न्याय अदालतों और कानून तक सीमित अमूर्त अवधारणा नहीं है: पूर्व प्रधान न्यायाधीश बालकृष्णन

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नयी दिल्ली, 29 अक्टूबर (भाषा) भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन ने बुधवार को कहा कि न्याय केवल कानूनों और अदालतों तक सीमित एक अमूर्त अवधारणा नहीं है, बल्कि एक ‘जीवंत सिद्धांत’ है जिसे समानता, निष्पक्षता और प्रत्येक मानव के प्रति सम्मान को बढ़ावा देकर व्यक्त किया जा सकता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के पूर्व अध्यक्ष, न्यायमूर्ति बालकृष्णन, यहां ‘अपोस्टोलिक नन्सिएचर’ में पोप लियो 14 को दुनिया भर में शांति, सर्वधर्म सद्भाव और मानवीय गरिमा को बढ़ावा देने में उनके योगदान के लिए 2025 का ‘इंटरनेशनल ज्यूरिस्ट्स पीस’ पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा के अवसर पर बोल रहे थे।

पोप लियो 14 कैथलिक चर्च के प्रमुख हैं।

पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘न्यायविद बिरादरी के सदस्यों के रूप में, हम समझते हैं कि न्याय केवल अदालतों और कानूनों तक सीमित एक अमूर्त अवधारणा नहीं है। यह एक जीवंत सिद्धांत है जो समानता, निष्पक्षता और प्रत्येक मानव के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने में अपनी सच्ची अभिव्यक्ति पाता है।’’

वरिष्ठ अधिवक्ता और अंतरराष्ट्रीय विधिवेत्ता परिषद के अध्यक्ष आदिश सी. अग्रवाल ने स्वागत भाषण दिया।

उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अग्रवाल ने पोप को ‘‘मानवता के लिए नैतिक दिशानिर्देशक’’ बताया।

उन्होंने कहा, ‘‘यह प्रतिष्ठित पुरस्कार दुनिया भर में शांति, न्याय और मानवीय गरिमा को बढ़ावा देने के प्रति गहरी और आजीवन प्रतिबद्धता, और राष्ट्रों के बीच अंतरधार्मिक समझ, सामाजिक सद्भाव और करुणा को बढ़ावा देने के पोप के अथक प्रयासों के सम्मान में प्रदान किया जा रहा है।’’