मैं कभी सिनेमा में नहीं आना चाहता था, मुझे किताबों से प्यार था: गुलजार
Focus News 9 October 2025 0
मुंबई, नौ अक्टूबर (भाषा) वरिष्ठ गीतकार और फिल्म निर्माता-निर्देशक गुलजार का कहना है कि उन्होंने कभी सिनेमा में करियर बनाने की कल्पना नहीं की थी क्योंकि उनका पहला प्यार हमेशा साहित्य रहा है।
फिल्म निर्माता सुभाष घई के फिल्म संस्थान ‘व्हिसलिंग वुड्स’ में बुधवार शाम को आयोजित ‘सेलिब्रेट सिनेमा 2025’ के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए गुलजार (91) ने कहा कि वह एक पाठक और लेखक बनने का सपना देखने वाले व्यक्ति के रूप में किताबों के प्रति गहराई से आकर्षित थे।
उन्होंने कहा, “मैं कभी सिनेमा में नहीं आना चाहता था और न ही सिनेमा के लिए लिखना चाहता था और मैं सिनेमा में काम के प्रस्तावों को ठुकरा देता था। मुझे किताबों का बहुत शौक था, मुझे किताबों से प्यार था। मैं खूब किताबें और साहित्य पढ़ता था।
“रावी पार”, “त्रिवेणी”, “बॉस्की का पंचतंत्र”, “एक्चुअली… आई मेट देम: ए मेमॉयर” जैसी किताबों के लेखक गुलजार ने कहा, “मैं विपश्यना लघु कथाओं की किताबों पर अपना नाम लिखवाना पसंद करता और देखता कि मेरा नाम किताब पर कैसा दिखता है? मैं फिल्में देखता था लेकिन मुझे सिनेमा से उतना प्यार नहीं था कि मैं निर्देशक बनना चाहता, यह प्यार तब शुरू हुआ जब मैं सिनेमा से जुड़ा।”
स्वतंत्रता-पूर्व पंजाब (अब पाकिस्तान में) में संपूर्ण सिंह कालरा के रूप में जन्मे गुलजार को भारतीय सिनेमा के सबसे काव्यात्मक कहानीकारों में से एक माना जाता है।
उन्होंने 1956 में अपना करियर शुरू किया और बिमल रॉय की फिल्म “बंदिनी” (1963) में एक गीतकार के रूप में अपनी शुरुआत की, जिसमें उन्होंने “मोरा गोरा अंग लई ले” गीत लिखा, जो तुरंत ही लोकप्रिय हो गया।
गुलजार ने बताया कि रॉय से उनकी मुलाकात उनके मित्र देबू सेन के कहने पर हुई थी, जो फिल्म निर्माता तथा प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र के सहायक थे।
उन्होंने कहा, “एक फिल्म बन रही थी जिसका नाम था ‘बंदिनी’, सचिन दा (एसडी बर्मन) शैलेंद्र से नाराज थे और मुझे याद है कि मैं साहित्य सभा में शैलेंद्र से मिला था, वह मुझसे वरिष्ठ थे।
गुलजार ने कहा, “उन्होंने एक बार मुझसे कहा था, ‘तुम्हें क्या लगता है…फिल्म उद्योग में काम करने वाले लोग अनपढ़ हैं? तुम बिमल रॉय के साथ काम क्यों नहीं करते, लोग बिमल रॉय के साथ काम करने के लिए तरसते हैं।’ वह मुझे बिमल रॉय से मिलवाने ले गए।”
उनके अनुसार, फिल्म निर्माता बिमल रॉय शुरू में इस बात को लेकर असमंजस में थे कि क्या वह “बंदिनी” के लिए गीत लिख सकते हैं क्योंकि रॉय वैष्णव कविता में पारंगत किसी व्यक्ति की तलाश में थे, जो ईश्वर के प्रति प्रेम पर केंद्रित एक भक्ति शैली है।
गुलजार ने कहा, “बिमल दा ने मुझसे हिंदी में कहा, ‘तुम लिखोगे?’ उनका व्यक्तित्व इतना विशाल था कि मैं बस यही कह सका, ‘मैं इसे लिखूंगा।’ फिर सचिन दा ने धुन दी और इस तरह ‘मोरा गोरा अंग लई ले मोहे शाम रंग दई दे’ गीत बना।”
“परिचय”, “कोशिश”, “आंधी”, “माचिस” और “हू तू तू” जैसी प्रशंसित फिल्मों के निर्देशक गुलजार ने कहा, उन्हें “बंदिनी” का एक गीत लिखने का मौका मिला क्योंकि बर्मन और शैलेन्द्र के बीच विवाद हो गया था, जिन्होंने फिल्म के अधिकतर गीत लिखे थे।
इसके बाद रॉय असमंजस में पड़ गए और उन्होंने उस समय के उभरते लेखक गुलजार को लेने का निर्णय लिया, जिनकी सिफारिश स्वयं शैलेन्द्र ने फिल्म निर्माता से की थी। वरिष्ठ लेखक-गीतकार के साथ फिल्म निर्माता सुभाष घई, गीतकार कौसर मुनीर और सलीम आरिफ भी थे। यह सत्र ‘कविता और संगीत’ पर आधारित था।
गुलजार ने कहा, “संगीत और कविता महत्वपूर्ण हैं, सिनेमा में भी ये मौजूद हैं क्योंकि ये हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। ये पीढ़ियों से हैं। दोनों माध्यम आज भी याद किए जाते हैं।”
उन्होंने भारतीय संगीत को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाने का श्रेय संगीतकार ए आर रहमान को दिया।
उन्होंने कहा, “शुरुआत में, जब हम अंतरराष्ट्रीय बाजारों में फ़िल्में निर्यात करते थे तो फिल्मों से गाने हटा दिए जाते थे लेकिन आज भारतीय संगीत अपनी लोकप्रियता के चरम पर पहुंच गया है और गाने जोड़ने की मांग बढ़ रही है और इसका श्रेय एआर रहमान को जाता है।”
गुलजार ने रहमान के साथ “जय हो”, “छैया छैया” और “तेरे बिना” जैसे लोकप्रिय गीतों पर काम किया है। उन्होंने कहा, “रहमान ने उनके शब्दों को व्यवस्थित करके इसके लिए एक बाजार बनाया और यह सब प्रासंगिक है।”
सत्र के बाद एक सवाल के जवाब में गुलजार ने कहा कि उन्होंने “समय के साथ चलना” सीख लिया है।
गुलजार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “मैंने अपने गुरु से जो सीखा है, उसे प्रस्तुत करता हूं और मैं किसी को कुछ दिखा नहीं रहा हूं, मैं तो बस खुद को उजागर कर रहा हूं। अगर कोई कुछ सीख सकता है तो यह उस पर निर्भर है। मैं युवा पीढ़ी से सीख रहा हूं। मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ हासिल किया है जो मैं अगली पीढ़ी को दे सकूं, मैं उनके साथ चलने की कोशिश कर रहा हूं और इस पीढ़ी से सीख रहा हूं।”
घई ने अपने संस्थान ‘व्हिस्लिंग वुड्स’ अकादमी में कविता और साहित्य का एक नया पाठ्यक्रम भी शुरू किया, जिसका उद्घाटन गुलजार, मुनीर और आरिफ ने किया।