
मुंबई, एक अक्टूबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अमेरिकी प्रशासन के भारतीय निर्यात पर लगाए 50 प्रतिशत शुल्क से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने में निर्यातकों की मदद के लिए बुधवार को कई उपायों की घोषणा की।
इन उपायों में छोटे निर्यातकों और आयातकों के लिए कागजी कार्रवाई एवं अनुपालन बोझ को कम करना शामिल है।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सोमवार से शुरू तीन दिवसीय बैठक में लिए गए निर्णय की जानकारी देते हुए कहा, ‘‘ निर्यात क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।’’
प्रमुख उपायों में से एक आईएफएससी में भारतीय निर्यातकों के विदेशी मुद्रा खातों से धन वापस लाने की समयावधि को एक महीने से बढ़ाकर तीन महीने करना है।
आरबीआई ने जनवरी 2025 में भारतीय निर्यातकों को निर्यात आय की प्राप्ति के लिए भारत के बाहर किसी बैंक में विदेशी मुद्रा खाता खोलने की अनुमति दी थी।
इन खातों में जमा धनराशि का उपयोग आयात भुगतान के लिए किया जा सकता है या धनराशि प्राप्ति की तिथि से अगले महीने के अंत तक इसे वापस भेजा जा सकता है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘‘ भारत में आईएफएससी में रखे गए ऐसे विदेशी मुद्रा खातों के मामले में अब उसे वापस लाने की समयावधि को एक महीने से बढ़ाकर तीन महीने करने का प्रस्ताव है।’’
उन्होंने कहा कि इससे भारतीय निर्यातकों को आईएफएससी बैंकिंग इकाइयों में खाते खोलने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और आईएफएससी में विदेशी मुद्रा नगदी भी बढ़ेगी।
विनियमों में संशोधन शीघ्र ही अधिसूचित किए जाएंगे।
आरबीआई ने व्यापारिक लेन-देन के लिए विदेशी मुद्रा व्यय की अवधि को भी चार महीने से बढ़ाकर छह महीने कर दिया है। इस कदम से भारतीय व्यापारियों को लाभप्रदता बनाए रखते हुए अपने व्यापारिक लेन-देन को कुशलतापूर्वक पूरा करने में आने वाली चुनौतियों से निपटने में मदद मिलने की उम्मीद है।
केंद्रीय बैंक के अनुसार, ‘‘ व्यापारिक लेनदेन (एमटीटी) पर मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार, विदेशी मुद्रा के परिव्यय को चार महीने तक की अनुमति है। अब एमटीटी के मामले में विदेशी मुद्रा परिव्यय की अवधि को चार महीने से बढ़ाकर छह महीने करने का प्रस्ताव किया है।’’
इसके अलावा, निर्यातकों/आयातकों, विशेष रूप से छोटे मूल्य के सामान और सेवाओं के लिए अनुपालन को आसान बनाने के उद्देश्य से आरबीआई ने निर्यात आंकड़ा प्रसंस्करण एवं निगरानी प्रणाली (ईडीपीएमएस) और आयात आंकड़ा प्रसंस्करण एवं निगरानी प्रणाली (आईडीपीएमएस) में सामंजस्य की प्रक्रिया को सरल बनाने का प्रस्ताव रखा है।
संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, संबंधित निर्यातक या आयातक द्वारा यह घोषणा किए जाने के आधार पर कि ईडीपीएमएस/आईडीपीएमएस में प्रति बिल 10 लाख रुपये के बराबर या उससे कम राशि वसूल की गई है। बैंक द्वारा ईडीपीएमएस या आईडीपीएमएस में बिल का मिलान और समापन किया जा सकता है।
आरबीआई के अनुसार, ‘‘ संशोधित प्रक्रिया से ऐसी घोषणा के आधार पर प्राधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा बिल के वसूली योग्य मूल्य में कमी लाने में भी मदद मिलेगी। इस उपाय से छोटे मूल्य के निर्यातकों एवं आयातकों पर अनुपालन बोझ कम होने तथा व्यापार सुगमता बढ़ने की उम्मीद है।’’
गवर्नर मल्होत्रा ने भारत में अपनी व्यावसायिक उपस्थिति स्थापित करने वाले गैर-निवासियों के संबंध में फेमा विनियमों को युक्तिसंगत बनाने की योजना की भी जानकारी दी।
इसके अलावा, फेमा के तहत जारी बाह्य वाणिज्यिक उधार विनियमों में पात्र उधारकर्ताओं, मान्यता प्राप्त उधारदाताओं, उधार लेने की सीमा, उधार लेने की लागत, अंतिम उपयोग और ‘रिपोर्टिंग’ से संबंधित प्रमुख प्रावधानों को युक्तिसंगत बनाने का प्रस्ताव है।