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    हर त्यौहार समय के महत्व को प्रदर्शित करते हुये अपना एक विशेष स्थान रखता है। यह स्वत: एक ऐसा अवसर है जब इनमें विज्ञान की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। त्यौहार मनाना प्राचीन लकीर पर चलना अथवा अंध परंपरा है, ऐसा सोच इनके महत्व की अनभिज्ञता का द्योतक है। त्यौहार समाज में समरसता, भाईचारा एवं सौहार्द बढ़ाने हेतु मिलजुलकर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
यह खुशी का एक ऐसा अवसर है जो हमें उदासीनता का परित्याग करके सभी से गले मिलकर भेदभाव की नीति से दूर होकर लौकिक जीवन को सुखमय बनाने की ओर अग्रसर करता है। कार्तिक मास के शुभांकों में दीपावली का त्यौहार धनतेरस (त्रयोदशी) से प्रारंभ होकर नरक चतुर्दशी (रूपचौदस), दीपावली- अमावस्या (लक्ष्मी पूजन), तथा द्वितीय पक्ष (शुक्ल पक्ष) की प्रतिपदा (प्रथमा)  को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट का दिन, यम द्वितीया को भैय्या दूज को लेखनी पूजन के पश्चात इस त्यौहार का समापन माना जाता है। इन दिवसों में प्रत्येक दिन से धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है। यह पर्व यमराज से संबंध रखता है और त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिन सायंकाल ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देवताओं का पूजन कर दीपदान करने की परंपरा है। दीपदान के लिये गुप्त गृहों, रसोई व निवास स्थान, देव स्थान, वृक्षों के तले, जलाशयों, गौशाला, बगीचा-पार्क में तथा भवन की चारदीवारी के सभी प्रमुख स्थानों पर जलते दीप रखे जाते हैं और इससे हम आशा प्रकट करते हैं कि यमराज के पास जाने से मुक्ति मिले तथा श्री महालक्ष्मी सदैव हमारे घर पर अक्षय निवास करती रहे।
          धन तेरस के दिन यमराज के निमित्त घर के मुख्य द्वार पर सायंकाल दीपदान किया जाता है। इसके साथ यह धारणा है कि असामायिक मृत्यु कदापि न हो। इसी दिन धनवंतरि भगवान की जयंती मनायी जाती है। इस पवित्र दिन व्रत करके सूर्यवंशी राजा दिलीप को कामधेनु (गौ) की पुत्री नंदिनी की सेवा से पुत्र की प्राप्ति हुई थी। आज के दिन मुख्य रूप से सौभाग्यवर्धन हेतु घर के टूटे-फूटे बर्तनों के बदले नवीन बर्तन क्रय किया जाना अत्यंत शुभ माना जाता है।  धनतेरस के सूर्योदय से पूर्व यमुना में स्नान करने का महात्म्य माना गया है। पौराणिक कथानुसार धर्मराज यम की बहिन यमुना ने यम से वरदान प्राप्त किया था कि जो मुझ यमुना के जल में इस दिन स्नान करे उसे उनका (यम का) भय प्राप्त न हो। प्राचीन त्यौहारों में दीपावली पंच दिवसीय त्यौहार है, जिसका सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक महत्व है। यह ऐसा समय है जब हमारे कृषि प्रधान देश में फसल खलिहानों से घरों पर लायी जाती है। नवान्न की प्राप्ति में खरीफ के अन्न-दाल मुख्य धन (लक्ष्मी) के आने पर प्रसन्नता का होना स्वाभाविक है। इस त्यौहार पर अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों का बनाना और परस्पर वितरण करना सामाजिक दृष्टि से न केवल धार्मिक प्रदर्शन है, अपितु समानता व प्रेमभाव उत्पन्न करने वाला है। धर्म शास्त्री सनत्सुजात ऋषि का कथन है कि प्रमादी और आसुरी संपत्ति वाले मनुष्य मृत्यु (यमराज) से पराजित है, परंतु अप्रमादी, दैवी संपदा वाले महात्मा ब्रह्मïा स्वरूप हो जाते हैं। प्रमाद से भिन्न यम को मृत्यु कहते हैं और हृदय से दृढ़तापूर्वक पालन किये हुये ब्रह्मïचर्य को अमृत मानते हैं। यह देवता पितृ-लोक में शासन करते हैं। वह पुण्य कर्म वालों के लिये सुखदायक और पाप कर्म वालों के लिये भयंकर हैं। आगे यह भी कहा है कि त्यौहार वाली त्रयोदशी शुभाचरण की देहरी हैं जो जीवन में आगे बढऩे का मार्ग प्रशस्त करती हैं।  हमें यह जानने का अवसर मिलता है कि पुण्य व पाप जो स्वर्ग-नरक के रूप में दो अस्थिर फल हैं। उनका भोग करके मनुष्य जगत में जन्म लेता हुआ तद्नुसार कर्मो में लग जाता है। फिर भी धर्म की गति अति बलवान है। धर्माचरण कर्ता को समयानुसार अवश्य ही सिद्धि प्राप्त होती है।  इस त्यौहार को मनाने से जीवन के सार्थक भाव का दर्शन होता है। लोक में ऐश्वर्य रूपी लक्ष्मी सुख का घर मानी गई हैं। उनका समुद्र मंथन से इसी दिन प्रादुर्भाव हुआ माना जाता है। इस मंथन से चौदह रत्न समुद्र में से निकाले गये थे।
          हमें इससे शिक्षा मिलती है कि परिश्रम से क्या नहीं मिल सकता। धन, वैभव की तो बात ही क्या, मनुष्य अमरत्व भी प्राप्त  कर सकता है। इसी के साथ पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। धन-धान्य की वृद्धि हो ताकि जीवन सुखी बने।
 

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