नयी दिल्ली, 30 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि केरल के गुरुवायुर श्री कृष्ण मंदिर में एकादशी के अवसर पर होने वाली ‘उदयस्थमन पूजा’ बिना किसी बदलाव के एक दिसंबर को परंपरा के अनुसार आयोजित की जाए।
गुरुवायूर एकादशी पर, उदयस्थमन पूजा दिन भर चलने वाला एक विशेष अनुष्ठान है जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक आयोजित किया जाता है तथा इस दौरान 18 पूजा, होम, अभिषेकम और अन्य विधान किये जाते हैं।
न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि यह अनुष्ठान 1972 से किया जा रहा है।
उच्चतम न्यायालय ने पक्षकारों से अपनी दलीलें पूरी करने को कहा और मामले की सुनवाई मार्च 2026 के लिए स्थगित कर दी।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल केरल के गुरुवायुर में श्री कृष्ण मंदिर के देवस्वओम प्रशासन को भीड़ प्रबंधन के नाम पर गुरुवायुर एकादशी पर सदियों पुरानी उदयस्थमन पूजा नहीं करने को लेकर फटकार लगाई थी और आश्चर्य जताया था कि उसने ऐसा निर्णय कैसे लिया।
उच्चतम न्यायालय ने ‘तंत्री’ (मुख्य पुजारी) से अनुष्ठान में बदलाव के लिए सहमत होने पर भी सवाल किया था, जबकि उन्होंने स्वयं 1996 में प्रकाशित एक समाचार लेख में स्वीकार किया था कि गुरुवायुर मंदिर के अनुष्ठानों को वैदिक दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने ही सुव्यवस्थित किया था और उस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का विचलन स्वीकार्य नहीं है।
उदयस्थमन पूजा, सूर्योदय (उदय) से सूर्यास्त (अष्टमना) तक पूरे दिन मंदिरों में की जाने वाली विभिन्न पूजाओं का द्योतक है।
मंदिर प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन में कठिनाइयों और अधिक भक्तों को दर्शन का समय उपलब्ध कराने की इच्छा का हवाला देते हुए एकादशी पर यह अनुष्ठान नहीं करने का निर्णय लिया था।
शीर्ष अदालत मंदिर में पुजारी के अधिकार वाले पी. सी. हैरी और परिवार के अन्य सदस्यों की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में तर्क दिया गया था कि एकादशी मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है और यह एक स्वीकृत तथ्य है कि सदियों पुरानी उदयस्थमन पूजा 1972 से एकादशी के दिन की जाती रही है। हालांकि वास्तव में यह उससे भी अधिक पुरानी है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अनुष्ठानों को आदि शंकराचार्य द्वारा सुव्यवस्थित किया गया था और यह माना जाता था कि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी या विचलन दिव्य शक्ति या ‘चैतन्य’ के प्रकटीकरण को बाधित करेगा।