
“एक गांधी में छिपे हैं अनेक गांधी और हर गांधी अपने आप में बेमिसाल है युगसृष्टा एवं युगदृष्टा दोनों गुणों से परिपूर्ण है गांधी का व्यक्तित्व, चिंतन एवं कृतित्व ।”
जिस दौर में तीर तलवार नहीं बल्कि तोप और एटम बम आ गए हों, हर तरफ संघर्ष, नफ़रत, क्षेत्रीयता एवं संप्रदायिकता का जलजला हो तथा विश्व में बढ़ रहे संघर्ष के तथा विश्व युद्ध की विभीषिका के के बीच एक देश डेढ़ सौ साल की गुलामी से आज़ादी के लिए फड़फड़ा रहा हो और उसे कोई रास्ता नज़र न आ रहा हो ऐसे परिदृश्य में यदि डेढ़ पसली का एक अदना सा आदमी उस गुलाम देश को बिना एक बूंद भी रक्त बहाए, बिना हिंसा का सहारा लिए आज़ाद करा ले और सारी दुनिया उसकी सोच, चिंतन , विचारों और संकल्प का लोहा मान ले तो यह एक आश्चर्य की ही बात कही जाएगी और इस आश्चर्य के प्रवर्तक का नाम है मोहनदास करमचंद गांधी।
आज 2 अक्टूबर को अपने जन्म के 156 वर्ष बाद भी सत्य और अहिंसा के उस पुरोधा की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी उसके जीवन काल में थी। बल्कि कहना होगा कि आज गांधी की जरूरत और प्रासंगिकता उनके जीवन काल से भी कहीं अधिक है।
विश्व के लिए अचरज गांधी :
आज दुनिया हिंसा, युद्ध और आतंकवाद के साए में है। यूक्रेन से गाज़ा तक, एशिया और अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों तक, शांति की तलाश सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती बन चुकी है। गांधी ने कहा था—
“अहिंसा सबसे बड़ी शक्ति है, जो मानवता के पास है। यह तलवार से भी अधिक शक्तिशाली है।”
आज यह विचार संयुक्त राष्ट्र तक को मार्गदर्शन देता है। गांधी नाम ही ऐसा है कि दुनिया उससे रास्ता पूछता है तभी तो 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित कर गांधी को वैश्विक मानक के रूप में स्वीकार किया।
गांधी का ग्राम स्वराज
भारत आज दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, फिर भी गरीबी, असमानता और बेरोज़गारी गंभीर संकट बने हुए हैं। हाल ही की नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी रिपोर्ट बताती है कि अब भी लगभग 13.5 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा के नीचे हैं। गांधी का सपना था कि गाँव आत्मनिर्भर हों और हर नागरिक गरिमा से जी सके। उन्होंने कहा था—“भारत की आत्मा उसके गाँवों में बसती है।”यदि विकेंद्रीकृत शासन और स्थानीय रोजगार पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए, तो यह सपना साकार हो सकता है ।
गांधी : स्वदेशी और आत्मनिर्भरता
गांधी के लिए स्वदेशी केवल आर्थिक नीति मात्र नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की रक्षा का साधन था। उन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर भारतीयों को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई। आज “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसी योजनाओं में उसी सोच का पुनर्पाठ दिखाई देता है। आँकड़े बताते हैं कि भारत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग आज देश की सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30 प्रतिशत योगदान देता है और 11 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। इन संदर्भों में कह सकते हैं कि गांधी ने अगले 100 साल की बात अपने जीवन काल में ही सोच और कह दी थी। विशेषज्ञों का मानना है कि यही वह मॉडल है जो गांधी की सोच को मूर्त रूप दे सकता है।
गांधी : राजनीति और नैतिकता :
आज राजनीति में धनबल और जातीय समीकरणों का बोलबाला है। लेकिन गांधी का स्पष्ट मत था कि “राजनीति का धर्म सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि सेवा करना है।”यदि राजनीति से नैतिकता हट जाए, तो लोकतंत्र खोखला हो जाएगा। जब आम जनता नेताओं को भ्रष्टाचार और अवसरवाद के कारण अविश्वास की नज़र से देखती है, तो गांधी का यह आदर्श याद दिलाता है कि लोकतंत्र केवल संस्थाओं से नहीं वरन् नैतिकता एवं उच्च जीवन मूल्यों से चलता है।
गांधी और पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन आज पूरी मानवता के लिए अस्तित्व का संकट है। I राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति की रिपोर्ट के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाती है तो समुद्र-स्तर बढ़ने और भीषण आपदाओं की आशंका बढ़ जाएगी। गांधी ने बहुत पहले ही चेताया था“पृथ्वी सबकी आवश्यकताएँ पूरी कर सकती है, पर किसी एक के लालच को नहीं।”उनकी सादगी और न्यूनतम उपभोग पर आधारित जीवनशैली आज सतत विकास का वास्तविक मार्गदर्शन है।
गांधी और युवा :
भारत दुनिया की सबसे युवा आबादी वाला देश है। 2021 की जनगणना अनुमान के अनुसार, भारत की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। यह ऊर्जा यदि सकारात्मक दिशा में लगे तो दुनिया को बदल सकती है। गांधी ने युवाओं से कहा था“आप वही परिवर्तन बनें, जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।”आज के युवा यदि गांधी के अनुशासन, सत्यनिष्ठा और आत्मबल को अपनाएँ तो वे समाज और राजनीति दोनों में नई दिशा दे सकते हैं।
गांधी की प्रासंगिकता
गांधी को केवल स्मारकों, सिक्कों और तस्वीरों तक सीमित कर देना उनका सही सम्मान नहीं है। उनकी प्रासंगिकता केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि वर्तमान की आवश्यकता और भविष्य का मार्गदर्शन है। जब युद्ध और हिंसा हमारे समय की सबसे बड़ी विडंबना हों, जब राजनीति नैतिक आधार खो रही हो और जब जलवायु संकट मानवता को चुनौती दे रहा हो—तब गांधी का सत्य, अहिंसा, स्वदेशी और ग्राम स्वराज ही स्थायी समाधान की ओर ले जाते हैं। गांधी का सच्चा सम्मान तभी होगा जब हम उनके विचारों को केवल इतिहास नहीं, बल्कि वर्तमान का व्यवहार बनाएं।
डॉ घनश्याम बादल