हर व्यक्ति में हो संघ प्रवेश

0
wfewsaz

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं. ऐसे में यह आवश्यक है कि केवल कुछ लोग ही संघ में न जाएं अपितु हर व्यक्ति में संघ चला जाए, यानी जन-जन संघ के  विचार और कार्य पद्धति से जुड़कर समाज और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें। 
      विगत कुछ वर्षों में भारतवर्ष वैश्विक फलक पर व्यापक हुआ है। विश्व के कोने-कोने में भारत के सांस्कृतिक स्वर सुनाई दे रहे हैं।  भारत माता की रक्षा ,एकता और अखंडता के लिए समय-समय पर देश के विभिन्न संगठनों  तथा व्यक्तियों द्वारा प्रयास किया जाता रहा है। उन्होंने धर्म ,संप्रदाय, रीति- रिवाज और विभिन्नताओं से ऊपर उठकर  भारतीयता का एक नया  संदेश राष्ट्र के समक्ष प्रस्तुत किया है। क्या आज भारतीयता के इस संदेश से सभी को नहीं जुड़ना चाहिए?


   भारतवर्ष के स्वतंत्रता संग्राम के समय वर्ष 1920 का दशक विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा। यही वह समय था जब भारतवर्ष सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से भारतीयता के बोध, सांस्कृतिक विरासत के उत्थान और सनातन की रक्षा के लिए जद्दोजहद कर रहा था। ऐसे संघर्ष के समय डा. हेडगेवार  ने जिस संगठन की नींव रखी, वह है- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार बचपन से ही ऐसे देशभक्त थे जो राष्ट्रीय आदर्श स्थापित करना चाहते थे। राष्ट्र के उत्थान  के लिए समस्त भारतीय समाज में त्याग और सेवा का बीजारोपण करना चाहते थे। उनका विचार था कि स्वतंत्र भारत का  कार्यभार  संभालने  वाले  लोगों  में भारतभूमि के लिए  सर्वस्व  समर्पण  और अपनी संस्कृति के प्रति गहरा लगाव होना चाहिए। इसी ध्येय से 1925 में विजयदशमी के दिन जब इस संगठन की नींव रखी गई तब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नया अध्याय लिखा गया। मां भारती को जगतगुरु के सिंहासन पर आरूढ़ करने का पुण्य विचार लिए यह संगठन निरंतर कार्य कर रहा है। भारत मां की सेवा और राष्ट्र को एकमात्र अपना देवता मानने वाला यह संगठन आज भारत की सबसे बड़ी आवश्यकता है। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी हमेशा कहते हैं- दैव पूजा अपनी अपनी हो सकती है किंतु राष्ट्र पूजा एक ही होनी चाहिए. राष्ट्र की एकता का यह सबसे बड़ा सूत्र है।
     राष्ट्र को उन्नति के पथ पर अग्रसर करने के लिए प्रत्येक समाज में देशभक्त, अनुशासित, चरित्रवान और निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोगों की आवश्यकता रहती है। यह संगठन ऐसे ही लोगों को तैयार करने एवं संगठित करने का कार्य कर रहा है जो स्वयं की प्रेरणा से समाज और राष्ट्र के कार्य हेतु समर्पित हों। संघ का उद्देश्य किसी देश पर वर्चस्व रखने वाला भारत बनाना नहीं है अपितु यह तो भारत को संसार का सर्वश्रेष्ठ देश बनाना चाहता है। संघ भारत को केवल एक भौगोलिक क्षेत्र ही नहीं मानता है अपितु संघ का मानना है कि भारत एक जीवंत और जागृत विचार है, एक चिंतन है। भारत की एक जीवन दृष्टि है।  यह जीवन दृष्टि एकात्मक और सर्वांगीण है और यही भारत की पहचान है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि – आध्यात्मिकता ही भारत की आत्मा है, भारत का प्राण है।  यह भारत  की आध्यात्मिकता यहां के समाज जीवन के प्रत्येक अंग में प्रकट हो, ऐसा एक उन्नत समाज हम निर्माण करना चाहते हैं। इसी के लिए उन्होंने महामंत्र दिया-उत्तिष्ठत ! जागृत प्राप्य वरान्निबोधत! अर्थात उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
     राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज देश विदेश में  हजारों शाखाओं के माध्यम से सामाजिक कार्य कर रहा है। संघ के स्वयंसेवक समाज में लाखों सेवा कार्य कर रहे हैं। उपेक्षा, उपहास, विरोध तथा अवरोध को मात देते हुए संघ का कार्य निरंतर,निर्बाध गति से चल रहा है, आगे बढ़ रहा है। संघ का मानना है कि- हिंदवा: सहोदरा: सर्वे…अर्थात  सभी हिंदू एक ही माँ के पुत्र हैं इसलिए सभी भाई-भाई हैं। कोई ऊंचा  या  नीचा नहीं है।  संघ का विचार भी ऐसा  ही रहा है और संघ का आचरण भी ऐसा ही रहा है। संघ के तृतीय सरसंघचालक पूज्य बालासाहेब देवरस ने अपने उद्बोधन में कहा था कि-यदि अस्पृश्यता गलत नहीं है तो दुनिया में कुछ भी गलत नहीं है और इसको जड़मूल से उखाड़कर फेंक देना चाहिए।  संघ संपूर्ण समाज का संगठन करने की बात करता है,  इसलिए समाज के सभी वर्ग के लोगों  का संघ में आना अपेक्षित है।
     इस वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विजयदशमी के दिन अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। सौ वर्षों की इस सेवा यात्रा को आज प्रत्येक भारतवासी को समझना चाहिए। विविधताओं से भरे इस देश में विविधताओं का उत्सव मनाना चाहिए।  सबकी विविधता का सम्मान करना चाहिए और मिलजुल कर साथ चलना चाहिए।  हमारी परंपरा जोड़ने की और मूल्य आधारित संस्कृति पर कार्य करते रहने की रही है। संघ की कार्य  पद्धति , राष्ट्रीयता और मानवीय संवेदना को समझने के लिए प्रत्येक भारतीय में संघ के वैचारिक प्रवेश की आवश्यकता है। संघ का स्वयंसेवक सामाजिक, आध्यात्मिक, पारिवारिक, व्यवहारिक और नैतिक मूल्य से परिपूर्ण होता है। मातृभूमि की सेवा और उसके उत्थान के लिए निरंतर प्रयास करना उसका एकमात्र ध्येय होता है।
राष्ट्र की परिस्थितियों और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संघ की मातृशक्ति भी पीछे नहीं रहती। भारत की नारी शक्ति भारतीय धर्म में पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास रखती है।  वह तेजस्वी है और अपने गौरवशाली भविष्य के प्रति भी सचेत है। “राष्ट्र सेविका समिति” नाम का संगठन मातृशक्ति के साथ संघ के कार्य को गति देने के लिए ही बनाया गया है। मातृशक्ति अपने गृहस्थ जीवन के साथ-साथ राष्ट्र धर्म का भी पालन कर रही हैं। हमारी माताएँ और बहनें विभिन्न सेवा कार्यों में योगदान दे रही है। विभिन्न  सेवा कार्यों में लाखों पुरुष और महिला कार्यकर्ता कंधे से कंधा मिलाकर समाज और राष्ट्र की उन्नति को गति दे रहे हैं।
  भारत की युवा पीढ़ी में संघ को लेकर जो भ्रम का वातावरण बनाया गया था, उसका निराकरण तभी संभव है जब संघ की कार्य  पद्धति को सूक्ष्मता से समझा जाए। वर्षों से संघ पर अनेकानेक आरोप मढ़े  गए। संघ पर प्रतिबंध लगे किंतु संघ का एकमात्र उद्देश्य राष्ट्रसेवा ही रहा है। नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे… प्रार्थना का गायन करते समय संघ का कार्यकर्ता सतर्क, समर्पित और राष्ट्र सेवा के प्रण में भाव विभोर हो जाता है और  कह उठता है .. हे मुझे प्रेम करने वाली मातृभूमि, मैं तुझे नमस्कार करता हूं। तूने मेरा सुख से पालन पोषण किया है। हे पुण्य धरा में बारंबार तुम्हें नमस्कार करता हूं।  तेरे ही कार्य के लिए हमने कमर कसी है और इसकी पूर्ति के लिए हमें अपना आशीर्वाद देती रहना।  हमें ऐसी शक्ति देना कि हमें कोई चुनौती न दे सके आदि आदि। यह राष्ट्र वंदना प्रत्येक युवा को स्मरण कराती है कि अपनी जन्मभूमि के प्रति त्याग और सेवा का भाव रखना है और उसकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना है।  धार्मिक और सांस्कृतिक विभिन्नता इस एकता के आड़े नहीं आनी चाहिए। देश सदैव प्रथम रहना चाहिए। देश की एकता ,अखंडता ,सहिष्णुता और समरसता को बनाए रखने में हमें अपना योगदान देते  रहना चाहिए।
    संघ के 100 वर्ष इस बात का संकेत करते हैं कि कठोर अनुशासन ,सामूहिक चेतना और राष्ट्र को समर्पित विचारधारा देश के लिए कितनी आवश्यक है। संपूर्ण समाज को जोड़कर अपने कर्त्तव्यों  का ज्ञान कराते रहना और सामूहिक प्रयास को लेकर आगे बढ़ते रहना ही संघ का उद्देश्य है। भारत के वैभव और ज्ञान भंडार को विश्व पटल पर स्थापित करना और उसके अस्तित्व के लिए निरंतर संघर्ष करते रहना ही संघ है। 

 


डॉ.  अंजु वेद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *