नयी दिल्ली, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था भारत में रोजगार सृजन को लेकर काफी दबाव बना हुआ है। इसके साथ ही उन्होंने कौशल विकास के जरिये मानव पूंजी में सुधार की भी पुरजोर वकालत की है।
राजन ने पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर रोहित लांबा के साथ संयुक्त रूप से लिखी अपनी किताब ‘ब्रेकिंग द मोल्ड: रिइमेजिनिंग इंडियाज इकनॉमिक फ्यूचर’ का जिक्र करते हुए कहा कि भारत की सबसे बड़ी ताकत इसकी 1.4 अरब की मानव पूंजी है। हालांकि, इस पूंजी को मजबूती देना सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है।
अमेरिका के शिकॉगो बूथ में वित्तीय मामलों के कैथरीन ड्यूसेक मिलर विशिष्ट सेवा प्रोफेसर राजन ने कहा कि भारत को विकास की राह पर आगे बढ़ते हुए हर स्तर पर नौकरियां पैदा करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘‘नौकरियां भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे महत्वपूर्ण दबाव बिंदु हैं। अगर हमारे पास निजी क्षेत्र में अधिक नौकरियां होतीं, तो क्या आरक्षण को लेकर इतना दबाव होता? शायद कुछ हद तक यह कम होता।’’ इसके साथ ही उन्होंने राज्यों के स्तर पर नौकरियों को अपने निवासियों के लिए आरक्षित करने की प्रवृत्ति को भी चिंताजनक बताया।
राजन ने पीटीआई-भाषा के साथ खास बातचीत में कहा, ‘‘यह दर्शाता है कि हम नौकरियां नहीं दे पा रहे हैं। मैं कहूंगा कि यह बुनियादी चिंता है। हम एक संगठित देश हैं। आप अपने राज्य में अपने निवासियों के लिए नौकरियां आरक्षित नहीं कर सकते। इसे हर किसी के लिए उपलब्ध होना चाहिए।’’
मानव पूंजी में सुधार के संदर्भ में राजन ने कहा, ‘‘अगर हम हाई स्कूल की अच्छी तरह पढ़ाई करने वाले युवाओं में से कुछ को व्यावसायिक प्रशिक्षण देते हैं तो अगले एक साल में बहुत सारी नौकरियां पैदा हो सकती हैं और देश को रोजगार पैदा करने के लिए 10 साल तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम मानव पूंजी में सुधार करते हैं, तो आज की सबसे बड़ी समस्या नौकरियां खुद-ब-खुद सृजित हो जाएंगी। अगर आप कार्यबल की गुणवत्ता को बेहतर करते हैं तो कंपनियां भारत का रुख करेंगी। लोगों को कुशल बनाकर औसत नौकरियों को भी अच्छे रोजगार में बदला जा सकता है।’’
उन्होंने विकेंद्रीकरण और लोकतांत्रिक संस्थानों में सुधार पर ध्यान देने के साथ शासन सुधारों की जरूरत पर भी बल दिया। उन्होंने कहा, ‘‘हमें शासन में सुधार की जरूरत है। इसका मतलब अपने लोकतंत्र का निर्माण करना और विकेंद्रीकरण पर ध्यान देना है।’’
राजन और लांबा की लिखी इस पुस्तक के मुताबिक, ‘‘हमारी आर्थिक वृद्धि काफी हद तक रोजगार-रहित है। इसका मतलब है कि हमें आवश्यक रोजगार पैदा करने के लिए और अधिक वृद्धि करनी होगी। ऐसा नहीं होने पर जनांकिकीय लाभ की स्थिति देखते-देखते गायब हो जाएगी।”