बाल जगत- क्यों मनाते हैं दीपावली

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xcdewsaz
      हमारे देश में दीपावली का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। सभी लोग अपनी-अपनी परम्परानुसार दीपावली मनाते हैं। सारे भारत देश में दीपावली का त्यौहार पांच दिनों तक मनाया जाता है। दशहरे से ठीक बीस दिन बाद कार्तिक माह की अमावस्या को दीपावली का मुख्य त्यौहार मनाया जाता है लेकिन दीपावली पर्व का क्रम धनतेरस से प्रारंभ हो जाता है। कार्तिक माह की त्रयोदशी तिथि धनतेरस या धन्वंतरि जयंती के रूप में मनायी जाती है। इसके अगले दिन नरक चतुर्दशी का पर्व होता है। अमावस्या को दीपावली मनाने के बाद अगले दिन प्रतिपदा को गोवर्द्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव होता है। कार्तिक शुक्ल पथ द्वितीया तिथि को यम द्वितीया कहा जाता है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त और कलम-दवात की पूजा की जाती है। पूजा के बाद बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर भाई दूज का पर्व मनाती हैं।
                     दीपावली के दिन लोग देवी महालक्ष्मी का पूजन करते हैं तथा एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। तत्पश्चात् बालक-वृद्घ, युवक-युवतियां मिल-जुलकर पटाखें-फुलझडिय़ां-बमों आदि का आनंद उठाते हैं। चारों तरफ बमों, रॉकेटों, की आवाजें तथा फुलझड़ी पटाखों की रोशनियां बिखरती रहती हैं। मंदिरों में भी भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है। दीपावली पर प्राय: सभी वर्ग के लोगों को आर्थिक लाभ भी होता है। ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसकी कुछ न कुछ खपत दीपावली पर न होती हो। दीपावली ही  एकमात्र ऐसा त्यौहार है जो हमारे दो महान  अवतारों राम तथा कृष्ण से जुड़ा हुआ है। 
                 दीपावली का दूसरा दिन गोवर्धन पूजा का होता है। इस दिन गोबर से गोवर्द्धन पर्वत की अनुकृति बनाकर उसकी पूजा की जाती है। पशुओं को नहला-धुलाकर उनका श्रृंगार किया जाता है। मंदिरों में अन्नकूट मनाया जाता है जिसमें अनेक प्रकार की साग-सब्जियां एवं पकवान बनाए जाते हैं। मानव का पशुओं के प्रति प्रेम तथा करूणा प्रकट करने का यह एकमात्र त्यौहार है।
          दीपावली के त्यौहार के संबंध में किवदंती है कि (1) अयोध्या के राजा राम चौदह वर्ष के लम्बे वनवास के बाद लंका के राजा रावण को मारकर अपनी पत्नी सीता तथा भ्राता लक्ष्मण के साथ इसी दिन अयोध्या वापिस लौटे थे। उनके आने  की खुशी में अयोध्यावासियों ने अपने-अपने घरों को पूर्ण रूप से साफ-स्वच्छ तथा पवित्र कर रखा था। सारी अयोध्या नगरी रंग बिरंगे फूलों-पत्तियों तथा बंदनवारों से सज्जित थी। अयोध्या नगरी के समस्त घरों की मुंडेरों पर दीपकों की इतनी कतारें लगाकर रोशनी की गई थी कि अमावस्या की अंधेरी रात भी पूर्णमासी की उजली रात में बदल गई थी। ऐसा लगता था मानों देवराज इंद्र की इंद्रपुरी ही पृथ्वी पर उतर आई हो। इसीलिए हम आज भी भगवान  राम की याद में इस दिन अपने-अपने घरों तथा प्रतिष्ठानों की पूर्ण सफाई करते हैं तथा सारे शहर को रोशनी से जगमग करते हैं। (2) कुछ लोगों की मान्यता है कि इसी दिन मां दुर्गा ने शुम्भ-निशुंभ नामक दो भंयकर अत्याचारी राक्षसों का वध करके लोगों को भय मुक्त किया था। (3) कुछ लोगों के अनुसार इस दिन अर्द्धरात्रि के पश्चात् धन तथा वैभव की देवी महालक्ष्मी क्षीरसागर स्थित अपने निवास से विश्व-भ्रमण करने को निकलती है तथा जो भी घर उन्हें सबसे ज्यादा सुंदर, स्वच्छ तथा पवित्र लगता है उसी पर वह अपनी विशेष कृपा दृष्टि करके उसे धन-धान्य से पूर्ण कर देती है। इन्हीं मान्यताओं के कारण हम अपने घरों तथा प्रतिष्ठानों की संपूर्ण सफाई-रंग-रोगन तथा मरम्मत आदि करते हैं तथा उन पर सजावट तथा रोशनी करते हैं तथा रात्रि को महालक्ष्मी का पूजन करते हैं।
                  कारण चाहे कोई  भी हो यह सत्य है कि दीपावली के बहाने ही हमारे घरों तथा प्रतिष्ठानों की संपूर्ण रूप से साफ-सफाई हो जाती है। यदि दीपावली न हो तो संभवत हम कभी भी इतनी सूक्ष्मता से सफाई न कर सकें । यही नहीं सफाई के बहाने हमारे पूरे घरों तथा प्रतिष्ठानों में मौजूद सामान का भौतिक सत्यापन भी हो जाता है।
जो व्यक्तियों तथा दुकानदार दोनों के लिए लाभदायक होता है। अनुपयोगी वस्तुएं बाहर निकल जाने से जहां जगह हो जाती है वहीं अनेक गुम हुई वस्तुएं भी पुन: मिल जाती हैं। व्यापारीगण पुराने सामान को औने-पौने दामों में बेचकर लाभ कमा लेते हैं। लोग अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार इस त्यौहार पर कुछ न कुछ सामान अवश्य खरीदते हैं। इससे सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता है।
             यह त्यौहार हमें सिखाता है कि अंधकार पर सदैव प्रकाश की विजय होती है। एकता की शक्ति महान् होती है। मिल-जुलकर रहने से तथा काम करने से असंभव भी संभव हो जाता है। दीपक चाहे कितना ही नन्हा क्यों न हो। किंतु जब उनकी एक साथ कतारें लगाकर रोशनी की जाती है तो अमावस्या की घनी काली रात भी उनकी एकता के आगे हार मान लेती हैं। हम भी शिक्षा रूपी ज्ञान का दीपक जलाकर हमारे देश में फैले अशिक्षा तथा अन्धविश्वास के घने अंधेरों को दूर कर सकते हैं। यदि हम एक सौ करोड़ से अधिक लोग निहत्थे भी मिलकर एक साथ खड़े हो जायें तो किसकी मजाल है जो हमारी तरफ आंख उठाकर देखने का साहस कर सके। अत: हमें इस त्यौहार को मात्र मनोरंजन के लिए ही नहीं मनाना चाहिए अपितु एक महान् प्रेरणादायक त्यौहार के रूप में मनाना चाहिए।

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