जाति जनगणना: शिवकुमार ने अधिकारियों को व्यक्तिगत सवाल नहीं पूछने की सलाह दी

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बेंगलुरु, पांच अक्टूबर (भाषा) कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार ने रविवार को कहा कि उन्होंने सामाजिक एवं शैक्षिक सर्वेक्षण करने वाले अधिकारियों को सलाह दी है कि वे कुछ ऐसे प्रश्न न पूछें जो ‘व्यक्तिगत’ प्रकृति के हों। इस सर्वेक्षण को व्यापक रूप से ‘जाति जनगणना’ कहा जा रहा है।

उन्होंने लोगों से सर्वेक्षण में भाग लेने का भी आह्वान किया।

कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा किया जा रहा यह सर्वेक्षण 22 सितंबर से शुरू हुआ है और सात अक्टूबर तक जारी रहेगा।

सर्वेक्षण के दौरान पूछे गए प्रश्नों पर आपत्तियों के बारे में पूछे जाने पर शिवकुमार ने कहा, ‘‘किसी को भी कोई आपत्ति हो, इस (सर्वेक्षण) को जरूर किया जाएगा। अदालत ने कहा है कि सर्वेक्षण स्वैच्छिक है और लोग जो चाहें उत्तर दे सकते हैं और अगर वे किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते हैं तो उन्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है।’’

उन्होंने यहां पत्रकारों से कहा, ‘‘मैंने अधिकारियों से कहा है कि वे बेंगलुरु में लोगों से यह न पूछें कि लोग कितने मुर्गे, भेड़ और बकरियां पाल रहे हैं और उनके पास कितना सोना है। ये निजी मामले हैं। उनके पास कितनी घड़ियां या फ्रिज हैं, यह पूछने की कोई जरूरत नहीं है। मैंने उन्हें सलाह दी है कि ऐसे सवाल पूछने की कोई जरूरत नहीं है। मुझे नहीं पता कि वे क्या करेंगे, क्योंकि यह एक स्वतंत्र आयोग है।’’

उपमुख्यमंत्री ने कहा कि सर्वेक्षण का विरोध करने का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा, चूंकि पहले हुए सर्वेक्षण को लेकर आपत्तियां उठाई गई थीं, इसलिए सभी को इसमें भाग लेने का अवसर दिया जा रहा है।

सर्वेक्षण की अवधि बढ़ाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि आयोग और संबंधित विभाग इस पर फैसला लेंगे।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं सभी से सर्वेक्षण में भाग लेने की अपील करता हूं।’’

अधिकारियों के अनुरोध पर प्रशिक्षण और आवश्यक तैयारियों के लिए ग्रेटर बेंगलुरु क्षेत्र में सर्वेक्षण में देरी हुई क्योंकि यहां पांच नए निगम बने हैं। सर्वेक्षण अभी जारी है।

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पिछले महीने सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, हालांकि अदालत ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को एकत्रित आंकड़ों की गोपनीयता बनाए रखने और नागरिकों की स्वैच्छिक भागीदारी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था।

अधिकारियों के अनुसार 420 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से आयोजित इस सर्वेक्षण में 60 प्रश्नों वाली प्रश्नावली का उपयोग किया गया है और इसे वैज्ञानिक तरीके से किया जा रहा है।

सरकार ने इससे पूर्व 2015 में एक सामाजिक एवं शैक्षिक सर्वेक्षण पर 165.51 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया था।

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