नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश में जनता के गुस्से के पीछे सरकारों और समाजों के बीच दूरी थी वजह : भागवत

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नागपुर, दो अक्टूबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत के पड़ोस में अशांति को सरकारों और समाजों के बीच दूरी और सक्षम प्रशासकों की कमी से जोड़ते हुए आगाह किया कि भारत में ऐसी अशांति पैदा करने की चाहत रखने वाली ताकतें देश के अंदर और बाहर दोनों जगह सक्रिय हैं।

उन्होंने ‘स्वदेशी’ और ‘स्वावलंबन’ की वकालत की और इस बात पर ज़ोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक संबंध भारत की शर्तों पर होने चाहिए, न कि किसी मजबूरी के कारण। उन्होंने जोर देकर कहा कि अमेरिकी शुल्क (टैरिफ) भारत के लिए कोई चुनौती नहीं बनेंगे।

यहां रेशिमबाग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की वार्षिक विजयादशमी रैली को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद अन्य देशों की प्रतिक्रियाओं से भारत के साथ उनकी मित्रता के स्वरूप और प्रगाढ़ता का पता चला।

यह रैली ऐसे समय में हुई जब आरएसएस अपना शताब्दी वर्ष भी मना रहा है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद थे। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी उपस्थित रहे।

भागवत ने महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनकी जयंती दो अक्टूबर को मनाई जाती है।

उन्होंने कहा, ‘‘स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी का योगदान अद्वितीय है, जबकि शास्त्री जी का जीवन और समय, समर्पण तथा प्रतिबद्धता का प्रतीक है। वे व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र के ऐसे उदाहरण हैं जिनका हमें अनुकरण करना चाहिए।’’

उन्होंने श्रीलंका, बांग्लादेश में अशांति और नेपाल में ‘जेन जेड’ प्रदर्शन पर चिंता जताते हुए कहा कि असंतोष का स्वाभाविक और तात्कालिक कारण सरकार और समाज के बीच दूरी तथा योग्य एवं जनोन्मुखी प्रशासकों का अभाव है।

संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘भारत में ऐसी अशांति फैलाने की चाह रखने वाली ताकतें देश के अंदर और बाहर दोनों जगह सक्रिय हैं। असंतोष के स्वाभाविक और तात्कालिक कारण सरकार और समाज के बीच का विच्छेद और योग्य एवं जनोन्मुखी प्रशासकों का अभाव हैं। हालांकि, हिंसा में वांछित परिवर्तन लाने की शक्ति नहीं होती।’’

उन्होंने जोर देकर कहा कि समाज केवल लोकतांत्रिक तरीकों से ही इस तरह का परिवर्तन प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसी हिंसक परिस्थितियों में इस बात की आशंका रहती है कि दुनिया की प्रमुख शक्तियां अपना खेल खेलने के अवसर तलाशने की कोशिश करें।

भागवत ने कहा कि भारत अपने पड़ोसियों से संस्कृति और नागरिकों के बीच दीर्घकालिक संबंधों के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

उन्होंने कहा, ‘‘एक तरह से वे हमारे अपने परिवार का हिस्सा हैं। इन देशों में शांति, स्थिरता, समृद्धि और सुख-सुविधा सुनिश्चित करना, इन देशों के साथ हमारे स्वाभाविक जुड़ाव से उपजी आवश्यकता है, जो हमारे हितों की रक्षा से कहीं आगे है।’’

भागवत ने स्वदेशी और स्वावलंबन पर जोर देते हुए कहा कि वैश्विक परस्पर निर्भरता एक बाध्यता नहीं बननी चाहिए।

उन्होंने कहा कि अमेरिका द्वारा अपनाई गई शुल्क नीति पूरी तरह से उनके अपने हितों पर आधारित है और यह भारत के लिए कोई चुनौती नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया परस्पर निर्भरता के माध्यम से संचालित होती है। ‘आत्मनिर्भर’ बनकर और वैश्विक एकता के प्रति जागरूक होकर हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह वैश्विक परस्पर निर्भरता हमारे लिए बाध्यता न बने और हम अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने में सक्षम हों। स्वदेशी और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं है।’’

भागवत ने कहा कि हिंदू समाज की शक्ति और चरित्र एकता की गारंटी देते हैं।

भागवत ने कहा, ‘‘हिंदू समाज एक जिम्मेदार समाज है। यहां ‘हम’ और ‘वे’ का विचार कभी नहीं रहा। एक विभाजित समाज टिक नहीं सकता और हर व्यक्ति अपने आप में अनोखा है। आक्रमणकारी आए और गए, लेकिन हमारी जीवन-पद्धति कायम रही। हमारी अंतर्निहित सांस्कृतिक एकता ही हमारी शक्ति है।’’

संघ प्रमुख ने कहा कि प्रयागराज में महाकुंभ आस्था और एकता का प्रतीक था। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का हवाला देते हुए कहा कि आतंकवादियों ने सीमा पार कर जम्मू कश्मीर के पहलगाम में धर्म पूछकर 26 भारतीयों की हत्या कर दी, जिस पर भारत ने कड़ा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि इस हमले से देश में भारी पीड़ा और आक्रोश फैला तथा भारत ने इसका करारा जवाब दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘इस हमले से देश का हर व्यक्ति व्यथित हो गया। हमारी सरकार ने पूरी तैयारी की और इसका कड़ा जवाब दिया। इसके बाद नेतृत्व का दृढ़ संकल्प, हमारे सशस्त्र बलों का पराक्रम और समाज की एकता स्पष्ट रूप से दिखाई दी।’’

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि एक देश को मित्रों की जरूरत होती है लेकिन उसे अपने आसपास के माहौल के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए।

भागवत ने कहा, ‘‘हमारे दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं और आगे भी इन्हें बनाए रखेंगे, लेकिन जब बात हमारी सुरक्षा की आती है तो हमें ज़्यादा सावधान, ज़्यादा सतर्क और मजबूत होने की जरूरत है। पहलगाम हमले के बाद विभिन्न देशों के रुख से यह भी पता चला कि उनमें से कौन हमारे मित्र हैं और किस हद तक।’’

भागवत ने कहा कि नक्सलियों ने कुछ इलाकों में शोषण, अन्याय और विकास की कमी का फायदा उठाया था, लेकिन अब ये बाधाएं दूर हो गई हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इन इलाकों में न्याय, विकास, सद्भावना, सहानुभूति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक कार्ययोजना की आवश्यकता है।’’

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि देश को वैश्विक नेता बनाने के लिए नागरिकों में उत्साह है, लेकिन मौजूदा आर्थिक प्रणाली की खामियां वैश्विक स्तर पर उजागर हो रही हैं, जिनमें बढ़ती असमानता और आर्थिक शक्ति का केंद्रीकरण शामिल है।

भागवत ने जलवायु परिवर्तन पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, ‘‘दक्षिण-पश्चिम एशिया की संपूर्ण जल आपूर्ति हिमालय से आती है। हिमालय में इन आपदाओं का आना भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों के लिए खतरे की घंटी मानी जानी चाहिए।’’

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