धैर्य द्वारा ही संभव है जीवन का विकास

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महाभारत में एक प्रसंग है यक्ष प्रश्न। यक्ष युधिष्ठिर से कुछ प्रश्न पूछते हैं और युधिष्ठिर अत्यंत समझदारी से उनके उत्तर देते हैं। सभी प्रश्न न केवल महत्त्वपूर्ण और जानने-समझने योग्य हैं अपितु वर्तमान संदर्भों में भी उनकी प्रासंगिकता कम नहीं हुई है। इसी से यक्ष प्रश्न आज एक मुहावरा बन गया है। यक्ष ने युधिष्ठिर से एक प्रश्न पूछा था कि मनुष्य का साथ कौन देता है? युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि धैर्य ही मनुष्य का साथी होता है। यदि आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो स्पष्ट है कि धैर्य ही मनुष्य का वास्तविक व उत्तम साथी है। धैर्य के अभाव में, धैर्य से रहित मनुष्य सरलता से जीवन यापन नहीं कर सकता। धैर्य जीवन जीने की कला अथवा धर्म का पहला लक्षण है।
धैर्य, क्षमा, दम, चोरी न करना, शुचिता, इंद्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध – ये धर्म के दस लक्षण हैं। धैर्य को यहाँ पहले स्थान पर रखा गया है। वास्तव में जिस व्यक्ति में धैर्य नहीं है, वह धार्मिक नहीं हो सकता और जिस धर्म में धैर्य अथवा सहिष्णुता का अभाव है, वह धर्म ही नहीं है। जहाँ धर्म के नाम पर तलवारें खिंची रहती हैं न जाने वह कौन-सा धर्म है?
हमारे रोज़मर्रा के जीवन में भी तो कमोबेश यही हो रहा है। किसी न किसी तरह की तलवार हमारे सर पर लटकी ही रहती है। हम हर क्षण किसी न किसी प्रकार के तनाव से ग्रस्त रहते हैं। इसका प्रमुख कारण धैर्य की कमी ही तो है। हम सब कुछ आज और इसी समय हासिल कर लेना चाहते हैं। हमारे पास पर्याप्त साधन नहीं हैं तो क्या हुआ? जो चाहिए किसी भी सही-ग़लत तरीक़े से हासिल कर लेते हैं।
धैर्य के अभाव में हम अनैतिक ही नहीं, अपराधी बनते जा रहे हैं। किसी वस्तु को तत्क्षण पाने के लिए झूठ बोलने से परहेज़ नहीं। निरीह बन जाते हैं जो हम वास्तव में हैं नहीं। धैर्य इतना चुक गया है कि किसी कार्य को करने से पूर्व परिणाम के बारे में सोचते तक नहीं। धैर्य के अभाव में बुरे काम का बुरा परिणाम भुगतना ही पड़ता है।
धैर्य नहीं तो क्षमा करना भी संभव नहीं है। धैर्य नहीं तो दम, चोरी न करना, शुचिता, इंद्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के इन अन्य सभी लक्षणों का विकास हो ही नहीं सकता। धैर्य के अभाव में न तो मन पर नियंत्राण करना ही संभव है और न मन का शुभ संकल्पमय होना ही संभव है।
एक धैर्य है तो अन्य सभी लक्षणों का विकास सहजता से होना मुश्किल नहीं। धैर्य धारण करना अथवा किसी कार्य को पूर्णता तक पहुँचने के लिए उचित समय तक प्रतीक्षा करना अनिवार्य है। कहते हैं हथेली पर सरसों नहीं जमती। धैर्य का अर्थ है सहजता -स्वाभाविकता। कबीर ने कहा हैः
धीरे-धीरे  रे  मना,  धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा रितु आए फल होय।
धैर्य धारण करना ही होगा। प्रतीक्षा करने के अतिरिक्त अन्य कोई चारा नहीं।
 

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