मनुष्य के अंदर राम और रावण: सद्गुण और दुर्गुण की आंतरिक द्वंद्व

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मानव जीवन एक निरंतर संघर्ष है जहां अच्छाई और बुराई के बीच का द्वंद्व हमेशा मौजूद रहता है। प्राचीन भारतीय महाकाव्य रामायण में राम और रावण दो ऐसे चरित्र हैं जो इस द्वंद्व के प्रतीक बन गए हैं। राम सद्गुणों का अवतार हैं-धर्म, सत्य, धैर्य, करुणा और आत्मसंयम, जबकि रावण दुर्गुणों का प्रतिनिधित्व करता है- अहंकार, लोभ, क्रोध और कामना लेकिन क्या ये चरित्र केवल कथाओं तक सीमित हैं? नहीं, वास्तव में हर मनुष्य के अंदर ही राम और रावण दोनों निवास करते हैं। सद्गुण राम हैं जो हमें ऊंचाइयों की ओर ले जाते हैं और दुर्गुण रावण हैं जो हमें पतन की ओर धकेलते हैं।

 

मानव स्वभाव की जटिलता को समझने के लिए रामायण एक आदर्श माध्यम है। आदि कवि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित यह महाकाव्य न केवल एक कथा है बल्कि जीवन का दर्पण है। राम मर्यादा पुरुषोत्तम है क्योंकि उन्होंने हर परिस्थिति में धर्म का पालन किया। वहीं रावण, जो विद्वान और शक्तिशाली था, अपने दुर्गुणों के कारण नष्ट हो गया लेकिन रावण भी पूर्णतः बुरा नहीं था; उसमें गुण भी थे, जैसे ज्ञान और शौर्य। इसी प्रकार, मनुष्य में अच्छाई और बुराई का मिश्रण होता है। यह द्वंद्व हमें सिखाता है कि जीवन में संतुलन आवश्यक है। आधुनिक मनोविज्ञान में भी इस अवधारणा को फ्रायड के ‘इड, ईगो और सुपरईगो’ के रूप में देखा जाता है, जहां इड दुर्गुणों की तरह आवेगपूर्ण है और सुपरईगो सद्गुणों की तरह नैतिक है।

 

रामायण में राम भगवान विष्णु के अवतार हैं। उनके जीवन में सद्गुणों का प्रभुत्व है। उदाहरणस्वरूप, जब राजा दशरथ ने उन्हें वनवास दिया, तो राम ने बिना विरोध किए इसे स्वीकार किया। यह धैर्य और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। राम की करुणा तब दिखती है जब उन्होंने विभीषण को शरण दी, जो रावण का भाई था लेकिन सत्य का पक्षधर। राम का आत्मसंयम सीता हरण के समय भी स्पष्ट है; उन्होंने क्रोध को नियंत्रित रखा और युद्ध की तैयारी की। ये सद्गुण मनुष्य को मजबूत बनाते हैं, क्योंकि वे दीर्घकालिक सुख प्रदान करते हैं।

 

दूसरी ओर, रावण लंका का राजा था जो दस सिरों वाला राक्षस था—जो उसके बहुमुखी ज्ञान का प्रतीक है लेकिन उसके दुर्गुणों ने उसे नष्ट किया। अहंकार ने उसे राम का अपमान करने पर मजबूर किया, लोभ ने सीता का हरण करवाया, और क्रोध ने उसके निर्णयों को प्रभावित किया। लेकिन रावण में गुण भी थे—वह शिव भक्त था, संगीत और ज्योतिष का ज्ञाता। यह दर्शाता है कि दुर्गुण सद्गुणों को ढक सकते हैं, लेकिन उन्हें पूरी तरह मिटा नहीं सकते।

 

अब प्रश्न यह है कि ये चरित्र हमारे अंदर कैसे मौजूद हैं? हर मनुष्य में जन्म से ही दोनों प्रवृत्तियां होती हैं। बचपन में हम निर्दोष होते हैं, लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, वातावरण, शिक्षा और अनुभव हमें प्रभावित करते हैं। सद्गुण राम की तरह हमें दूसरों की मदद करने, सत्य बोलने और संयम रखने की प्रेरणा देते हैं। वहीं दुर्गुण रावण की तरह हमें स्वार्थी, क्रोधी और लालची बनाते हैं। मानव मन एक युद्धक्षेत्र है, जहां राम और रावण निरंतर लड़ते हैं। इस द्वंद्व को समझने के लिए हमें भगवद्गीता की ओर देखना चाहिए, जहां कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि आत्मा अमर है लेकिन मन की प्रवृत्तियां हमें बंधन में डालती हैं। राम सद्गुण हैं जो सात्विक गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं—शांति, ज्ञान और पवित्रता। रावण राजसिक और तामसिक गुणों का प्रतीक है—क्रिया, लोभ और अंधकार। हर निर्णय में यह द्वंद्व प्रकट होता है।

 

कार्ल जंग के अनुसार, हर व्यक्ति में ‘शैडो सेल्फ’ होता है जो रावण की तरह छिपा रहता है। इसे स्वीकार करना और नियंत्रित करना आवश्यक है। रामायण में भी रावण को मारना आसान नहीं था; राम को विभीषण की मदद लेनी पड़ी, जो बुद्धि का प्रतीक है। अर्थात, दुर्गुणों पर विजय के लिए बुद्धि और सद्गुणों का सहारा लेना पड़ता है। धार्मिक ग्रंथों में इसे ‘अंतरात्मा की आवाज’ कहा जाता है, जो सद्गुणों की ओर इशारा करती है। लेकिन दुर्गुण इतने आकर्षक होते हैं कि वे हमें बहका देते हैं। जैसे रावण की माया ने सीता को धोखा दिया, वैसे ही दुर्गुण हमें सुख की झूठी आशा देते हैं।

 

सद्गुण राम हैं, जो हमें जीवन की सच्ची सफलता प्रदान करते हैं। सद्गुण क्या हैं? सत्य, अहिंसा, दया, धैर्य, क्षमा और संयम। ये गुण हमें दूसरों से जोड़ते हैं और आंतरिक शांति देते हैं। रामायण में राम ने इन्हें अपनाकर रावण को हराया। आधुनिक समय में, सद्गुणों को विकसित करने के लिए कई तरीके हैं। सबसे पहले, आत्मचिंतन। रोजाना कुछ समय निकालकर अपने कार्यों का मूल्यांकन करें। क्या मैंने आज राम की तरह व्यवहार किया या रावण की तरह? ध्यान और योग इस द्वंद्व को कम करते हैं। दूसरा, अच्छी संगति। राम के साथ लक्ष्मण और हनुमान थे, जो सद्गुणों के प्रतीक हैं। बुरी संगति रावण को जागृत करती है। तीसरा, शिक्षा और ज्ञान। रामायण पढ़ना या सुनना हमें प्रेरित करता है।

 

सद्गुणों से समाज मजबूत होता है। बच्चों को सद्गुण सिखाना आवश्यक है ताकि वे अपने अंदर के राम को पहचानें। दुर्गुणों को पहचानना भी महत्वपूर्ण। ये हमें अस्थायी सुख देते हैं लेकिन स्थायी दुख। क्रोध से रिश्ते टूटते हैं, लोभ से अपराध होते हैं। दुर्गुणों को नियंत्रित करने के लिए क्षमा और त्याग अपनाएं। आधुनिक दुनिया में, सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग रावण का क्रोध है, जबकि सकारात्मक पोस्ट राम की करुणा। प्रार्थना, सेवा और सत्संग से दुर्गुण कम होते हैं। इतिहास में भी कई उदाहरण हैं। अब्राहम लिंकन ने गुलामी के खिलाफ लड़ाई में सद्गुण अपनाए, जबकि हिटलर ने दुर्गुणों से विश्व युद्ध करवाया। भारत में, स्वामी विवेकानंद राम की तरह थे, जिन्होंने ज्ञान और सेवा से दुनिया को प्रभावित किया। वहीं, कई अपराधी रावण की तरह अपने दुर्गुणों के शिकार होते हैं। व्यावसायिक दुनिया में, एलोन मस्क जैसे लोग सद्गुणों से नवाचार करते हैं, लेकिन कई कंपनियां लोभ से धोखाधड़ी करती हैं। रामायण का अंत राम की विजय से होता है, जो सिखाता है कि सद्गुण अंततः जीतते हैं।

 

मनुष्य के अंदर राम और रावण दोनों हैं—सद्गुण और दुर्गुण। राम हमें ऊंचाइयों पर ले जाते हैं, रावण पतन की ओर। इस द्वंद्व को समझकर हम सद्गुणों को मजबूत कर सकते हैं। रामायण की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। आइए, हम अपने अंदर के राम को जागृत करें और रावण को पराजित करें। इससे न केवल व्यक्तिगत जीवन सुधरेगा, बल्कि समाज भी बेहतर बनेगा। जीवन एक यात्रा है, जहां राम का मार्ग हमें मंजिल तक पहुंचाता है।

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