नयी दिल्ली, दो अक्टूबर (भाषा) केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बृहस्पतिवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष पर उसकी सराहना करते हुए कहा कि संगठन के कार्यकर्ता हमेशा से ही सभी सुख-सुविधाओं का त्याग कर राष्ट्र की सेवा और सुरक्षा के लिए समर्पित रहे हैं।
शाह ने खुद को ‘‘गौरवान्वित स्वयंसेवक’’ बताते हुए कहा कि शीर्ष नेताओं से लेकर जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं तक, संघ ने अपनी स्थापना के इन 100 वर्षों में कई व्यक्तित्वों को गढ़ा है।
उन्होंने अपने संदेश में कहा, ‘‘विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ की शताब्दी वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। संघ शताब्दी की इस विशाल यात्रा में मां भारती की सेवा, सुरक्षा और संवेदना के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर देने वाले आरएसएस के सभी साधकों को नमन करता हूं।’’
गृह मंत्री ने कहा कि सभी सुख-वैभव को त्यागकर एक स्वयंसेवक और प्रचारक के रूप में पूरा जीवन राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित कर देना आसान नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘100 वर्षों में संघ के असंख्य स्वयंसेवकों और प्रचारकों ने त्याग और समर्पण से इसे सिद्ध कर दिखाया है।’’
शाह ने कहा कि केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में 1925 में नागपुर में विजयादशमी के दिन कुछ लोगों के साथ शुरू हुआ संघ ‘‘आज राष्ट्र के प्रति समर्पण और संगठन कौशल के दम पर दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन बन गया’’ है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे गर्व है कि मैं भी एक स्वयंसेवक हूं।’’
शाह ने कहा कि देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन नेताओं से लेकर जमीनी कार्यकर्ताओं तक, संघ शताब्दी की ऐतिहासिक यात्रा ने अनेक ऐसे व्यक्तित्व गढ़े हैं, जिनके जीवन का लक्ष्य ही राष्ट्रनिर्माण रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘हैदराबाद मुक्ति संग्राम हो, आपातकाल का प्रतिकार हो, गोवा मुक्ति आन्दोलन हो, युद्धों में वीर जवानों की सहायता हो, धारा 370 का विरोध हो, पूर्वोत्तर में घुसपैठिया विरोधी आंदोलन हो, स्वयंसेवकों ने राष्ट्रनिर्माण के कार्यों को त्याग और समर्पण से नयी ऊंचाई दी है।’’
शाह ने कहा, ‘‘मरुभूमि हो या बीहड़ जंगल, हिमालय की दुर्गम चोटियां हों या सुदूर देहात, संघ ने हर जगह ‘महामंगले पुण्यभूमे’ के प्रति निष्ठा और सेवा का ध्वज लहराया। वनवासियों, पिछड़ों, दलितों, वंचितों और देश के सभी वर्गों को एकता के सूत्र में पिरोकर आत्मगौरव से युक्त राष्ट्र की संकल्पना में अहर्निश योगदान देने वाली संघ शताब्दी की यह यात्रा इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी जाएगी।’’