आधुनिक जीवनशैली की देन है गठिया

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      आजकल की व्यस्त ज़िन्दगी, अनियमित दिनचर्या और गलत खानपान की देन है गठिया यानी  आर्थराइटिस । इस रोग के किसी भी रूप में जोड़ों में दर्द होने लगता है और सूजन दिखाई देने लगती है। जोड़ों में सूजन के कारण जोड़ों में दर्द और जकड़न होती है। जोड़ों के दर्द और आर्थराइटिस जैसी बीमारियां अपनी जीवन शैली में बदलाव लाकर दूर की जा सकती हैं। कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जिसके बारे में हमने सुन तो खूब रखा होता है पर बुनियादी जानकारी काफी कम होती है। इस कारण इनके इलाज में भी काफी लापरवाही होती है। आर्थराइटिस ऐसी ही एक बीमारी है, जिसका अर्थ है शरीर के जोड़ों में दर्द होना। इस रोग का देसी नाम है- गठिया। इसमें दर्द इतना तेज होता है कि पीड़ित मरीज को न केवल चलने-फिरने बल्कि घुटनों को मोड़ने में भी बहुत परेशानी होती है। इस बीमारी में घुटनों में दर्द होने के साथ दर्द वाले स्थान पर सूजन भी आ जाती है। कई अति बुद्धिमान लोग इस समस्या से पीड़ित होने पर बिना चिकित्सकीय सलाह के दवा की दुकान से मंगवाकर दर्द निवारक दवाएं लेनी शुरू कर देते हैं। यह एक ऐसी आदत है जो फौरी राहत हमें भले दे पर इससे आगे इलाज में काफी कठिनाई पैदा होती है।

बीमारी के बढ़ जाने पर चलने-फिरने या हिलने-डुलने में भी परेशानी होने लगती है। इसका प्रभाव प्राय: घुटनों, नितंबों, अंगुलियों और मेरू की हड्डियों पर पड़ता है। उसके बाद कलाइयों, कोहनियों, कंधों व टखनों के जोड़ों पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है। इस रोग से पीड़ित लोगों को न सिर्फ वजन कम करना चाहिए बल्कि खाने की मात्रा भी कम कर देनी चाहिए। शरीर का वजन जितना कम रहेगा, घुटनों का दर्द भी उतना ही कम रहेगा। इस रोग के पीड़ितों के लिए इससे बचाव के लिए एक जरूरी हिदायत यह है कि वे हल्के व सुपाच्य भोजन ग्रहण करें। जिस भोजन को खाकर गैस उत्पन्न हों, उनके सेवन से बचना चाहिए। यह रोग किसी एक कारण से नहीं होता है। वैसे विटामिन- डी की कमी से लोगों की अंगुलियों, घुटने, गर्दन, कोहनी के जोड़ों में दर्द की शिकायत आज आम बात हो गई है। इस तरह की कोई परेशानी आने पर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग झोलाछाप डॉक्टरों की गोलियों पर विश्वास करने लगते हैं। कुछ दिन राहत देने के बाद ऐसी गोलियां और चूर्ण काफी नुकसानदेह साबित होते हैं। उनमें ‘स्टेरायड ’ मिला होता है। यह बहुत दिनों तक लेने से शरीर को नुकसान पहुंचाता है। इससे हड्डियां कमजोर हो सकती हैं और गुर्दे पर अच्छा खासा कुप्रभाव पड़ता है।

 शरीर में गठिया एक बार विकसित हो जाता है तो इससे कई और तरह की बीमारियां पैदा हो जाती हैं। इसमें पहले जोड़ों में दर्द शुरू होता है। फिर यह अपने विकराल रूप में आते-आते उठने-बैठने और चलने-फिरने में परेशानी पैदा करने लगता है। शरीर का वजन भी बढ़ने लगता है। मोटापे से जहां हाइपरटेंशन, हृदयाघात, अस्थमा, कोलेस्ट्राल, बांझपन समेत पचास से ज्यादा तरह की बीमारियां पैदा हो जाती हैं, वहीं शरीर में गठिया के बने रहने से रक्तचाप और मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज और मुश्किल हो जाता है।
सोने की आदत में लाएं सुधार- हमारे सोने की आदत कैसी है, इसका जोड़ों के दर्द से सीधा संबंध है। ध्यान रहे कि आप जिस गद्दे पर सोते हैं वह न तो बहुत मुलायम हो और न ही बहुत सख्त। याद रखें कि जमीन पर सोने के लिए नहीं बना है हमारा शरीर। सख्त सतह पर शरीर में दर्द की कई तरह की शिकायतें सामने आ सकती हैं। सीधा सोने की आदत डालें और ज्यादा मोटे तकिए का इस्तेमाल न करें।

कुछ और जरूरी बातें- अगर आपके जोड़ों में जरा सा भी दर्द, शरीर में हल्की अकड़न है तो भी सबसे पहले किसी डॉक्टर को दिखाएं ना कि अपने मन से दर्द निवारक गोलियां लें ।आधुनिक जीवनशैली की अनियमितता इस रोग की एक बड़ी वजह है। लिहाजा कोशिश करें कि दिनचर्या नियमित रहे।नियमित व्यायाम, घूमना-टहलना और मालिश करें।

’ठंडी हवा, नमी वाले स्थान व ठंडे पानी के संपर्क में न रहें।

घुटने में दर्द की स्थिति में ज़बरदस्ती पालथी मारकर न बैठें और ना ही नीचे बैठकर कोई भी काम करें। पूजा पाठ, खाना बनाना, स्नान शौच आदि बिल्कुल नीचे बैठकर ना करें । शौच के लिए वेस्टर्न टॉयलेट प्रयोग करें।
पैक्ड फूड, फास्ट फूड,मैगी, पिज़्ज़ा, अत्यधिक मांस, मदिरा , पनीर तली भुनी हुई चीजों का प्रयोग कम करें । बहुत ज़्यादा चाय या काफी ना पीएं।

होमियोपैथिक चिकित्सा अत्यंत कारगर है – आर्थराइटिस यानी  गठिया से पीड़ित मरीज दर्द से छुटकारा पाने के चक्कर में कई बार दर्द निवारक दवाओं का सेवन करते है। इससे तुरंत दर्द से छुटकारा मिल जाता है। जैसे ही दवा का असर कम होता है तो दर्द दोबारा अपने स्थान पर आना लगता है। वहीं, होम्योपैथी में जोड़ो के दर्द के साथ-साथ गठिया का भी इलाज किया जाता है क्योंकि होम्योपैथी एक ऐसी प्रकृति की अमूल्य देन है, जिसमें प्राकृतिक ढंग से लाइलाज रोगों के मरीजों का इलाज संभव है। होम्यपैथिक इलाज के दौरान मरीज के शारीरिक एवं मानसिक लक्षणों के आधार पर ऐसी दवा दी जाती है जो रक्षा प्रणाली को तंदुरूस्त करके बीमारी को जड़ से खत्म करने में सक्षम है।
 
 
  डॉ रुप कुमार बनर्जी
होमियोपैथिक चिकित्सक  

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