
संकल्प ही जीने का आधार है । संकल्प ही हमारी अंतरात्मा की शक्ति है । संकल्प ही हमें जीवन की ऊंचाइयों तक पहुंचाता है । संकल्प से ही हमारी पहचान बनती है । संकल्प ही हमारा जीवन है । संकल्प ही हमारे दिवंगत होने के बाद हमारे नाम को बनाए रखता है। संकल्प ही मानव जीवन की मर्यादा है । संकल्प ही हमारे सद्कर्मों को सुनिश्चित करता है। इतिहास के पन्नों पर लिपिबद्ध हो जाता है।
हम बहुत सारे देवी-देवताओं को मानते हैं । उनकी पूजा करते हैं , उनकी उपासना करते हैं । चंदन , पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य , आरती का दौर चल पड़ता है। हम जो त्यौहार मनाते हैं , उनमें शिवरात्रि , रामनवमी, लक्ष्मी जी की पूजा, सरस्वती जी की पूजा, मातृशक्ति की उपासना , गणेश जी की पूजा, नवरात्र और भी बहुत सारे देवी-देवताओं के लिए साधना करते हैं ।
मगर इतना सबकुछ होने के बाद भी हमारी युवा पीढ़ी हकीकत को अपने अंदर उतारने में असमर्थ हैं । त्यौहारों में खुशी मनाते हैं और त्यौहारों से ही घर के उन लोगों को अलग कर देते हैं, जो आश्रित रहते हैं। जैसे माता-पिता, भाई -बहन। यह बहुत दुखद विषय है। माता-पिता व आश्रित कुछ कमाई कर लेते हैं , या उनके पास भरण – पोषण का कोई आधार होता है तो उन्हें राहत मिल जाती है , वरना उन्हें पेट भर अन्न भी खाने को नहीं दिया जाता । जीर्ण-शीर्ण होकर माता-पिता व आश्रित चल बसते हैं तो हमारी युवा पीढ़ी जो बेटा-बहू , बेटी- दामाद आदि के रूप में विद्यमान रहते हैं , उनके होश लौटते हैं । उन्हें लगता है कि यह हमने क्या कर डाला? जहां उन्हें बीस -तीस साल जिंदा रखा जा सकता था , वहीं हमारी वजह से काल- कवलित हो चुके हैं। अब उनकी आत्मा तड़प रही होगी । अब उनकी आत्मा भटक रही होगी ।
हां मृतात्माओं के तड़पने – भटकने वाले विषयों पर मेरी ज्यादा पकड़ नहीं है, मगर दुर्भाग्यवश जिम्मेदार जीवात्माएं तड़पने भटकने लगती हैं । उनके मन की शांति भंग हो जाती है । वे मृतकों के नाम पर बहुत कुछ खर्च करते हैं , पंडितों को दान देते हैं, गरीबों को भोजन कराते हैं, काशी , प्रयागराज , गया जी के न जाने कितने चक्कर लगाते हैं , इस कारण वे आसमान सर पर उठा लेते हैं, मगर दिल में सुकून का आना तो बेहद मुश्किल हो जाता है। कठोर दिल वाले व बिल्कुल बेपरवाह , किसी भी निम्न स्तर पर गिर जाने वालों को जल्द कुछ नहीं सूझता , मगर एक समय के बाद जब वे बुढ़ापे में व जटिल परिस्थितियों में पड़ जाते हैं तो हाथ मलने के सिवाय उनके पास और कुछ नहीं बचता ।
मृतकों के परिजनों के सामने एक ऐसी स्थिति आती है कि उन्हें सिर्फ और सिर्फ उनके मृतक ही जिंदा होकर चाहिए , उनकी सेवा करने का मौका चाहिए , उन पर प्रेम उड़ेलने का मौका चाहिए बस। मगर ऐसा मौका कभी नहीं मिलता । बहुत चेष्टा करने के बाद भी नहीं मिलता । अब पछताए क्या होत है जब चिडिय़ा चुग गई खेत । बड़ों की पुण्यतिथि को याद करना , दान-दक्षिणा देना ये सब काफी सकारात्मक बातें हैं । मगर खुद की ग़लती से बड़े बुजुर्गो का अपमान कर, उन्हें दाने-दाने के लिए तरसा कर, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर, वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाकर उनकी मृत्यु व बदहाली का कारण बनना कोई सकारात्मक परिणाम नहीं देता है । और इस तरह की मनोवृत्ति मनोवैज्ञानिकों के लिए दिन – प्रति दिन चुनौती बनती चली जा रही है । अंत में बस एक बात यह कि हम गलत करते हैं तो गलत परिणाम भुगतने हैं और सही करते हैं तो सही परिणामों को प्राप्त करते हैं ।
अभी चारों दिशाओं में मां भगवती का गुणगान गूंज रहा है । चारों दिशाएं ध्वनित हो रही हैं । जैसे कि शुरुआत में संकल्प की महिमा बताई गई है , ऐसे अच्छे दिनों में मां भगवती से प्रार्थना कीजिए , उनसे क्षमा याचना कीजिए , अपने अंदर के कलुष को आंसुओं से धो डालिए। अगर आप अपनों के प्रति सकारात्मक सोच रखते हैं तो सोने पर सुहागा। मन को शांत और प्रसन्नचित्त रखें । खुश रहें । खुद को संयमित रखने से पूरा समाज ही संयमित हो जाएगा।
या देवी सर्वभूतेषु शांति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।