मानव के शरीर की रक्षा करना प्रथम और आवश्यक कार्य है। इससे शरीर निरोग और बलवान रहेगा, तभी अन्य कार्य पूर्ण कर सकेंगे। आरोग्य ही सब धर्मों का मूल है। ’शरीर माद्यं खुल धर्म साधनम्।‘ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की साधना भी यह मानव शरीर है। आयुर्वेद के ’चरक निदान‘ में लिखा है, ’सर्वमन्यत्परित्यज्य शरीर मनुपालयते, तदभावे ही भावनां सर्वाभाव शरीरणाम।‘ अर्थात सभी कार्य छोड़कर सर्वप्रथम शरीर का पालन पोषण करना चाहिए, इसकी रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि शरीर है तो सब कुछ है। अगर शरीर ही न रहे तो फिर कुछ नहीं रहता। शरीर को निरोग रखने के लिए उचित आहार विहार के साथ-साथ व्यायाम और योग की मदद ली जा सकती है नहीं तो सुबह की सैर कर ही सकते हैं। यह स्वस्थ रहने का सबसे सरल, निरापद और अचूक साधन है. बालक, वृद्ध तथा महिलाओं के लिए सुबह की सैर किसी तोहफे से कम नहीं है। सुबह की ताजी और प्राणदायी हवा में टहलना उपयोगी होता है। नियमित रूप से सैर पर जाने वाले व्यक्तियों की सभी मांसपेशियां सक्रिय और पुष्ट हो जाती हैं। हड्डियों को भी मजबूती मिलती है, इससे वृद्धावस्था में अस्थिरोगों का खतरा घट जाता है। सुबह घूमने से रक्त संचारण तीव्र होता है, स्फूर्ति का अहसास होता है। धमनियों में रक्त के थक्के नहीं बनते, जिससे हृदयरोग, मधुमेह, रक्तचाप की बीमारियों से बचाव रहता है। सुबह की सैर से गठिए के रोगी को भी फायदा होता है। एक लाभ यह भी है कि इससे उम्र बढ़ने की प्रक्रिया मंद पड़ जाती है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि सुबह और शाम आधा-आधा घंटे टहल लें तो बहुत सी गंभीर बीमारियों का खतरा तीस से चालीस प्रतिशत कम हो जाता है और हार्टअटैक का खतरा भी काफी हद तक घट जाता है। वास्तव में सुबह की सैर एक संपूर्ण व्यायाम ही है, ऐसा व्यायाम, जिसका कोई साईड इफेक्ट नहीं। यह अवसाद और तनाव को समाप्त कर देती है। दिमाग और फेफड़ों को ताजी व स्वच्छ वायु देकर उन्हें ताकतवर बनाती है। इन सब बातों को देखते हुए हमें सुबह की सैर को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए।