तिरुवनंतपुरम, सात अक्टूबर (भाषा) त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड (टीडीबी) के पूर्व अध्यक्ष एन. वासु ने मंगलवार को कहा कि उनके कार्यकाल में सबरीमला में द्वारपालक (संरक्षक देवता) की मूर्तियों पर लगे स्वर्ण आवरण नहीं हटाए गए थे।
वासु ने संवाददाताओं से बातचीत में यह दावा भी किया कि उनका व्यवसायी उन्नीकृष्णन पोट्टी से कोई संबंध नहीं है, जिन्होंने सबरीमला में द्वारपालकों की मूर्ति पर स्वर्ण परत चढ़ाने का खर्च उठाया था।
वासु ने पोट्टी द्वारा नौ दिसंबर, 2019 को उन्हें भेजे गए एक ईमेल के बारे में संवाददाताओं के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान यह पता लगाने के लिए मूर्तियों की जांच करवाने का कोई कारण नहीं दिखा कि उन पर सही ढंग से सोने की परत चढ़ाई गई थी या नहीं अथवा उनमें से कोई कीमती धातु तो गायब नहीं थी।
इस ईमेल में पोट्टी ने कहा था कि सबरीमला श्रीकोविल के मुख्य द्वार और द्वारपालक की मूर्तियों पर सोना मढ़ने का काम पूरा करने के बाद उनके पास कुछ सोना बचा है और वह इसका उपयोग एक लड़की की शादी के लिए करना चाहते हैं, जिसे टीडीबी के साथ समन्वय में सहायता की आवश्यकता है।
इस ईमेल का उल्लेख सोमवार को केरल उच्च न्यायालय ने किया। अदालत ने कहा कि यह ‘‘बेहद परेशान करने वाला है और इसमें शामिल अनियमितता की सीमा को एक बार फिर उजागर करता है।’’
अदालत ने कहा था, ‘‘यह स्पष्ट रूप से उस भयावह तरीके को दर्शाता है जिसमें कुछ देवस्वओम अधिकारियों ने पोट्टी के साथ मिलकर काम किया और मंदिर की संपत्ति की पवित्रता और श्रद्धालुओं के भरोसे, दोनों के साथ विश्वासघात किया।’’
अदालत ने सबरीमला में द्वारपालक देवताओं की मूर्तियों की स्वर्ण-आवरण वाली तांबे की पट्टियों के कम वजन से संबंधित कथित अनियमितताओं की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का भी निर्देश दिया था।
इस वर्ष उच्च न्यायालय को सूचित किए बिना फिर से स्वर्ण-आवरण मढ़ने के कार्य के लिए मूर्तियों को भेजे जाने के संबंध में अदालत में हुई कार्यवाही के दौरान वजन में कमी का खुलासा हुआ।
कार्यवाही के दौरान यह पता चला कि आखिरी बार जब 2019 में भगवान अयप्पा मंदिर से मूर्तियों को सोना मढ़ने के लिए बाहर निकाला गया था, तो उनके वजन में लगभग 4.5 किलोग्राम की कमी आई थी, जिसकी सूचना देवस्वओम अधिकारियों ने नहीं दी थी।
पिछले हफ्ते अदालत ने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति के. टी. शंकरन की निगरानी में सबरीमला मंदिर में सोने सहित सभी कीमती वस्तुओं की एक व्यापक सूची तैयार करने का आदेश दिया था।