ऐसा ही एक स्थल है सीताबनी, जिला नैनीताल, उत्तरांचल का एक स्थान

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यूं तो पूरा उत्तराखंड ही देवलोक कहा जाता है। यहां के कण कण में देवताओं का वास है। अनेकों सिद्ध पीठ हैं जहां हजारों हजार श्रद्धालु-भगत दूर दूर से पूजन करने आते हैं। कुछ मात्रा पर्यटन की भावना से आते हैं। कुछ स्थानों तक पहुंचना आसान है, पक्की सड़कें हैं। मोटर से-जीप-कार से आसानी से पहुंचा जा सकता है लेकिन इसी उत्तराखंड में कुछ अति दुर्गम स्थल भी हैं जहां केवल श्रद्धालु-साहसी ही पहुंच पाते हैं।


ऐसा ही एक स्थल है सीताबनी, जिला नैनीताल, उत्तरांचल का एक स्थान। यहां की यात्रा, अभी तक के मेरे जीवन की सबसे दुरूह यात्रा रही। बड़ा ही विकट अनुभव रहा। आत्मिक शांति मिली, प्रकृति के मनोरम दृश्यों को निकट से देखने का सौभाग्य मिला। लगभग 42 किमी की बीहड़ वनों की यात्रा रोमांचक क्षण-मात्रा स्कूटर से मेरे जीवन की अमूल्य यादगार बन गयी।


घने जंगलों से गुजरते समय हर पल पर जंगली हाथियों/शेर/रीछ व अन्य वन्य प्राणियों का भय, पल पल साथ रहा। स्कूटर पर साथ ही बैठा  मेरा पुत्रा ही बस बातचीत का साथी रहा। मां महामाया के दर्शनों की प्रबल इच्छा ही मेरी इस यात्रा का कारण रही।


सीताबनी जाने के लिए दो रास्ते हैं, नैनीताल जिले के रामनगर से एक रास्ता घने जंगलों से होकर ’पूरा रास्ता 33 कि. मी. का घने जंगलों के बीच। प्रकृति के मनोहारी दृश्य जंगली जानवरों को निकट से देखने का शौक अगर आपको है तो इस रास्ते से अवश्य जाइये।
दूसरा रास्ता रामनगर से काला ढूंगी की ओर पक्की सड़क पर 13 किमी दूर बैल पड़ाव तक, वहां से पक्की सड़क जाती है 7 किमी दूर पवलगढ़ तक, फिर पवलगढ़ से घने जंगल का रास्ता लगभग 10 किमी. तक आपको सीताबनी पहुंचा देता है। इस जंगल रोड पर भी आपको वन्य प्राणियों के मिलने की पूर्ण संभावना है।


सीताबनी में है एक मां सीता का मंदिर में मां सीता की संगमरमर की प्रतिमा है लव कुश को गोद में लिए। शायद ऐसी प्रतिमा अन्यत्रा किसी मंदिर में नहीं।


मंदिर का निर्माण, अंदर गर्भगृह के ऊपर का अंदरूनी भाग स्पष्ट करता है कि मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है। मंदिर के बाहर झरना है जिसमें अपनी सुविधा के लिए तीन पाइप से लगा दिये गये हैं। इन पाइपों से लगातार निर्मल शीतल जल बहता रहता है यहां यह अवधारणा किंवदंती निर्मूल प्रभावित हो गई कि सीताबनी से झरने से दो धारायें गरम पानी और ठंडे पानी की अलग अलग बहती हैं। सत्य यही है झरना एक है शीतल जल का। पाइप लगाकर तीन धारायें बना दी गई हैं। मंदिर परिसर में सैंकड़ों वर्ष पुराने यज्ञवेदी के भाग/मूर्तियां इधर उधर बिखरे हैं।


स्थान पर सीता मां ने लव कुश को जन्म दिया था। यही वह स्थान है जहां लव-कुश ने महर्षि बाल्मीकि से शिक्षा प्राप्त की थी। यही वह स्थान है जहां कभी अश्वमेध अश्व को पकड़ा था लव-कुश ने। अब इन घटनाओं का कोई वैज्ञानिक आधार तो नहीं लेकिन चारों ओर फैले भग्नावशेष इतना तो प्रमाणित करते ही हैं कि यहां, इस बीहड़ जंगल में कभी आश्रम/मंदिर रहे होंगे। कहते हैं यहां महाभारत कालीन पांडवों ने भी कभी अज्ञातवास किया था। इस मंदिर से लगभग एक किमी दूर है, ऊपर पहाड़ी पर मात्रा पैदल का रास्ता महर्षि बाल्मीकि का आश्रम। वहां भी पुराने शंख/यज्ञवेदी आदि हैं। मैं तो वहां तक जा नहीं सका।


जनश्रुति यह भी है कि इसी क्षेत्रा में सीता माता धरती की कोख में समा गई थी। बाल्मीकि आश्रम में जो दूवड़ा घास होती है, लोग उसका संबंध श्री मां सीता के बालों से जोड़ते हैं।
आधुनिक संचार सुविधाओं से दूर यह स्थल निश्चित ही मन को शांति प्रदान करता है। इस स्थल के बारे में अनेक किंवदंतियां जनमानस में प्रचलित हैं, यथा रात को यहां देवता/किन्नर सशरीर आते हैं, बादाम अखरोट की दावतें होती हैं।


कुल मिलाकर आधुनिक संसार से दूर, यह निश्चित ही सुरम्य स्थान है। इस स्थान पर क्या था, कब का स्थल है, यह तो शोध का विषय हो सकता है पर श्रद्धालुओं के लिए यह सिद्धपीठ है, प्रकृति प्रेमियों के लिए अविस्मरणीय स्थल।