कहानी- दीपावली

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लक्ष्मीकान्त जी का छोटा-सा सुखी परिवार था। एक बेटा अभिषेक तथा एक पुत्री बिन्दु। दोनों ही अत्यंत मेधावी बच्चे थे। अभिषेक ने बी.एस.सी. पास कर ली थी, बिन्दु हायर सेकण्डरी की परीक्षा दे रही थी।
बिन्दु का विचार आगे चलकर डॉक्टर बनने का था, प्रयत्न तो कर ही रही थी,  उसके साथ ही उसकी कक्षा में सलमा पढ़ती थी, दोनों की खूब ही पटती थी, सलमा भी पढ़ाई में सदा प्रथम श्रेणी में पास होती थी। थी भी खूब चुलबुली और मस्त। बात-बात पर मजाक करना और हंसना-हंसाना उसकी आदत थी। बिन्दु और सलमा की दोस्ती के कारण एक दूसरे के घरों में आना-जाना भी आरंभ हो गया था। सलमा की अम्मी और अब्बा भी बिन्दु के यहां कभी-कभी मिलने आ जाया करते थे। दोनों के घर काफी दूर-दूर थे। पैदल आना-जाना संभव नहीं था पर दोनों घरों में स्कूटर होने से विशेष परेशानी नहीं होती थी।
बिन्दू की मम्मी सुधा रानी पुराने विचारों की महिला थीं, उन्हें बिन्दु का सलमा से मिलना-जुलना अधिक पसंद नहीं था। विशेष तौर पर बिन्दु के सलमा के घर जाकर खाने-पीने से वे बेहद चिढ़ती थीं। स्वयं भी वे बाहर किसी के यहां खाती नहीं थीं। व्रत, उपवास आदि में श्रद्धा एवं विश्वास रखती थीं, यही कारण था कि सलमा के अपने यहां आने पर वे कुछ तनावग्रस्त-सी हो जाती थी।
एक दिन अभिषेक ने अपने कुछ मित्रों के साथ पिकनिक पर जाने का कार्यक्रम बनाया। शहर से पन्द्रह-बीस किलोमीटर दूरी पर एक बड़ा ही सुंदर झरना गिरता था, उसके चारों ओर हरियाली के झुरमुट फैले थे। पास ही एक छोटा-सा शिव मंदिर भी था। वहां जाने की बिन्दु की भी बड़ी इच्छा थी। वह बोली- भैया! ऐसा कार्यक्रम बनाओ कि मैं भी आपके साथ चल सकूं।
अभिषेक बोला- देख भाई बिन्दु मेरे साथ मेरे पांच-छह दोस्त चल रहे हैं, तुम चलना चाहती हो तो अकेले तुझे तो मैं लेकर जाऊंगा नहीं। हां, अपनी कुछ सहेलियों के साथ ले लो तो हम एक छोटी बस, मेटाडोर या टेंपो कर लेंगे, अभी तो हम लोग अपने-अपने स्कूटरों पर जाने की सोच रहे हैं। बिन्दु ने मां से कहा तो वे खूब नाराज होने लगीं।
‘आज दीवाली है, त्यौहार का दिन है, घर में रहकर कामकाज में हाथ बंटाओ, आज के दिन कहीं जाने की भला क्या तुक है?Ó
‘मां दीवाली का त्यौहार तो रात को मनाया जाता है, दो-तीन घण्टों की तो बात है, घर में रहेंगे तो दोपहर को सो ही तो जाएंगे न? उसी समय में हम थोड़ी मौज कर लेंगे, इसमें तुम्हारा क्या बिगड़ेगा? जो काम करवाना है, अभी बता दो न? करके ही जाऊंगी, बस! बिन्दु तुनक कर बोली थी।Ó
‘फिर लड़कों के साथ जाने की क्या जरूरत है?Ó
‘मां आप भी हद करती हैं, भैया हैं तो साथ में? छह फुटा जवान संरक्षक साथ भेज रही हो, फिर भी तुम्हें चैन नहीं, फिर मां अकेले कहीं जाने से तो लड़कों के साथ जाना ही ठीक रहता है, वह अपने साथ आई लड़कियों पर किसी भी प्रकार की आंच नहीं आने देते।Ó बात कुछ अंश तक तो सही ही थी। बड़े-बड़े बच्चों के आगे मां बोलती भी क्या? चुप रह गई थी। सलमा ने भी बड़ी मुश्किल से अपनी अम्मी से पिकनिक पर जाने की इजाजत ली। इन्दू, दिव्या, कांता और संगीता के साथ-साथ उनके भाई भी चलने को तैयार हो गए। करते-करते इतने ज्यादा लड़़के-लड़कियां हो गए कि बस के साथ-साथ एक-दो स्कूटर भी लेने पड़े। खाने-पीने का काफी सामान साथ था। कचौडिय़ां, पूरियां, चटपटी मसालेदार आलू की सब्जी, गुलाब जामुन, बर्फी, नमकीन, फल पेस्ट्रीज आदि। अभिषेक को चाय पीने की आदत थी, उसने बिन्दु-सलमा को अन्य लड़के-लड़कियों के साथ बस में बैठा दिया और स्वयं अपने एक दोस्त करतार के स्कूटर पर पीछे बैठ गया। बोला ‘हम तो भई, कहीं रुककर चाय पीएंगे तब तुम्हारी बस के साथ आकर मिल भी जाएंगे, देखो हमारी स्पीड तुम लोग।Ó करतार यूं भी स्कूटर तेज चलाने के लिए प्रसिद्ध था।
बस पूरी रफ्तार से चली जा रही थी साथ ही करतार सिंह और अभिषेक एक ही स्कूटर पर चले आ रहे थे, तभी उन्हें सड़क के किनारे एक ढाबा दिखाई दिया। करतार सिंह ने झट से स्कूटर रोका और दोनों वहां जाकर चाय पीने बैठ गए। दूसरे स्कूटर  पर बैठे दोनों लड़के मुकेश व अब्दुल भी आ गए। अब्दुल, सलमा का चचेरा भाई था पर उसका घर गांव में होने के कारण वह शहर में रहकर ही पढ़ रहा था। अब्दुल, करतारसिंह, मुकेश व अभिषेक चारों ही बड़े पक्के दोस्त थे। चारों ने ढाबे पर साथ बैठकर गप्पें लगाते हुए चाय की चुस्कियां लीं और दोबारा स्कूटर स्टार्ट करके चल दिये। इस बार अभिषेक ने जिद की कि स्कूटर वह चलाएगा। करतारसिंह ने कहा यार तू इतना तेज नहीं चला पाएगा, मुझे ही चलाने दे। लड़कियों से मेरी शर्त लगी है, हार गए तो सबको एक-एक कोल्ड ड्रिंक पिलानी पड़ेगी पर अभिषेक नहीं माना। सभी को पांच बजे तक घर पहुंचने की जल्दी थी। घर जाकर दिये सजाने थे, बन्दरवार व कंडील टांगने थे, पटाखे चलाने थे। मां भी प्रतीक्षा में बैठी होगी।  
अब्दुल ने घड़ी देखी तो अभी केवल सवा चार ही बजे थे। पन्द्रह-बीस मिनट में तो घर पहुंच ही जायेंगे। अभिषेक व अब्दुल दोनों ने ही स्कूटर की रफ्तार काफी तेज कर रखी थी। चारों जोर-जोर से बातें करते, हंसते, ठहाके मारते मस्ती के मूड़ में चले जा रहे थे कि सामने से दनदनाता हुआ एक ट्रक आया और टक्कर मारता हुआ शूं से निकल गया। अभिषेक के स्कूटर पर बड़ी जोर की टक्कर लगी। स्कूटर उलट गया, ट्रक का आगे का हिस्सा अभिषेक के सीने से टकरा कर निकला था, स्कूटर से गिरते ही अभिषेक व करतारसिंह दोनों ही बेहोश हो गए। सड़क पर ज्यादा भीड़ तो नहीं थी पर जो लोग थे भी, उनमें किसी ने उन युवकों को उठाने की कोशिश नहीं की, सभी अनदेखा करके निकल गए। इसी बीच अब्दुल का स्कूटर काफी आगे निकल चुका था। जब अब्दुल व मुकेश ने देखा कि करतारसिंह व अभिषेक अचानक ही गायब हो गए हैं तो वे घबराए और पीछे लौटे। देखा तो सड़क पर दोनों मित्र औंधे पड़े थे। अभिषेक के शरीर से बेहिसाब खून बह रहा था। करतारसिंह भी बेहोश था, शायद उसे कुछ अन्दरूनी चोटें हों, जगह-जगह खरोचें तो लगी ही थीं, अब क्या करें? दो मिनट तक तो अब्दुल और मुकेश सन्न से खड़े रह गए। दीवाली के पर्व, त्यौहार के कारण लोग भी भागमभाग में लगे थे, कौन किसके पचड़े में पड़े? आखिर एक टेंपो जाता दिखाई दिया। मुकेश ने बड़ी याचना करके उसे रुकवाया पर पुलिस केस को ले जाने से ड्रायवर  ने इनकार कर दिया, भैया त्यौहार का दिन है, तुम मुझे देर करवाओगे। भैया त्यौहार का दिन है पुण्य कमा लो, तभी तो कह रहे हैं, दो जवान लड़कों की जान बचाने से इनकी मां व संबंधियों की कितनी आशीषें तुम्हें मिलेंगी। बड़ी अनुनय-विनय के पश्चात्ï वह उन दोनों को अपनी टेंपो में ले जाने के लिए तैयार हुआ। अस्पताल के बाहर ही छोड़ कर चले जायेंगे हम, हमारा नाम न फंसाना बीच में कहे देते हैं, वह जोर-जोर से कहता रहा। मुकेश ने देखा कि करतार का स्कूटर तो बुरी तरह टेढ़ा हो चुका है, टूट गया है। तो स्कूटर को भी टेंपो की छत पर लादा और खून से भरे दोनों लड़कों को लेकर वे राजकीय अस्पताल ले चले। बड़ी कठिनाई से बड़ी देर के पश्चात्ï जब सब बयान वगैरह ले लिए गए तो डॉक्टर ने उन्हें देखा और इमरजेंसी वार्ड में भर्ती किया। साथी लड़के-लड़कियों की बस भी वहां उन्हें खोजती हुई पहुंच गई थी।
डाक्टरों ने बताया कि करतार सिंह तो ठीक है पर अभिषेक ही हालत काफी खराब है और उसके लिए कई बोतल खून की आवश्यकता हो सकती है, ऑपरेशन के समय। ऑपरेशन तुरंत ही करना पड़ रहा था, बस तैयारी चल रही थी। सभी लड़के-लड़कियां किंकत्र्तव्य विमूढ़ से खड़े थे पर अब्दुल ने सबसे पहले आगे बढ़कर अपने खून की जांच करवाई। तभी सलमा भी आगे बढ़ आई, बिन्दु तो रो-रो कर बेहाल हुई अपनी सुध-बुध ही खो बैठी थी। मुकेश व संपत का रक्त अभिषेक के खून से मेल नहीं खाता था परंतु भाग्यवश अब्दुल का रक्त मेल खा गया, सभी लड़कों के चेहरों पर संतोष के भाव झलकने लगे। डॉक्टर ने तुंरत ही उसका खून लेने की इजाजत दे दी। बिन्दु व अन्य कई लड़के-लड़कियों ने भी अपने-अपने रक्त की जांच करवाई पर किसी का भी खून ठीक नहीं मिला। डॉक्टर बार-बार कह रहे थे कि हमें तुरंत और रक्त  की आवश्यकता है। इस गु्रप का खून किसका है वह अपना खून दे। करतारसिंह वहीं एक टेबिल पर लेटा था, उसने भी डॉक्टरों की बात सुनी, वह तुरंत उठकर बैठ गया सर आप मेरा खून ले लें, मेरा भी यही ब्लड गु्रप है, मुझे मालूम है।
‘पर तुम्हें तो खुद भी चोटें आई हैं, कमजोरी हो रही है। तुम्हारा खून कैसे लें?Ó पर करतार नहीं माना सर यह जरा-सी कमजोरी क्या मायने रखती है, जब मेरा यार मर रहा है, आप देर न करें, तुरंत मेरा खून लें।
 डॉक्टरों ने अब्दुल और करतार का खून लेकर अभिषेक के शरीर में चढ़ा दिया। सलमा भी आगे बढ़ी- मेरा भी खून ले लें सर। उधर, शाम ढल रही थी। अभिषेक की मां और पिताजी पूजा की थाली सजाये लक्ष्मीजी के फोटो के सामने बैठे थे। एक ओर दियों में सरसों का तेल व बत्तियां लगा रखी थीं, साथ ही मोमबत्तियां व माचिस रखी थी। थाली में पांचों मेवा, पांचो फल, पांच प्रकार की मिठाइयां, पान, सुपारी, नारियल, रोली, चावल इत्यादि रखा था। पिताजी नाराज हो रहे थे, त्यौहार के दिन का भी ख्याल नहीं आजकल के बच्चों को। आज ही पिकनिक पर जाने की क्या जरूरत थी? न जाने कहां रह गए हैं, और तो और, बिन्दु भी साथ चली गई है, दीयों की पूजा का समय तो निकाल ही दिया है इन नालायकों ने। अब लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त भी निकला जा रहा है। न जाने कहां जाकर बैठ गए हैं। अब रात के समय कहां जाकर ढंूढंू? इतने सारे पटाखे दोनों जिद करके लाए थे, अब उन्हें कब चलाएंगे? आस-पड़ोस के सभी घरों में दिये लग चुके हैं, पटाखे चलाए जा रहे हैं, एक हमारे ही घर में अंधेरा है, पता नहीं कहां अटक गए हैं? मां अलग डरी-डरी-सी चुप बैठी थी। त्यौहार का दिन एक तो बच्चों के लिए मन घबरा रहा था कहीं कुछ हो न गया हो ऊपर से घर में कलह-क्लेश होने का डर। झुंझलाहट तो उन्हें भी कुछ कम नहीं हो रही थी पर कर भी क्या सकती थीं?
इतने में ही एक स्कूटर वहां आकर रुका। उसमें बिन्दु किसी लड़के के साथ उतरी।  बिन्दु ने अन्दर आकर सारा समाचार मां और पिताजी को सुनाया तो वे घबराये हुए उनके साथ अपने स्कूटर पर चल दिए। अस्पताल में जाकर देखा तो वहां अभिषेक के कई दोस्त-अब्दुल, करतार, राधेश्याम, संजय, समीर, अल्बर्ट, मनोहर आदि मौजूद थे। अभिषेक को अब सलमा का खून दिया जा रहा था। कई बोतलें खून की चढ़ाई जा चुकीं थीं। प्रशांत ने भी अपना खून दिया था। अब अभिषेक की हालत ठीक थी, खतरा टल गया था पर डॉक्टरों ने अभी किसी को भी बात करने से रोक रखा था।
सारे लड़के-लड़कियां मां-पिताजी को घेर कर खड़े थे। आप चिंता मत कीजिए, अभिषेक बिल्कुल ठीक हो जाएगा, हम सब मिलकर उसकी देखभाल करेंगे, हम हैं उसके साथ।
मां-पिताजी के नेत्रों में अश्रु भरे थे। आज दीवाली जैसे उमंगों भरे बड़े त्यौहार पर सभी लड़के और लड़कियां हमारे अभिषेक के लिए अपना-अपना त्यौहार न मनाकर अस्पताल में खड़े हैं, रक्त दे रहे हैं। यही तो मानवता है, जिसमें न किसी संप्रदाय का भेदभाव है और न ही जात-पांत का। मां ने सलमा को अपने हृदय से लगा लिया और पिताजी ने अल्बर्ट, करतार, अब्दुल और प्रशांत को। तभी सलमा के माता-पिता मिठाई का डिब्बा व कुछ पटाखे के थैले ले आए। लीजिए सब लोग मुंह मीठा कीजिए। दीवाली के दिन अभिषेक बेटा आपको वापस मिला है। खतरा टल गया है, उसका नया जन्म हुआ, मुबारक हो। चलो सब  बच्चों, तुम पटाखे चलाकर खुशियां मनाओ। आखिरकार सबके लहू का रंग तो लाल ही है न? पिताजी व अम्मा गद्ïगद होते हुए कह रहे थे। 

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