
भारतवर्ष विश्व का सिरमौर है, भारतवर्ष का कण-कण पवित्र कर देने वाला है। कोई कहीं से भी आया, उसको भारतवर्ष ने शरण और ज्ञान दिया है। संस्कारों की अमृतधारा भारतवर्ष में बहती रही है और भविष्य में भी बहती रहेगी। यहां शरीर के रिश्ते नहीं बल्कि मानसिक चेतना और आध्यात्मिक चेतना के रिश्ते बनते हैं। विचार करें तो शरीर को यह धरा धाम छोड़कर जाना होता है और जब आप किसी के मन-मस्तिष्क की चेतना और उसकी अध्यात्म शक्ति बन जाते हैं तो वह युगों तक एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चलता-बहता रहता है।
भारतवर्ष में इतने संस्कार हैं कि इस पर जितनी चर्चा की जाए, उतनी ही कम है। बच्चे के पैदा होने से पूर्व ही हमारी सामाजिक व्यवस्थाओं में एक से एक सुंदर संस्कार हैं। इसलिए हमारी भूमि में विद्वानों अर्थात ज्ञानियों की कोई कमी नहीं है। लोकाचार और शास्त्राचार दोनों एक साथ चलते हैं। नामकरण संस्कार से लेकर अंतिम संस्कार तक की हर परिधि में पला-बढ़ा यह मानव रूपी जीव चलता फिरता संस्कारों का एक कलश है जिसमें दिनों-दिन अमृत बढ़ता जाता है, वृद्धावस्था तक यह ज्ञान कलश लबालब भर जाता है। मानव जीवन में भगवान का भजन और स्वयं की मुक्ति का मार्ग छिपा हुआ है।
बच्चे के पैदा होने पर नामकरण संस्कार वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ, ग्रह, नक्षत्र, राशि, तिथि, समय आदि का योग देखकर नामकरण संस्कार होता है। इसी आधार पर जीवन का ताना-बनता चला जाता है। इसी के आधार पर उसके जीवनसाथी का मिलन होता है। मुंडन संस्कार और फिर गुरुकुल ज्ञान परंपरा संस्कार, वर्तमान में शिक्षा अर्थात विद्यालय जाने का संस्कार जहां गुरु से ज्ञान प्राप्त करना, उनकी आज्ञा का पालन करना, ज्ञान अर्जन के साथ ही समाज की उन्नति में अपना कार्य करना। गुरु अर्थात शिक्षक ज्ञान के सभी पक्षों पर अपने शिष्य को तैयार कर उसे समाज सेवा में उतार देते हैं। विद्यालयों के बाहर लिखा मिलता है- शिक्षार्थ आइए,सेवार्थ जाइए। आप शिक्षा ग्रहण कर राष्ट्र की सेवा में जाएं, ऐसा संस्कार भारत की भूमि पर ही दिया जाता है। विद्यालय में विद्यार्थियों को सभी गुणों से पूर्ण कर गुरुजी विद्यार्थी को सेवा के लिए समाज में भेजते हैं।
भारतीय समाज में परिवार की परंपरा विश्व की सबसे सुंदर संस्कार व्यवस्था है। पाणिग्रहण संस्कार कर्म, शक्ति, काम, मोक्ष आदि सभीका संयोग है। माता-पिता की सेवा, संतान का लालन-पालन अपनी पीढ़ियों के लिए सही संस्कार और व्यवहार देना घर के बड़े बूढ़ों का कर्तव्य रहा है। उनका सामाजिक ज्ञान पुस्तक के ज्ञान से न होकर वास्तविक व्यवहार के साथ जुड़ा हुआ है। दादा-दादी, चाचा- चाचा, ताऊ-ताई, माता-पिता और उनके बच्चे सभी एक छत के नीचे रह रहे होते हैं। ऐसा पारिवारिक संस्कार विश्व के किसी भी देश में ना तो हुआ है और ना आने वाले युगों में होगा। इन सभी संस्कारों की जननी भारत भूमि है।
भारतीय समाज में हर स्थिति और हर क्षण संस्कारों का मेल है। हमारे तीज-त्यौहार, ऋतु चक्र का परिवर्तन दिन-रात, पूजा-पाठ सभी हमारे संस्कारों के अंग हैं। हम दिन के हर एक पहर और घड़ी में संस्कारों को देखकर कार्य करने वाले हैं। हमारी संत परंपरा संस्कारों का ज्ञान बढ़ाने का कार्य करती रही है। साधु-संत-महात्मा ज्ञान का प्रचार कर अध्यात्म चेतना को बल देते हैं। संस्कारों को पुनः जीवित कर देते हैं। किसी को निराश नहीं होने देते।
भारत भूमि संस्कारों का पुंज है। यहां हर क्षण संस्कारों से कार्य होता हैं। संस्कारों की अमृत धारा हर एक व्यक्ति में बहती है। गाय को रोटी देकर हाथ जोड़ लेना, हमारे संस्कार ही तो हैं। हमारे संस्कारों और ज्ञान परंपरा में पेड़-पौधे, जीव-जंतु, नदी-पर्वत आदि हैं। इस देश की पवित्र मिट्टी बहुत बड़ा कार्य करती है, भारत भूमि को प्रणाम। माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः का भाव हमेशा हमारे अंदर चलता रहता है।
भारतवर्ष में इतने संस्कार हैं कि इस पर जितनी चर्चा की जाए, उतनी ही कम है। बच्चे के पैदा होने से पूर्व ही हमारी सामाजिक व्यवस्थाओं में एक से एक सुंदर संस्कार हैं। इसलिए हमारी भूमि में विद्वानों अर्थात ज्ञानियों की कोई कमी नहीं है। लोकाचार और शास्त्राचार दोनों एक साथ चलते हैं। नामकरण संस्कार से लेकर अंतिम संस्कार तक की हर परिधि में पला-बढ़ा यह मानव रूपी जीव चलता फिरता संस्कारों का एक कलश है जिसमें दिनों-दिन अमृत बढ़ता जाता है, वृद्धावस्था तक यह ज्ञान कलश लबालब भर जाता है। मानव जीवन में भगवान का भजन और स्वयं की मुक्ति का मार्ग छिपा हुआ है।
बच्चे के पैदा होने पर नामकरण संस्कार वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ, ग्रह, नक्षत्र, राशि, तिथि, समय आदि का योग देखकर नामकरण संस्कार होता है। इसी आधार पर जीवन का ताना-बनता चला जाता है। इसी के आधार पर उसके जीवनसाथी का मिलन होता है। मुंडन संस्कार और फिर गुरुकुल ज्ञान परंपरा संस्कार, वर्तमान में शिक्षा अर्थात विद्यालय जाने का संस्कार जहां गुरु से ज्ञान प्राप्त करना, उनकी आज्ञा का पालन करना, ज्ञान अर्जन के साथ ही समाज की उन्नति में अपना कार्य करना। गुरु अर्थात शिक्षक ज्ञान के सभी पक्षों पर अपने शिष्य को तैयार कर उसे समाज सेवा में उतार देते हैं। विद्यालयों के बाहर लिखा मिलता है- शिक्षार्थ आइए,सेवार्थ जाइए। आप शिक्षा ग्रहण कर राष्ट्र की सेवा में जाएं, ऐसा संस्कार भारत की भूमि पर ही दिया जाता है। विद्यालय में विद्यार्थियों को सभी गुणों से पूर्ण कर गुरुजी विद्यार्थी को सेवा के लिए समाज में भेजते हैं।
भारतीय समाज में परिवार की परंपरा विश्व की सबसे सुंदर संस्कार व्यवस्था है। पाणिग्रहण संस्कार कर्म, शक्ति, काम, मोक्ष आदि सभीका संयोग है। माता-पिता की सेवा, संतान का लालन-पालन अपनी पीढ़ियों के लिए सही संस्कार और व्यवहार देना घर के बड़े बूढ़ों का कर्तव्य रहा है। उनका सामाजिक ज्ञान पुस्तक के ज्ञान से न होकर वास्तविक व्यवहार के साथ जुड़ा हुआ है। दादा-दादी, चाचा- चाचा, ताऊ-ताई, माता-पिता और उनके बच्चे सभी एक छत के नीचे रह रहे होते हैं। ऐसा पारिवारिक संस्कार विश्व के किसी भी देश में ना तो हुआ है और ना आने वाले युगों में होगा। इन सभी संस्कारों की जननी भारत भूमि है।
भारतीय समाज में हर स्थिति और हर क्षण संस्कारों का मेल है। हमारे तीज-त्यौहार, ऋतु चक्र का परिवर्तन दिन-रात, पूजा-पाठ सभी हमारे संस्कारों के अंग हैं। हम दिन के हर एक पहर और घड़ी में संस्कारों को देखकर कार्य करने वाले हैं। हमारी संत परंपरा संस्कारों का ज्ञान बढ़ाने का कार्य करती रही है। साधु-संत-महात्मा ज्ञान का प्रचार कर अध्यात्म चेतना को बल देते हैं। संस्कारों को पुनः जीवित कर देते हैं। किसी को निराश नहीं होने देते।
भारत भूमि संस्कारों का पुंज है। यहां हर क्षण संस्कारों से कार्य होता हैं। संस्कारों की अमृत धारा हर एक व्यक्ति में बहती है। गाय को रोटी देकर हाथ जोड़ लेना, हमारे संस्कार ही तो हैं। हमारे संस्कारों और ज्ञान परंपरा में पेड़-पौधे, जीव-जंतु, नदी-पर्वत आदि हैं। इस देश की पवित्र मिट्टी बहुत बड़ा कार्य करती है, भारत भूमि को प्रणाम। माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः का भाव हमेशा हमारे अंदर चलता रहता है।
डॉ. नीरज भारद्वाज