हाथी के नए साथी मायावती के भतीजे आकाश आनंद,आगे की चुनौती वे कैसे निभाएगे ?
Focus News 4 January 2024बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने रविवार 10 दिसंबर को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। लंबे अर्से से मायावती का उत्तराधिकारी कौन होगा, इसे लेकर कई अटकलें चलाई जा रही थी। इसी बीच मायावती ने इस संबंध में फैसला सुना दिया है। मायावती ने अब अपने बाद पार्टी की जिम्मेदारी अपने भतीजे आकाश आनंद को सौंप दी है। लखनऊ में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने ये घोषणा की है।
जानकारी के मुताबिक बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। इसकी घोषणा उन्होंने लखनऊ में हुई बैठक में दी। बता दें कि लोकसभा चुनावों को लेकर मायावती ने बसपा नेताओं के साथ 10 दिसंबर को बैठक की थी। इस बैठक के बाद ही उन्होंने अपने उत्तराधिकारी की घोषणा की है।
इससे पहले पांच राज्यों में आयोजित हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी आकाश आनंद को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ तक में आकाश आनंद ने पूरी कोशिश की कि बसपा को मजबूती के साथ पेश किया जाए। वहीं अब लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भी पार्टी ने तैयारी कर ली है जिसके लिए कमान आकाश आनंद को सौंपी गई है।
हालांकि मायावती के इस ऐलान के बाद हर कोई हैरान हो गया है क्योंकि पहले माना जा रहा था कि लोकसभा 2024 के चुनाव को मायावती के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। मायावती का उम्मीदवार घोषित होने के बाद अब यह भी संभावना जताई जा रही है कि पार्टी जल्द ही गठबंधन को लेकर भी फैसला ले सकती है।
बता दें कि लंबे समय से मायावती की राजनीति में सक्रियता को लेकर कई अटकलें लगाई जाती रही है। कई चुनावी सभाओं में भी मायावती की गैर मौजूदगी रही है जिसके बाद कई सवाल खड़े होने लगे थे। ऐसे में मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद पर भरोसा जताया है। आकाश एक युवा चेहरा है जिसकी बदौलत पार्टी खुद को फिर से स्थापित करने में सफल हो सकती है। आकाश के नेतृत्व में ही पार्टी अपनी ताकत को लोकसभा चुनाव 2024 में बढ़ाने पर जोर देगी।
बता दें कि वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में आयोजित हुए विधानसभा चुनावों में भी पार्टी को बड़ी सफलता नहीं मिल सकी थी। पार्टी ने सपा के साथ 2019 में लोकसभा चुनावो में गठबंधन कर 10 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस सफलता के बाद कई मौकों पर आकाश आनंद को बड़ी भूमिका में देखा जाता रहा है।
गौरतलब है कि पार्टी को मूल आधार की तरफ लौटाने की चुनौती मायावती का उत्तराधिकारी होने के बाद आकाश के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को मूल आधार की तरफ लौटाना होगा। जिस तरह से बसपा और दलित के बीच दूरियां बढ़ती जा रही है उससे बसपा को काफी नुकसान हुआ है। बसपा को अब उसी तेवर में जाना होगा जो कभी वो 90 के दशक में हुआ करती थी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि समावेशी होने के प्रयास में एक तरफ जहां बसपा ने दूसरी जातियों को अपनी ओर आकर्षित करना शुरू किया तो दूसरी ओर दलित छिटकते चले गए। इसका उदाहरण 2014 से लेकर 2022 के बीच हुए कई चुनावों में बसपा देख चुकी है। |
आकाश के सामने एक चुनौती यह भी है कि वह बीजेपी ने लाभार्थी वर्ग को खड़ा किया है, उसको कैसे तोड़ेंगे। बीजेपी सरकार की तरफ से करीब एक दर्जन ऐसी योजनाएं चलाई जा रही हैं जिनका लाभ दलित, पिछड़ों, मुसलमानों और सवर्णों को भी मिल रहा है। ऐसा करके बीजेपी ने जो लाभार्थी वोट बैंक बनाया है उसको बसपा कैसे काउंटर करेगी इसका हल आकाश को निकालना होगा। मायावती ने बसपा के मूवमेंट को यूं तो यूपी से बाहर कई राज्यों में चलाने का प्रयास किया लेकिन वह ज्यादा सफल नहीं हो पायीं। आकाश के सामने यह भी चुनौती होगी कि यूपी-उत्तराखंड के बाहर वह हिन्दी पट्टी के राज्यों में बसपा को कैसे मजबूत करेंगे। हालांकि आकाश ने बिहार से लेकर राजस्थान समेत कई राज्यों में पार्टी के अभियानों की कमान संभाल रखी है लेकिन अब वहां जनाधार बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
इसके अलावा दलितों को वापस पार्टी से जोड़ना होगा. आकाश के सामने सबसे बड़ी चुनौती गैर जाटव दलित को वापस लाना है । पिछले कई चुनावों से ऐसा देखा जा रहा है कि बीजेपी ने गैर जाटव में अपनी पैठ बनाने की कोशिश शुरू कर दी है। बीजेपी के इस काट का जवाब बसपा को देना होगा क्योंकि दलितों को एकजुट किए बिना बसपा को मजबूत करना टेढ़ी खीर साबित होगी। पिछले कई चुनावों से ऐसा देखने में आ रहा है कि बीजेपी दलितों को साधने में लगी हुई है। इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने बेबीरानी मौर्या और असीम अरुण जैसे चेहरों को मंत्री बनाया है।
आकाश के सामने चुनौती पश्चिम में चंद्रशेखर आजाद जैसे दलित नेता भी पेश करेंगे जो दलित युवाओं के बीच आइकन बनते जा रहे हैं। चंद्रशेखर के रहते पश्चिमी यूपी में बसपा दलितों के बीच पैठ कैसे बनाएगी, इसका हल आकाश को निकालना होगा। चंद्रशेखर ने भी अपनी पार्टी को अभियान छेड़ा हुआ है। विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर ने गोरखपुर जाकर चुनाव लड़ा और एक बड़ा सियासी संदेश देने की काशिश की थी। चंद्रशेखर को कांग्रेस, सपा और रालोद जैसी पार्टियां अपने साथ लाने के लिए उतावली रहती हैं क्योंकि पश्चिम के कई जिलों में दलितों के बीच उनकी अच्छी पैठ मानी जाती है। क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र नाथ भट्ट कहते हैं कि आकाश के सामने चुनौतियां कम नहीं होंगी। उनको इन चुनौतियों से पार पाने के लिए कठिन मेहनत करनी होगी। जिस तरीके से कांशीराम ने पार्टी की स्थापना की थी 80 के दशक में की थी, उसके पीछे उनकी कड़ी मेहनत शामिल थी। उन्होंने लोगों को गोलबंद किया था। उन्होंने जातीय गोलबंदी का तरीका अपनाया। तब उनके नारे हुआ करते थे तिलक तराजू और तलवार इनको मारे जूते चार। पहली बार बसपा को 13 एमएलए 1989 में मिले थे।
भट्ट ने कहा कि, कांशीराम कहते थे कि पहला चुनाव हारने के लिए होता है, दूसरा हरवाने के लिए और तीसरा जीतने के लिए। इसी रणनीति पर उन्होंने काम किया। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी की नींव में आक्रामक राजनीति की नींव रखी थी। यही कारण था कि महज कुछ विधायकों से शुरू होने वाली बसपा 90 का दशक आते आते एकाएक सत्ता की दोड़ में शामिल हो गई थी। वीरेंद्र नाथ भट्ट साफ तौर पर कहते हैं कि, समय के साथ ही सत्ता पाने के लिए बसपा ने अपनी विचारधारा से समझौता कर लिया था जिसका खामियाजा उनको भुगतना पड़ा। 1995 के बाद 2003 आते आते बसपा ने अपनी धारणा बदली। हाथी नहीं गणेश है ,ब्रह़मा विष्णु महेश है। पार्टी की मूल विचारधारा को त्याग दिया था। दलितों पर अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधन की वजह से दलितों से दूरियां बढ़ने लगी. इसका फायदा अन्य दलों ने उठाना शुरू किया जिसका खामियाजा बसपा को उठाना पड़ रहा है।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि परिवार से किसी को उत्तराधिकारी नहीं बनाने का कभी दावा करने वालीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को विरासत सौंपने का निर्णय लेने के दौरान पार्टी पदाधिकारियों को सख्त संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि मैंने जब भी किसी को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी, वह खुद को मेरा उत्तराधिकारी समझने लगा। पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ वह इसी तरह पेश आता था। इसी वजह से उपजे कंफ्यूजन को खत्म करने के लिए मैंने आकाश आनंद को उत्तराधिकारी बनाया है।
दरअसल, मायावती के इस निर्णय के तमाम निहितार्थ भी हैं। वह अक्सर बहुजन समाज से ही किसी को अपना उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा भी करती रहीं लेकिन बीते करीब एक दशक में उन नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया जिन पर उन्हें बहुत भरोसा था। स्वामी प्रसाद मौर्या, बाबू सिंह कुशवाहा, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, लालजी वर्मा, रामअचल राजभर, नकुल दुबे जैसे अधिकतर बसपा के दिग्गज नेताओं ने भाजपा, सपा और कांग्रेस का दामन थामा जिससे पार्टी को अंदरखाने खासा नुकसान सहना पड़ा।
भाजपा में गए अधिकतर नेता अपने साथ उन बसपा नेताओं को भी ले गए जो कभी सपा को धूल चटाने का काम करते थे। इससे यूपी के साथ पड़ोसी राज्यों में अपनी अलग पहचान बनाने और विधानसभा चुनाव में कई सीटें जीतने वाली बसपा का जनाधार कम होता चला गया। यूपी में चार बार सरकार बनाने वाली बसपा को वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में महज एक सीट से ही संतोष करना पड़ा। तमाम नेताओं के दूसरे दलों में जाने से पार्टी के वोट बैंक पर भी असर पड़ा और कभी 28 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल करने वाली बसपा यूपी में करीब 12 प्रतिशत पर ही सिमट गयी। उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी खतरे में पड़ गया।
बसपा सुप्रीमो ने अपने भाई आनंद कुमार को भी नेशनल कोआर्डिनेटर बनाया था, हालांकि कई वित्तीय मामलों में फंसने की वजह से उन्होंने भतीजे आकाश आनंद को ही पार्टी की कमान सौंपने का अहम निर्णय लिया है। हालिया विधानसभा चुनाव में आकाश आनंद को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी जिसे उन्होंने बखूबी पूरा भी किया। उन्होंने कई बड़ी जनसभाएं करते हुए पार्टी के जनाधार को बढ़ाने का प्रयास भी किया हालांकि पार्टी को उम्मीद के मुताबिक इन राज्यों में सफलता नहीं मिली।
हाल ही में बहुजन समाज पार्टी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लग गई है। मायावती ने 2024 का चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर रखी है। फ़िलहाल मायावती न एनडीए और न इंडिया अलायंस के साथ जाने के मूड में हैं। पार्टी आम तौर पर चुनाव से काफ़ी पहले अपने प्रत्याशियों की घोषणा करती आई है। माना जा रहा है कि 2024 के लिए भी बसपा प्रत्याशियों के नाम तय कर सकती है। आकाश आनंद की घोषणा से ठीक एक दिन पहले पार्टी ने सफ़ाई अभियान भी चलाया कब अमरोहा से सांसद दानिश अली को अनुशासनहीनता के आरोप से पार्टी से बाहर कर दिया गया। अब लोकसभा चुनाव में बसपा के सामने बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती है जिसमें अब आकाश आनंद की ज़िम्मेदारी भी बड़ी होगी।