वे दिन लद गए जब बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा करने में मां-बाप को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती थी। बच्चे अपने आप बड़े हो जाते थे परंतु अब जमाना धीरे-धीरे बदलने लगा है और लोगों के रहन-सहन एवं खान-पान में काफी बदलाव आ चुका है।
बाजार में शुद्ध और सही चीजें पहले के समान मिलती ही नहीं हैं। ऐसे में मां-बाप को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। आज के इस वातावरण में बच्चों का लालन-पालन किसी भी मां के लिए एक चुनौती बन गई है। वहीं दूसरी ओर बच्चे का स्वभाव भी एक जैसा नहीं रहता।
प्रायः सभी बच्चों की प्रकृति और प्रवृत्ति अलग-अलग होती हैं। जहां उद्दण्ड बच्चे माता-पिता के लिए आफत होते हैं, वहीं जरूरत से ज्यादा संवेदनशील बच्चे एक समस्या होते हैं। खास तौर पर ठंड के दिनों में छोटे बच्चों पर कुछ विशेष ही ध्यान देने कि जरूरत है अन्यथा बच्चे कभी भी किसी न किसी रोग से ग्रस्त हो सकते हैं।
तबीयत खराब होने पर बच्चों की नींद के साथ-साथ मां-बाप की भी नींद उड़ जाती है और फिर डॉक्टरों के क्लीनिक के चक्कर लगने शुरू हो जाते हैं। तो आइए, बच्चों में सर्दियों में पाई जाने वाली आम बीमारियों तथा उनसे बचाव के विषय में यहां जानकारी प्राप्त करें।
आमतौर पर जाड़े के मौसम के साथ बच्चों में ठंड लगने की प्रवृत्ति भी रहती है। खांसी, सर्दी, बुखार, श्वांस का तेज चलना एवं दम फूलना आदि शिकायतें पाई जाती हैं। फेफड़ों में ठंड लगने के साथ कभी-कभी ठंड की वजह से उल्टी और दस्त होने की भी संभावना रहती है जिसे ‘विन्टर डायरिया’ कहा जाता है। त्वचा के सूखेपन के कारण एक्जिमा तथा खुजली की बीमारी भी जाड़े में पायी जाती है।
टॉंसिल्स के इंफेक्शन से गले में सुरसुरी, दर्द या घोंटने में तकलीफ होने लगती है। साथ-साथ अगर वायरस या बैक्टीरिया का इंफेक्शन हो तो बुखार के साथ-साथ खांसी-सर्दी भी हो जाती है। बलगम कभी-कभी पीला आने लगता है। ऐसे कारण होने पर उपचार आवश्यक हो जाता है। अगर बुखार के साथ खांसी-सर्दी भी हो तो चिकित्सक की सलाह पर एंटीबायोटिक देना चाहिए। एंटी एलर्जिक दवा या पैरासिटामोल से भी आराम हो सकता है।
जब इंफेक्शन श्वास की नली तक पहुंच जाता है तो बच्चे की सांस बहुत तेज चलने लगती है। दमे के मरीज बच्चों की श्वांस भी तेज चलती है अर्थात हफनी होती है। दमे की बीमारी एलर्जी की वजह से श्वांस नली में सूजन पैदा हो जाती है तथा नली का ल्यूमेन कम हो जाता है और कम ऑक्सीजन फेफड़े तक पहुंच पाती है। अतः श्वांस की क्रिया बढ़ जाती है।
ऐसे में एंटी एलर्जिक या नली को फैलाने की दवा ब्रोको डायलेटर्स देने की आवश्यकता होती है। अगर बुखार या पीला बलगम भी आता हो तो एंटीबायोटिक भी दिया जा सकता है।
नवजात शिशु के लिए जाड़े का मौसम जानलेवा भी हो सकता है। नवजात में शारीरिक क्षमता को बनाए रखने में अधिक परिश्रम करना पड़ता है अन्यथा पूरे शरीर का तापक्रम घट जाता है, जिससे बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है। अतः बच्चों को गर्म रखना आवश्यक है।
अधिक जाड़ा पड़ने पर बच्चों को कम से कम नहलाना चाहिए। अगर नहलाएं तो सुसुम पानी का ही प्रयोग करें। बच्चों को ज्यादा समय तक खुले बदन में नहीं रखें। बच्चों को हर समय मोजे, टोपी, स्वेटर पहनाकर ही रखें।
जाड़े के मौसम में बच्चों को ठंडी हवा से बचाने के लिए कमरे को गर्म रखें। ठंडे पेय एवं आइसक्रीम का सेवन न करने दें। समय से सारे टीके लगवाएं। अगर निम्नांकित लक्षण उत्पन्न हो तो शीघ्र चिकित्सक से मिलें-
लक्षण
सांस का तेज चलना अर्थात् चालीस बार प्रति मिनट से अधिक।हाथ पांव या होंठों का नीला होना या पसली का तेज चलना।
कहरने की आवाज या सांसों में घरघरी की आवाज हो तो शीघ्र उपचार के लिए डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए। उसे शीघ्र उपचार की जरूरत है।
ठंड में पतला पैखाना होने पर ओ॰आर॰एस॰ का घोल दें। बाजार की कोई चीज खाने न दें।
शुष्क त्वचा के लिए क्रीम या माश्चराइजर का इस्तेमाल करें। फंगस का इन्फेक्शन होने पर एन्टीफंगल का इस्तेमाल करें।
ठंड में शिशु को स्तनपान अवश्य कराएं तथा कंगारू की तरह बच्चे को सीने से सटाकर रखें।