपने अनुभव से लिख दिया है। संत-महात्मा बिना बोले मौन समाधि में बैठ जाते हैं और उस परमपिता परमेश्वर से मिलन कर लेते हैं। यह केवल प्रभु की ही कृपा से हो पता है। भगवान श्रीराम का नाम, जप, कीर्तन, लेखन, जितना हो जाता है, उतना ही कम लगता है। यह जीवन हरि भजन के लिए थोड़ा लगता है। भगवान श्रीराम हमारे और आपके बीच भी हैं, जो इस लेख के माध्यम से हमसे संवाद कर रहे हैं। यहां ना कोई लिखने वाला है, ना कोई पढ़ने वाला है, दोनों ही भगवान के भक्त हैं। दोनों ही श्रीराम कि भक्ति की चासनी में डूब कर बैठे रहना चाहते हैं। जीव मुक्ति को चाहते हैं, हरि की शरण में, हरि की भक्ति चाहते हैं।