बिहार चुनाव : छोटे राजनीतिक दलों की रहेगी “बड़ी” भूमिका

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प्राचीन मगध के नाम से देश और दुनिया मे चर्चित बिहार के विधानसभा चुनाव के लिए रणभेरी बज चुकी है। चुनावी समर के लिए रणनीति के योद्धाओं ने भी अपनी तलवार निकल ली हैं। बिहार चुनाव में जनता दल यूनाइटेड एक बार फिर से भाजपा के साथ एनडीए गठबंधन में रहकर चुनावी तैयारी में जुटी है। वहीं, बिहार के मुख्य विपक्षी दल के रूप में राष्ट्रीय जनता दल अपनी सहयोगी कांग्रेस तथा अन्य पार्टियों के साथ महा गठबंधन के तले चुनावी समर की तैयारी में है। बिहार विधानसभा चुनाव में “सीएम फेस” के नाम पर इन दिनों सबसे बड़ा घमासान है। एनडीए के प्रमुख घटक भाजपा ने जहां एक बार फिर से नीतीश कुमार की कमान में ही चुनाव लड़ने का निर्णय करते हुए उन्हें ही सीएम फेस बनाने का एलान किया है जबकि इसके उलट महागठबंधन में अभी भी सीएम फेस के नाम पर सहमति नहीं होने से कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल में चर्चाओं का दौरा चल रहा है।

         बिहार विधानसभा चुनाव में वैसे तो मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के बीच होना है लेकिन बिहार चुनाव में नए राजनीतिक दलों की “एंट्री” से इस बार का बिहार चुनाव काफी रोचक होने जा रहा है। बिहार चुनाव में दोनों मुख्य गठबंधनों के अलावा भी कई राजनीतिक दल मैदान में ताल ठोक रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि करीब आधा दर्जन नए राजनीतिक दल अपने ताकत से बिहार चुनाव को न केवल प्रचार के दौरान बल्कि मतगणना के बाद सरकार के गठन को लेकर “रोचक” बना सकते हैं। नई राजनीतिक दलों में सबसे अधिक चर्चा कॉरपोरेटर से रणनीतिकार और फिर राजनेता बने प्रशांत किशोर उर्फ पीके को लेकर है। पाटलिपुत्र के सिंहासन पर आसीन होने के लिए नवंबर महीने में हो रहे बिहार चुनाव में तीसरी ताकत के रूप में “जन सुराज पार्टी भी अपना पैर जमाने की जुगत में है।

       जन सुराज पार्टी के मुखिया प्रशांत किशोर उर्फ पीके बिहार में पदयात्रा कर लोगों की नब्ज टटोल चुके हैं। पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही जन सुराज पार्टी राज्य के सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ेगी। पार्टी द्वारा किए जा रहे चुनाव प्रचार के दौरान पीके के निशाने पर महागठबंधन एवं एनडीए दोनों ही है। पीके समेत पार्टी के अन्य नेता टीवी डिबेट के साथ-साथ लोगों के साथ संवाद कार्यक्रम में एक ही बात बार-बार दोहराते हैं कि बीते 40 सालों एनडीए एवं महागठबंधन से जुड़े दलों का ही राज रहा है। ऐसे में बिहार के पिछड़ेपन, युवाओं के बिहार से पलायन तथा अपराध सहित बिहार की अन्य दुर्दशा के लिए कांग्रेस, बीजेपी, राजद और जदयू ही जिम्मेदार हैं। पीके बिहार के मतदाताओं को यह भरोसा भी दिलाने में लगे हैं कि जन सुराज पार्टी के नुमाइंदे बिहार की दशा और दिशा को बदलने का माद्दा रखते हैं।

         बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार चर्चा में एक “राजनीतिक हनुमान” भी है। हम बात कर रहे हैं खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान की। वैसे तो बिहार की राजनीति में समाजवादी आंदोलन से निकले कद्दावर नेता रामविलास पासवान साल 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान ही अपने पुत्र चिराग पासवान को सियासत में उतार चुके थे।  इस दौरान पार्टी के सारे फैसले चिराग ही लेते रहे। पिता रामविलास पासवान की मौत के बाद उनके चाचा पशुपति पारस ने धोखा दिया और चिराग अकेले पड़ गए। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। चिराग ने अपनी ताकत का एहसास 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को करा दिया। अब बदले हालात में अपने दम पर चिराग पासवान दो भागों में अब बंट चुकी लोजपा के एक धड़े लोजपा (राम विलास) का नेतृत्व कर रहे हैं।

       बिहार के दंगल में चिराग पासवान की एंट्री से  विधानसभा चुनाव में बिहार में खुद की अगुवाई में अपनी पार्टी के विस्तार के साथ-साथ अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज करने की कोशिश चिराग की रहेगी। बिहार विधानसभा चुनाव के मैदान में इस बार इंडियन इंकलाब पार्टी भी जोर लगाएगी। इंडियन इंकलाब पार्टी गठन इंजीनियर आईपी गुप्ता ने किया है जो पहले कांग्रेस में थे। उन्होंने इस साल अप्रैल में कांग्रेस छोड़ दी थी। चुनावी समर में उतरने से पहले ही अप्रैल में आईपी गुप्ता ने पटना के गांधी मैदान में महारैली का आयोजन किया था। इसमें बड़ी संख्या में लोग आए थे। गुप्ता का आधार तांती और ततवा जाति में है जो इन दिनों अनुसूचित जाति में शामिल होने की लड़ाई लड़ रहा है। इंडियन इंकलाब पार्टी महागठबंधन में शामिल होने की कोशिश कर रही है तथा सीटों को लेकर बातचीत भी चल रही है।

         इसके साथ ही इंडियन इंकलाब पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के अलावा तीसरे मोर्चे के निर्माण की कवायद में जुटे असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के संपर्क में भी हैं। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी शिवदीप वामनराव लांडे ने आईपीएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में एंट्री लेने के लिए जय हिंद सेना के नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई है। उन्होंने 2024 में आईपीएस की नौकरी छोड़ दी थी। महाराष्ट्र के रहने वाले लांडे ने घोषणा की है कि वो प्रदेश की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे। लांडे का कहना है कि वे सिर्फ विकास की राजनीति करेंगे तथा जाति या अगड़े-पिछड़े की राजनीति से दूर रहेंगे। इसके अलावा बिहार विधानसभा चुनाव इस बार चर्चा एक नए राजनीतिक दल विकास वंचित इंसान पार्टी की भी हो रही है।  विकास वंचित इंसान पार्टी या वीवीआईपी का गठन हेलिकॉप्टर बाबा के नाम से मशहूर प्रदीप निषाद ने किया है।

          इससे पहले वो विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) में थे लेकिन पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी से मनमुटाव के बाद वो उनसे अलग हो गए थे। बीते शनिवार को उन्होंने वीवीआईपी का गठन कर चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा की। यह दावा किया जा रहा है कि वीवीआईपी शोषितों, पीड़ितों, दलितों, महादलितों, अति पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक उत्थान का काम करेगी लेकिन राजनीति के जानकारों का मानना है कि वीवीआईपी की भी नजर निषाद-मल्लाह जाति के वोटों पर है। आरजेडी के प्रमुख लालू यादव के परिवार और पार्टी में बगावत के नतीजे के रूप में नई पार्टी जनशक्ति जनता दल का उदय हो गया है। लालू यादव के परिवार और पार्टी से निष्कासित लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने जनशक्ति जनता दल के नाम से अलग पार्टी गठित कर ली है। यह चर्चा है कि तेज प्रताप महुआ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। कुल मिलाकर बिहार विधानसभा चुनाव में छोटे राजनीतिक दलों की बड़ी भूमिका रहेगी, यह तय माना जा रहा है।

 

प्रदीप कुमार वर्मा

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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