गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म प्रथम दिसम्बर को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के काटलुक गांव में हुआ था। बचपन में उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। रात्रि को कई बार दिया जलाने के लिए तेल तक के पैसे नहीं हुआ करते थे अत: सड़कों में लगी लैम्पों की रोशनी में उन्हें सर्द रातों में पढऩा पड़ता। गोपाल कृष्ण गोखले बचपन से ही मेहनती, परिश्रमी निष्ठावान थे। कानून की शिक्षा छोटी उमर में ही उत्तीर्ण कर दी और न्यू इंग्लिश स्कूल के टीचर बन गए। इन्हीं दिनों विष्णु प्रभाकर शास्त्री, लोक मान्य तिलक, अगरकर, चिपलूठाक्र जैसे लोगों ने देश की सेवा का संकल्प लिया और देश भर में शिक्षा प्रसार के लिए डेक्कन एजूकेशन सोसाईटी का गठन किया।
गोपाल कृष्ण गोखले इन लोगों से बहुत प्रभावित हुए और सारे सुख वैभव छोड़कर इस सोसाईटी के सदस्य बन गए और देश सेवा के मार्ग को अपने जीवन का अंग बना लिया। गोखले ने मन में ठान लिया कि वह भारतीय बच्चों को सच्चा राष्ट्र सेवक बनाएंगे। देश के बच्चों को देश प्रेम की शिक्षा देना और देश प्रेम तथा सेवा की भावना को क्रियात्मक रूप देने का रास्ता दिखलाने का उन्होंने प्रण कर लिया। इसी भावना को लेकर गोपाल कृष्ण गोखले के मन में मातृभूमि के लिए अटूट निष्ठा हो गई।
गोपाल कृष्ण गोखले नरम विचारों वाले थे इसी कारण अपने सम-सामयिक नेताओं लोकमान्य तिलक की गरम राजनीति के साथ उनका कभी मेल नहीं हो सका। रानाडे के नरम दल के साथ रहने के कारण तिलक जैसे गरम विचारों वालों के साथ उनकी सदैव टक्कर होती रही लेकिन गोखले साहब ने अपना धैर्य कभी नहीं छोड़ा था। जो बात उनके दिमाग को ठीक लगती उसे करने में वे कभी डरते नहीं थे। यद्यपि उनकी बात-बात पर आलोचना होती रहती थी लेकिन वह अपने धैर्य से कभी डगमगाए नहीं। गोखले कठिन से कठिन कार्य को हाथ में लेने से घबराते नहीं थे। पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखकर सार्वजनिक मंचों पर भाषण देकर वह भारतीय जनता को आजादी के लिए जागृत करते रहे। तत्कालीन मराठी पत्रिका ‘सुधारक’ में वे देश की राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए लेखन करते रहे और देश को आजाद कराने के लिए लगातार संघर्ष भी करते रहे।
कठोर बात को भी वह कोमल शब्दों में कहने की क्षमता रखते थे। जिस बात को गोखले की अंर्तआत्मा ठीक समझती थी उससे तिल भर भी उन्हें कोई डिगा नहीं सकता था। बम्बई लेजिस्टलेटिन कौंसिल में उन्होंने शासन सम्बंधी विभिन्न समस्याओं का अध्ययन किया, अपनी गहरी विनोद शक्ति, और भाषण के बल पर अंग्रेजों पर धाक जमा दी। किसानों के कर, तथा भूमि कर संबंधी ज्यादितयों पर वह लगातार कौंसिल में आवाज उठाते रहे। इम्पीरियल लेजिस्लेटिव एसेम्बली के सदस्य चुने जाने के पश्चात उनकी प्रतिभा में पहले से ज्यादा निखार आ गया और देश के सर्वव्यापी नेता के रूप में मान्यता मिलने लगी। लार्ड कर्जन जैसे कूटनीतिज्ञ का मुकाबला करते हुए उन्होंने नमक कर, सैनिक खर्च, यूनिवर्सिटी बिल इत्यादि के विरोध में पूरे जोर शोर से आवाज बुलंद की। अंग्रेज सरकार को दबाव में आकर नमक कर घटाना पड़ा था। गोखले के कई सुझावों को मानने के लिए विवश होना पड़ा।
किसानों, दीन दलितों के प्रति उनके दिल में दर्द रहता था। इन लोगों की भलाई को ध्यान में रखकर सरकार की कर और व्यय नीतियों को संशोधन करने के लिए वे सदा आवाज उठाते रहते थे। नमक कर घटाने के लिए उन्होंने बताया कि सरकार टैक्स के भार से किस प्रकार एक पैसे की नमक की टोकरी की कीमत पांच आने हो जातीे है। सारे देश की आंखें उनकी तरफ गईं अंग्रेजों द्वारा भारत में हो रही दमनकारी नीतियों का विरोध करते हुए उन्होंने जांच की मांग की।
अंग्रेज शासक लार्ड कर्जन भी गोखले की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तो गोखले को अपना राजनीतिक गुरुमान लिया था। गांधी जी ने लिखा है कि ‘राजनीति के क्षेत्र में जो स्थान गोखले जी ने मेरे हृदय में पाया वह कोई और न पा सका।‘
अंग्रेजों के कुशासन में देश की जो दुर्दशा हो रही थी गोखले ने उसका लम्बा खाका खींचा। उन्होंने कहा आज तो इस देश की शासन व्यवस्था द्वारा जनता के सच्चे हितों ्रको पीछे ढकेलकर सैनिक सत्ता, नौकरशाही, और पूंजीपतियों के हितों को पहला स्थान दिया जा रहा है और उसे यह सत्ता और बढ़ावा दे रही है। यह है एक देश के लोगों पर दूसरे देश के लोगों शासन की दशा। इसका असर और बुराईयां पैदा होने के सिवाय दूसरा हो ही नहीं सकता।
उन्होंने गांधी जी के कहने पर कई विदेश यात्राएं भी की। विदेशों में रहकर मानवता की सेवा करते रहे। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने भारतीयों की दशा का अध्ययन किया।
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने लाखों रुपए चंदे के रूप में एकत्रित करके गांधी जी को भेजे। गोखले जी ने हर क्षेत्र में देश की सेवा की। अपनी सौम्यता, मेहनत, परिश्रम और सच्चाई से इतने महान बने।
वह सभाओं और कौंसिलों की लड़ाई में बहुत चतुर समझे जाते थे। उनकी कलम में बहुत बल था सभी लोग उनका आदर किया करते थे।
गोखल जी प्राय: कहा करते थे कि सार्वजनिक जीवन का आध्यात्मिककरण अनिवार्य है। उन्होंने जो कहा सच करके बताया।