एक और मील का पत्थर-विश्व के सबसे सुरक्षित परमाणु ऊर्जा संयंत्र ने किया कार्यारम्भ

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विश्व पटल पर भारत अब किसी भी क्षेत्र में किसी भी देश से पीछे रहने को तैयार नहीं है। पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों के विकल्प के रूप में इस सदी के प्रारम्भ से ही परमाणु ऊर्जा का अपना एक विशेष स्थान रहा है। इस क्षेत्र की विनाशक स्थिति के कारण विकसित देशों और संयुक्तराष्ट्र द्वारा अनेक बन्धनों द्वारा इसके विकास को रोकने के उपक्रम किये जाते रहे हैं। अनेक बाधाएं खड़ी की जाती रही हैं। किन्तु भारत ने अपनी वैश्विक परिस्थितियों के चलते इस तरह के किसी दबाव में आने से इनकार किया जाता रहा है और परमाणु परीक्षण शान्ति विकल्पों के रूप में विकसित करता रहा है।  

स्वतंत्रता पश्चात के पचहत्तर वर्षों बाद यदि हम अभी तक की अपनी परमाणु सम्बन्धी उपलब्धियों एवं कमियों पर नज़र डालें तो हम पाते हैं कि हमने विकास का एक नया और लंबा सफर तय कर लिया है। इस विकास यात्रा में हमें कितनी बार प्राकृतिक आपदाओं एवं युद्धों का सामना करना पड़ा है। मगर हमने अनेकों बार आंतरिक समस्याओं से जूझते हुए विकास की गति को निरंतर बनाए रखा है। इन सब उतार-चढ़ावों के बीच देखते ही देखते आज भारत विश्व की सबसे तेज़ी से विकसित होती अर्थव्यवस्था बनकर सामने आया है। इस परिदृश्य में हमारी परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में गजब की तेज गति रही है। 04 अगस्‍त, 1956 को भारत ने अपने स्वतंत्र परमाणुयुग में उस समय प्रवेश किया, जब देश के पहले परमाणु रिएक्‍टर ‘अप्‍सरा’ का शुभारंभ किया गया। इस रिएक्‍टर की डिज़ाइन एवं निर्माण भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था, मगर एक समझौते के अंतर्गत इसके लिये परमाणु ईंधन की आपूर्ति इंग्लैंड से की गई थी। अनुसंधान उद्देश्‍यों के लिये हमारा दूसरा रिएक्‍टर ‘साइरस’ कनाडा के सहयोग से विकसित किया गया था, जिसे 1960 में संचालित किया गया। शुरुआत में तो अनुसंधान रिएक्‍टर, नूतन भौतिकी एवं नूतन विकिरण के अंतर्गत पदार्थों के व्‍यवहार के अध्‍ययन तथा रेडियो आइसोटोप उत्‍पादन के अनुसंधान केंद्र बने। परंतु बाद में ये विभिन्‍न प्रकार की बीमारियों, विशेषकर कैंसर के इलाज में भी उपयोगी  साबित हुए तथा गैर-विनाशकारी परीक्षण उद्देश्‍य के लिये औद्योगिक संसाधनों के रूप में भी इनका इस्तेमाल किया जाने लगा।

परमाणु ऊर्जा के माध्यम से विद्युत उत्पादन का काम अक्तूबर 1969 में उस समय शुरू हुआ जब तारापुर में दो रिएक्‍टरों को सेवा में लाया गया। तारापुर परमाणु विद्युत केंद्र का निर्माण अमेरिका के जनरल इलेक्ट्रिक कं. द्वारा किया गया था। तारापुर संयंत्र द्वारा देश में सबसे कम लागत की गैर-हाइड्रो बिजली सप्लाई की जाती है। भारत का दूसरा परमाणु विद्युत केंद्र राजस्थान में कोटा के निकट स्‍थापित किया गया तथा इसकी पहली इकाई ने अगस्‍त 1972 में काम करना शुरू किया। राजस्थान की पहली दो इकाइयाँ कनाड़ा के सहयोग से स्थापित की गई थीं।

भारत का तीसरा परमाणु बिजलीघर चेन्‍नई के निकट कलपक्‍कम में स्‍थापित किया गया। यह देश का पहला स्वदेशी संयंत्र है। यह विशाल चुनौतीपूर्ण कार्य था क्‍योंकि उस समय भारतीय उद्योग को परमाणु उपयोग के लिये आवश्‍यक जटिल उपकरण बनाने का कोई विशेष अनुभव नहीं था। जुलाई 1983 में मद्रास परमाणु बिजलीघर की पहली स्वदेशी इकाई की स्‍थापना के साथ भारत उन देशों के समूह में शामिल हो गया जो अपने बल पर परमाणु बिजली इकाइयों की ‍डिज़ाइनिंग और निर्माण करते रहे हैं।

देश का चौथा परमाणु बिजलीघर गंगा नदी के तट पर नरोरा (उत्तर प्रदेश) में स्‍थापित किया गया। नरोरा की पहली इकाई का शुभारंभ अक्तूबर 1989 में किया गया। अगले 20 वर्षों में भारत ने अपनी स्वदेशी प्रौद्योगिकी के आधार पर ग्‍यारह 220 मेगावाट की इकाइयों तथा दो 540 मेगावाट की इकाइयों को स्थापित किया है। इस प्रौद्योगिकी को ‘प्रेशराइज्‍ड हैवी वाटर रिएक्‍टर’ कहा गया। इस कार्य को पूरा करने के लिये भारत ने सुदृढ़ भारी जल उत्पादन क्षमता एवं ईंधन उत्‍पादन क्षमता का निर्माण किया।

भारत ने अपनी परमाणु क्षमता को तेज़ी से आगे बढाने के लिये ईंधन के रूप में परिष्‍कृत यूरेनियम के उपयोग वाली दो 1000 मेगावाट की रिएक्‍टर बिजली इकाइयाँ स्थापित करने हेतु वर्ष 1988 में पूर्व सोवियत संघ के साथ समझौता किया मगर वर्ष 1990 में सोवियत संघ के विघटन के कारण भारत-रूस परियोजना ठंडे बस्‍ते में चली गई। वर्ष 1998 में भारत और रूस ने पुन: इस परियोजना को शुरू करने का निर्णय लिया। उल्लेखनीय है कि इस परियोजना की पहली इकाई को चालू करने का काम अभी प्रगति पर ही था कि उसी समय मार्च 2011 में जापान के फुकूशिमा में परमाणु दुर्घटना घटित हो गई जिसके कारण संयंत्र स्थल के आसपास रहने वाले लोगों ने परियोजना का काफी विरोध किया हालाँकि, लोगों को यह समझाने में काफी समय लगा कि जापानी संयंत्र की तुलना में इस संयंत्र स्थल की स्थितियाँ पूरी तरह भिन्‍न हैं। कुड्डनकुलम की पहली इकाई वर्ष 2014 और दूसरी इकाई वर्ष 2016 में चालू हुई। तारापुर संयंत्र से मिलने वाली बिजली की लागत एक रुपए प्रति किलोवाट घंटे, कुड्डनकुलम इकाई एक तथा दो के लिये लगभग 4 रुपए प्रति किलोवाट घंटे है। वर्तमान में भारत के पास 21 परमाणु रिएक्‍टर इकाइयाँ हैं। अन्य परमाणु बिजलीघर 2 से साढ़े 3 रुपए प्रति किलोवाट घंटे की दर से बिजली सप्‍लाई कर रहे हैं।वास्‍तविकता यह है कि भारतीय रिएक्‍टरों की तुलना में रूसी रिएक्‍टरों की ईंधन लागत कम होने के कारण दोनों रिएक्‍टर 5 रुपए प्रति किलोवाट घंटे की दर से बिजली उत्‍पादन कर रहे हैं।

इन परिस्थितियों में भारत की मोदी सरकार ने जून 2017 में भारत में डिज़ाइन किये गए दस 700 मेगावाट क्षमता के प्रेशराइज्‍ड हैवी वाटर रिएक्‍टरों के निर्माण का निर्णय लिया। इसके अतिरिक्त परमाणु ऊर्जा निगम द्वारा भी 540 मेगावाट आकार की इकाइयों का आकार बढ़ाकर 700 मेगावाट कर दिया गया है। काकरापार में 2 (इकाई 3 और 4) तथा राजस्‍थान में 2 (इकाई 7 और 8) नई इकाइयाँ प्रारंभ की गई हैं। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा 300 मेगावाट के रिएक्‍टर की डिज़ाइनिंग का काम पूरा कर लिया गया है। इसे एडवांस थर्मल रिएक्‍टर का नाम दिया गया है, इसमें ईंधन के रूप में थोरियम का उपयोग किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड एनपीसीआईएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बी पाठक की उपस्थिति में विगत रविवार सुबह 1:17 पर इस नवीनतम रिएक्टर का शुभारम्भ सम्पन्न हुआ। काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना का यूनिट 4, देश में स्थापित किया जा रहे 700 मेगावाट के 16 स्वदेशी दबाव युक्त भारी जल रिएक्टरों पीएचडब्ल्यूआर की श्रृंखला में दूसरा है। परमाणु ऊर्जाबोर्ड की सभी शर्तों को पूरा करने के बाद इसकी शुरुआत की गई है। बोर्ड ने संयंत्रों की प्रणालियों की सुरक्षा की गहन समीक्षा के बाद मंजूरी दी थी। इस शुरुआत के बाद के केएपीपी 4 में कई परीक्षण किए गए जाएंगे और एआरईबी की स्वीकृति के अनुरूप बिजली का स्तर चरणों में बढ़ाया जाएगा जो अंततः पूरी शक्ति से संचालित होने लगेगी। केएपीपी 3 और 4 गुजरात के काकरापार में स्थित है।  एनपीसीआईएल में दावा किया कि इस स्वदेशी पीएचडब्लूआर में उन्नत सुरक्षा विशेषताएं हैं। यह दुनिया के सबसे सुरक्षित रिएक्टरों में से है। इनका डिजाइन निर्माण व संचालन एनपीसीआईएल द्वारा किया गया है।  उपकरणों की आपूर्ति भारतीय कंपनियों द्वारा की गई है।

 

वर्तमान में एमपीसीआईएल 7480 मेगावाट की कुल क्षमता वाले 23 संयंत्रों का संचालन करता है और 7500 मेगावाट की क्षमता वाली 9 इकाइयां निर्माणाधीन हैं। इसके अलावा 7000 मेगावाट की कुल क्षमता वाले 10 और रिएक्टर पूर्व परियोजना गतिविधियों में शामिल हैं। 700 मेगावाट क्षमता वाले इस संयंत्र में नियंत्रित विखंडन प्रतिक्रिया कंट्रोल्ड सीजन रिएक्शन शुरू हो गई है. इसके साथ ही वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए विद्युत उत्पादन की दिशा में एक और मील का पत्थर खड़ा कर दिया गया है।