
एक दिन मेरी पत्नी के मोबाइल पर एक कॉल आई कि हम सदर थाने से बोल रहे हैं । उसने फोन मुझे दे दिया कि आप बात करो । मैंने पूछा, क्या बात है तो उसने कहा कि हमने चार लड़के ड्रग्स सप्लाई करते हुए पकड़े हैं. एक ने आपका नंबर दिया है और कहा है कि मेरे पापा को बता दो । वो पुलिसिया रौब से बात कर रहा था, बोला कि हम इन्हें अदालत में पेश करने जा रहे हैं, आपको बताने के लिए फोन किया था । मैंने कहा कि किस थाने से बात कर रहे हो तो वो बोला कि आपको पता नहीं है कि सदर थाना कहां है । मैंने कहा कि हमारे यहां कोई सदर थाना नहीं है और मेरा एक बेटा है जो अभी घर में ही है । उसने गुस्से से कहा कि फोन रख दो । मुझे उस दिन अहसास हुआ कि कैसे ये लोग आम जनता को डिजिटल अरेस्ट करके कंगाल कर रहे हैं ।
डिजिटल अरेस्ट साइबर स्कैम का सबसे नया रूप है जिसमें अपराधी विधि प्रवर्तन अधिकारी या सरकारी एजेंसियों जैसे, सीबीआई, ईडी, पुलिस, नारकोटिक्स ब्यूरो की नकली पहचान बनाकर आम जनता के साथ ठगी करते हैं । ये लोग लोगों को फोन करके दावा करते हैं कि आपके या आपके किसी पारिवारिक सदस्य के खिलाफ मामला दर्ज हो गया है । अपने आरोपों को विश्वसनीय बनाने के लिए ये लोग नकली सरकारी कार्यालयों की व्यवस्था बनाते हैं । ये लोग ऐसे कई तरीके इस्तेमाल करते हैं जिससे कि पीड़ित को पूरा विश्वास हो जाता है कि वो सच में किसी सरकारी विभाग के अधिकारियों से बात कर रहा है । ये लोग ईमेल, मैसेजिंग एप के माध्यम से नकली वारंट, लीगल नोटिस और अन्य सरकारी दस्तावेजों से साबित कर देते हैं कि आप किसी अपराध में फंस गए हो । आरोप इतना गंभीर होता है कि आपको लंबी सजा हो सकती है. इसके अलावा आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी खत्म हो सकती है । ये लोग आदमी को इतना डरा देते हैं कि वो उनकी हर बात मानने को विवश हो जाता है । ये लोग कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद इतने पेशेवर तरीके से बात करते हैं कि उससे कहीं ज्यादा पढ़ा-लिखा व्यक्ति इनका शिकार बन जाता है ।
नई दिल्ली में एक बुजुर्ग को डिजिटल अरेस्ट करने का मामला सामने आया है जिसमें उससे 42 लाख रुपये की ठगी कर ली गई । अपराधियों ने बुजुर्ग को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में नाम आने को लेकर धमकाया था । इस मामले में तीन आरोपियों को पकड़ा गया है । पीड़ित 80 साल का सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी था जिससे आरोपियों ने ईडी/सीबीआई अधिकारी बनकर ठगी की थी । आरोपियों ने सुनियोजित तरीके से अपने जाल में फंसाकर उसकी जीवन भर की पूंजी लूट ली थी । ऐसे ही एक मामले में जम्मू के एक व्यापारी से मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में फंसाने की धमकी देकर 4.44 करोड़ रुपये ठग लिए गए । अपराधियों ने उसे कहा कि उनके आधार कार्ड और सिम कार्ड का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग में हुआ है । पन्द्रह दिन पहले दिल्ली में डिजिटल अरेस्ट का अब तक का सबसे बड़ा मामले सामने आया है । साउथ दिल्ली के गुलमोहर पार्क में रहने वाले सेवानिवृत्त बैंकर नरेश मल्होत्रा को साइबर ठगों ने डेढ़ महीने तक डिजिटल अरेस्ट में रखकर 23 करोड़ रुपये की ठगी कर ली है । देखा जाए तो यह मामला सिर्फ इसलिए सबसे बड़ा नहीं है कि इसमें 23 करोड़ रुपये की बड़ी रकम की ठगी की गई है बल्कि इसलिए भी यह बड़ा है क्योंकि इसमें पीड़ित को अपराधियों ने डेढ़ महीने तक डिजिटल अरेस्ट किया हुआ था । इस दौरान ठगों ने उनकी जीवन भर की कमाई लूट ली थी ।
हर साल ऐसे हजारों मामले सामने आ रहे हैं जिसमें अपराधी लोगों को डिजिटल अरेस्ट करके उनकी जीवन भर की कमाई पर हाथ साफ कर रहे हैं । 2021-2024 के दौरान साइबर अपराधों में लगभग 30000 करोड़ रुपए लूटने का अनुमान है । साइबर ठग लोगों को डराने-धमकाने के नए-नए तरीकों से लूट रहे हैं। ये लोग इतने शातिर तरीके से काम करते हैं कि पुलिस के लिए इनको पकड़ना बहुत मुश्किल होता है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस बारे में जनता को आगाह किया है कि वो ऐसे झांसों में आकर अपनी मेहनत की कमाई को न लुटाए। पुलिस कई माध्यमों से जनता को जागरूक कर रही है कि डिजिटल अरेस्ट जैसा कुछ नहीं होता। पुलिस का कहना है कि वो किसी को भी डिजिटल अरेस्ट नहीं करती है। सवाल यह है कि लोग क्यों डिजिटल अरेस्ट का शिकार बन रहे हैं।
डिजिटल अरेस्ट के बढ़ते मामले बता रहे हैं कि देश की जनता में सरकारी व्यवस्था का कितना डर है । इससे पता चलता है कि देश की जनता सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों से कितनी डरी हुई है । जनता में इतना डर है कि वो न तो अदालत पर भरोसा कर रही है और ही उसे पुलिस पर भरोसा है । सबसे बड़ी बात यह है कि लोग यह जानते हुए भी कि उन्होंने कुछ नहीं किया है, अपनी जीवन भर की कमाई छुटकारा पाने के लिए दे देते हैं । वास्तव में इसके पीछे यह धारणा काम कर रही है कि अगर उन्हें झूठे मामले में भी फंसा दिया गया तो उन्हें अदालत से भी राहत मिलने वाली नहीं है । हमारे मुख्य न्यायाधीश लगातार बयान दे रहे हैं कि देश संविधान से चलेगा लेकिन ऊंचे पद पर बैठे हुए लोगों को पता नहीं है कि देश की सच्चाई क्या है । कहने को तो देश में न्यायपालिका है लेकिन सच्चाई यह है कि न्यायपालिका के पास 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं । अगर आम नागरिक राहत पाने के लिए अदालत का रुख करता है तो उसे पता नहीं है कि उसके मामले की सुनवाई कब तक होगी ।
दूसरी बात यह है कि आम जनता जानती है कि झूठा मामला दर्ज होने पर भी सालों तक अदालत में चक्कर काटने पड़ते हैं । देश 1947 में आजाद हो गया था लेकिन वास्तविक आजादी अभी भी बहुत दूर है । पुलिस का रवैया आज भी अंग्रेजी राज वाला बना हुआ है । गरीब आदमी अपने खिलाफ हुए अपराध की रिपोर्ट लिखाने थाने ऐसे जाता है, जैसे वो ही अपराधी है । सब जानते हैं कि गरीब आदमी के साथ पुलिस थाने में कैसा व्यवहार होता है । डिजिटल अरेस्ट में अपराधी जनता के डर का फायदा उठा रहे हैं । वो अच्छी तरह से जानते हैं कि देश की जनता सरकारी अधिकारियों से कितना डरती है । उन्हें पता है कि अदालतों पर जनता को भरोसा नहीं रह गया है क्योंकि वहां जनता न्याय पाने के लिये जाती है तो उसे न्याय इतनी देरी से मिलता है कि वो अन्याय के बराबर हो जाता है । राष्ट्रपति मुर्मू जी ने कहा था कि देश की न्यायपालिका की ऐसी हालत है कि यहां एक थप्पड़ मारने पर गरीब आदमी सालों तक जेल में सड़ता रहता है लेकिन अमीर आदमी कत्ल करके भी आजाद घूमता है । सबसे बड़ी बात उन्होंने यह बात सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के सामने कही थी । उन्होंने कहा था कि आप लोग इस मामले में कुछ करिये लेकिन सवाल यह है कि क्या कुछ किया गया है ।
डिजिटल अरेस्ट के मामले बता रहे हैं कि सिर्फ गरीब आदमी ही नहीं बल्कि सुशिक्षित और सरकारी व्यवस्था से निकले हुए लोगों में भी सरकारी विभागों का डर बहुत ज्यादा है । डिजिटल अरेस्ट के मामले सिर्फ पैसों की लूट नहीं है बल्कि पूरी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह है कि पिछले 78 सालों में यह व्यवस्था जनता का विश्वास क्यों हासिल नहीं कर पाई है । जब कोई पुलिस वाला किसी रेहड़ी वाले से सामान खरीदता है तो रेहड़ीवाला उससे पैसे मांगते हुए डरता है । राष्ट्रपति मुर्मु जी ने कहा था कि गरीब आदमी न्याय पाने के लिये जब अदालत जाता है तो उसके घर के बर्तन तक बिक जाते हैं । यही बात पहले अस्पतालों के लिए कही जाती थी,सरकारी योजनाओं के कारण गरीब आदमी इलाज के खर्च से बच गया है लेकिन अदालतों में आज भी वही हालत है । सिर्फ गरीब आदमी नहीं बल्कि मध्य वर्ग का व्यक्ति भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाने की बात सोच नहीं सकता । बाबा साहब अंबेडकर ने जब न्यायपालिका की संविधान में व्यवस्था की होगी तो उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा कि न्यायपालिका सिर्फ अमीरों को न्याय देने तक सीमित रह जाएगी । सच्चाई तो यह है कि न्यायपालिका में न्याय मिलता नहीं है बल्कि खरीदना पड़ता है । वकीलों की फीस इतनी ज्यादा है कि सम्पन्न व्यक्ति भी अदालत जाने से पहले कई बार सोचता है ।
अगर न्यायपालिका अपना काम सही तरीके से करना शुरू कर दे तो लोगों में सरकारी व्यवस्था का डर खत्म हो सकता है । उन्हें भरोसा होना चाहिए कि अगर व्यवस्था उन्हें गलत तरीके से किसी मामले में फंसाती है तो न्यायपालिका उनको न्याय देगी । सवाल यही है कि जनता में यह भरोसा कैसे पैदा होगा और कब पैदा होगा । ये तो न्यायपालिका को ही तय करना है । यह कहने से काम चलने वाला नहीं है कि देश कानून से चलेगा और संविधान से ऊपर कोई नहीं है । गरीब जनता जानती है कि देश कानून से चल रहा है या नहीं । देश के नेताओं को भी इस पर विचार करने की जरूरत है कि सरकारी विभागों का जनता में इतना ज्यादा डर क्यों है । वास्तव में जब किसी व्यक्ति को सरकारी विभाग गलत तरीके से किसी मामले में फंसा देते हैं तो उसके लिए उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है । दूसरी बात यह है कि निर्दोष साबित होने पर झूठा मामला बनाने की जवाबदेही तय नहीं की जाती । व्यवस्था में सुधार की जरूरत क्यों है, ये डिजिटल अरेस्ट के मामले बता रहे हैं ।
राजेश कुमार पासी