सनातन धर्म में हर किसी क्रिया का अपना महत्व होता है, हवन का भी अपना महत्व होता है, हवन एक प्राचीन रिवाज है जो देवताओं को हविष्य देने के लिए किया जाता है। हवन करने से माना जाता है कि भगवान इससे प्रसन्न होते हैं और हमें आपना आशीर्वाद देते हैं। हवन करने को ‘देवयज्ञ’ कहा जाता है। हवन में सात पेड़ों की समिधाएँ (लकड़ियाँ) सबसे उपयुक्त होतीं हैं; आम, बड़, पीपल, ढाक, जाँटी, बेल और शमी। हवन करने से मन में शुद्धता और सकारात्मकता बढ़ती है। हमारे पुराने और हर प्रकार के रोग और शोक मिटते हैं। इससे हमारा गृहस्थ जीवन पुष्ट होता है।
ऋग्वेद में वर्णित यज्ञीय परंपरा के अनुसार देवताओं देव आह्वान के साथ साथ स्वाहा का उच्चारण कर हवन सामग्री को अग्नि में डाला जाता है। इसका अर्थ यह है कि हवन सामग्री (हविष्य) को अग्नि के माध्यम से देवी देवताओं तक पहुंचाया जाता है… मान्यताओं के अनुसार स्वाहा प्रकृति की ही एक स्वरूप थीं, जिनका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर सम्पन्न हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को वरदान देते हुए कहा था कि वे केवल उसी के माध्यम से हविष्य को ग्रहण करेंगे अन्यथा नहीं।
हवन जिसे हम अग्निहोत्र भी कह सकते है। पहले के जमाने में हर घर में हर रोज हवन होते थे जिससे हमारे वातावरण की शुद्धि के साथ साथ हमारा आध्यात्मिक और वैदिक शुद्धिकरण भी होता था। हवन से निकली हुई धुंआ आसमान में जाकर बादलों के साथ मिल जाता था जो आगे जाकर वर्षा में सहायक होता था। हवन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जहाँ भी हवन का आयोजन होता है वहां पर किसी भी प्रकार का वास्तुदोष नहीं होता और उस परिवार के लोगों पर किसी भी प्रकार का तांत्रिक अभिकर्म नहीं किया जा सकता क्योंकि हवन में हम समस्त देवी देवताओं का आह्वान करते हैं जो हमारी हर प्रकार से रक्षा करते है। आज के इस महंगाई के दौर में जब पूजा पाठ भी इतने महंगे हो गए है तो लोग हवन का खर्च भी उठाने में असहज महसूस करते है।
दैनिक हवन की सबसे आसान, सस्ती लघु और असरकारक विधि।
दैनिक हवन मे सबसे पहले अग्नि प्रज्वलित करे। किसी लकड़ी (लकड़ी पीपल की या आम की बरगद के ले तो उत्तम रहेगा) पर या गाय के कंडे पर अग्नि प्रज्वलित करे। किसी छोटे से पात्र मे भी गाय के कंडे पर या लकडी पर अग्नि प्रज्वलित कर सकते है। पात्र तांबे का या पीतल का या मिट्टी का होना चाहिए। लोहे के पात्र का उपयोग हवन के लिए नही करना है। नीचे लिखी आहूतिया केवल घी से देनी है। आहूति देने के बाद आहूति देने के चम्मच मे बचा हुआ घी इदं न मम के उच्चारण के साथ पास मे रखे पानी के पात्र मे टपकाते जाऐ।
चार घी की आहुतियाँ:
इस मन्त्र से वेदी के उत्तर भाग में जलती हुई समिधा पर आहुति देवें।
१. ओम् प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये – इदं न मम।।
मन्त्रार्थ: सर्वरक्षक प्रजा अर्थात सब जगत के पालक, स्वामी, परमात्मा के लिए मैं त्यागभाव से यह आहुति देता हूँ। अथवा, प्रजापति सूर्य के लिए यह आहुति प्रदान करता हूँ।
२. ओम् इन्द्राय स्वाहा । इदं इन्द्राय – इदं न मम।।
मन्त्रार्थ: सर्वरक्षक परमऐश्वर्य सम्पन्न तथा उसके दाता परमेश्वर के लिए मैं यह आहुति प्रदान करता हूँ। अथवा ऐश्वयर्शाली, शक्तिशाली वायु व विद्युत के लिए यह आहुति प्रदान करता हूँ।
३. ओम् अग्नये स्वाहा । इदमग्नये – इदं न मम।।
मन्त्रार्थ: सर्वरक्षक प्रकाशस्वरूप दोषनाशक परमात्मा के लिए मैं त्यागभावना से धृत की हवि देता हूँ। यह आहुति अग्निस्वरूप परमात्मा के लिए है, यह मेरी नहीं है। अथवा, यज्ञाग्नि के लिए यह आहुति प्रदान करता हूँ।
४. ओम् सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय – इदं न मम।।
मन्त्रार्थ: सर्वरक्षक, शांति सुख स्वरूप और इनके दाता परमात्मा के लिए त्यागभावना से धृत की आहुति देता हूँ। अथवा, आनन्दप्रद चन्द्रमा के लिए यह आहुति प्रदान करता हूँ।
५. ॐ गं गणपतये स्वाहा । इदं गणपतये इदं न मम ।।
इसके बाद आप जो भी और जितनी भी चाहे आहूति दे सकते है। जैसे गणपति जी की या गायत्री जी की या अपने ईष्ट की।
उसके बाद अंतिम आहूतियां इस प्रकार देनी है।
६. ॐ भूः स्वाहा । इदं अग्नये इदं न मम ।
७. ॐ भुवः स्वाहा: । इदं वायवे इदं न मम ।
८. ॐ स्वः स्वाहा । इदं सूर्याय इदं न मम ।
९. ॐ भूर्भुवः स्वाहा। इदं न मम ।
१०. ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये इदं न मम ।
इस प्रकार आप घर मे दैनिक लघु हवन का आयोजन कर सकते हैं।