
शरद हमारी जिजीविषा का प्रतीक है। तभी तो मौसम का राजा बसंत है लेकिन लम्बे जीवन की कामना करते हमारे पूर्वजों ने सौ बसंत नहीं, सौ शरद मांगे। पूरा वैदिक वाङ्मय सौ शरद का उद्घोष करते हुए कहता है- जीवेम् शरदः शतम्। कर्म करते हुए सौ शरद जीवित रहें। जीवन में राग, रस-रंग का प्रतीक तो बसंत है। पर उसके संघर्ष का प्रतीक तो शरद ही है। पूरे साल में सिर्फ एक रोज ही शरद पूर्णिमा का चांद सोलह कलाओं वाला होता है। कहते हैं चन्द्रमा से उस रोज अमृत बरसता है, इसलिए शरद अमरत्व का प्रतीक भी है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाये तो चन्द्र का मतलब है शीतलता। बाहर कितने भी परेशान करने वाले प्रसंग आयें लेकिन हमारा मन-मस्तिष्क ऐसा मजबूत हो कि सांसारिक बाधाएं, व्याधियां, कठिनाइयां हमें विचलित न कर सकें।
यूं तो हर माह में पूर्णिमा आती है लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व सर्वाधिक है। वर्षा ऋतु की जरावस्था और शरद ऋतु के बाल रूप का यह सुंदर संयोग हर किसी का मन मोह लेता है। कारण स्पष्ट है- आकाश में न बादल, न ही धूल-गुबार, यानी एकदम साफ़। ऐसे में पूर्ण चन्द्रमा की छटा निराली होती है। इसीलिए इसे उल्लास और मस्ती से भरने वाली चमचमाती, खिलखिलाती रात कहा गया है।
हमारे धर्म ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है। माना जाता है कि समृद्धि वैभव की देवी लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। आश्विन मास की इस पूर्णिमा को आदिकवि महर्षि वाल्मीकिजी की जयन्ती भी मनाई जाती है। यह सर्वे ज्ञात है कि महर्षि वाल्मीकि ने भगवान राम के जन्म से पूर्व ही रामायण की रचना की।माता जानकी उन्हीं के आश्रम में रही जहां उन्हें लव और कुश के रूप में दो पुत्रों का जन्म हुआ। ऋषि ने उन बालकों को अनेक विधाओं से परिपूर्ण बनाया।
आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, रास पूर्णिमा, कोजागरी भी कहते हैं। इस रात्रि चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है और उसकी उज्ज्वल किरणें पेय एवं खाद्य पदार्थों में पड़ती हैं तो उसे खाने वाला व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। उसका शरीर पुष्ट होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के अध्याय15 के श्लोक 13 कहा भी गया हैः-
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।
अर्थात् रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ।
इस दिन को कोजागरी पूर्णिमा कहने के पीछे कथा है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि माँ लक्ष्मी आसमान में भ्रमण हुए पूछती है कि ‘कौ जाग्रति’। यानी वह उन लोगों की सूची बनाती हैं जो रात में जाग रहे होते है। संस्कृत में ‘कौ जाग्रति’ का मतलब होता है की ‘कौन जाग रहा है’। जो भक्तजन शरद पूर्णिमा की रात्रि में जाग रहे होते हैं उन्हें देवी लक्ष्मी अपना आशीर्वाद प्रदान कर उनका कल्याण करती हैं तथा जो सो रहा होता है वहां महालक्ष्मी नहीं ठहरतीं। इसीलिए लोग जागकर चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं ।
शरद पूर्णिमा को रासलीला की रात भी कहते हैं।
धर्म शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था।
शरद पूर्णिमा का मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरुआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। इस दिन चन्द्रमा हमारी पृथ्वी सबसे करीब होता है। धान आदि की फसल अपने यौवन पर होती है अतः इस दिन किसान देविया शक्तियों से अच्छी फसल की कामना करते हुए उनसे आशीर्वाद मंगाता है। भारत के पूर्वोत्तर भागों विशेष रूप से बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुमारी कन्याएं प्रातः काल स्नान करके सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। माना जाता है कि इससे उन्हें योग्य पति की प्राप्त होती है। संक्षेप में कहें तो सभी अपने- अपने ढंग से स्वस्थ तन, प्रसन्न मन के साथ-साथ समृद्धि और धन चाहते हैं।
यहां भी स्मरणीय है कि शरद पूर्णिमा के अगले दिन से कार्तिक का महीना आरंभ होता है जिसके चौथे दिन करवा चौथ, तत्पश्चात अहोई, तेरह को धनतेरस, अमावस्या को भारतवंशियों का सबसे प्रसिद्ध त्यौहार दिवाली, अगले दिन गोवर्धन पूजा, फिर भैया दूज सहित अनेक त्यौहार होते हैं। कार्तिक स्नान को विशेष महत्व है तो कार्तिक पूर्णिमा को गुरु नानकदेव जी का जन्मदिन, गंगास्नान, कार्तिक पूर्णिमा के नाम से पूरे भारत में मनाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती है। कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात प्राप्त होने वाली अमृतमयी किरणों को अपनी नाभि पर ग्रहण कर प्राण ऊर्जा संचय करता था जिससे उसे पुनर्यौवन शक्ति प्राप्त होती थी।
यह उन अमृतमयी किरणों का प्रभाव है कि अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं जिससे चंद्रमा की किरणें उस खीर के संपर्क में आती है। विज्ञान भी इस बात को स्वीकारता है कि दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है। इससे जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। धवल चंद्र से अमृत ग्रहण करने वाली खीर में कुछ जड़ी बूटियां को मिलाकर लेने से सांस के रोगों से मुक्ति मिलती है। इसलिए इस दिन देश के विभिन्न भागों में बड़े-बड़े आयोजन होते हैं जहां जरूरतमंद रोगियों को खीर के साथ दवा निशुल्क प्रदान की जाती है।