एक वक्त था जब बच्चे को मां के कलेजे का टुकड़ा कहा जाता था। बच्चे की हल्की सी पीड़ा से ही मां का मन उद्वेलित हो उठता था। मां का सारा वक्त बच्चे के लालन पालन में ही व्यतीत हो जाया करता था। आज की आधुनिक माताओं के पास अपने बच्चे के लिए भी वक्त नहीं है। बच्चा अपनी माता की एक झलक देखने के लिए तरस जाता है तथा मां का इंतजार करते करते उसकी मासूम आंखें थककर नींद के आगोश में बंद हो जाती हैं पर मां को किट्टी पार्टी, क्लब या ब्यूटी पार्लरों से ही फुर्सत नहीं मिल पाती और बच्चा स्वयं को उपेक्षित एवं अकेला महसूस करने लगता है।
बच्चा मां के जितने करीब आने की चेष्टा करता है, मां बच्चे को अपने से उतना ही दूर धकेल देती है। बच्चे के कोमल मन में मां की तस्वीर बिगड़ने लगती है। वह मां-बेटे के रिश्ते की गहराई को समझ नहीं पाता।
अपनी संतान के भविष्य को अंधकारमय करने मंे आज की आधुनिक माताओं का बहुत बड़ा योगदान है। आज के बालक कल के देश की धरोहर हैं और आधुनिकता की अंधी दौड़ में वशीभूत होकर आज माताएं देश के भावी भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं।
मां का बच्चे के प्रति जिम्मेदार होना नितांत आवश्यक एवं जरूरी है। एक बच्चा अपनी मां से क्या चाहता है, इस बात को ध्यान में रखकर मां को बच्चे की कोमल भावनाओं को समझना होगा। बच्चे को अपने आप से दूर रखकर बच्चे को आप अपना नहीं बना सकती, अतः बच्चे को अपने से दूर रखने के बजाए उसे प्यार से अपने करीब बैठाइए।
बच्चे की हर आवश्यकता का पूरा पूरा ख्याल रखना प्रत्येक मां का पहला कर्तव्य है। इस दायित्व से नजरें चुराकर भागने की आप लाख चेष्टा करें पर आप भाग नहीं सकतीं।
आधुनिकता एवं फैशन के पीछे पागल होकर जो माताएं अपने बच्चे के भविष्य के प्रति लापरवाही बरतती हैं या उसके भविष्य के साथ खिलवाड़ करती हैं, उन्हें अंत में जाकर सिवाए पछताने के कुछ भी हासिल नहीं होता। बच्चे के हर सुख-दुख तकलीफ-आराम में आपको भागीदार बनना चाहिए।
मां के रहते आप अपनी संतान को बिना मां की संतान न बनने दें। जिस तरह आपके माता-पिता ने आपके प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह किया, उसी प्रकार अपने बच्चों के प्रति आपको भी अपने दायित्वों का निर्वाह करना चाहिए ताकि आपके बच्चे का भविष्य सुन्दर तथा खुशहाल हो एवं देश भी एक होनहार नागरिक को प्राप्त कर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सके।
आज की हर माता अपने पुत्रा में श्रवण कुमार की छवि ढूंढती है। छवि देखना कोई खराब बात नहीं है पर उसके पहले आपको उन बातों पर भी विचार करना होगा कि श्रवण कुमार को एक आदर्श पुत्रा बनाने में उसकी मां की क्या भूमिका रही है। आप अपने पुत्रा में तो श्रवण कुमार की झलक देखना चाहती हैं पर क्या कभी आपने श्रवण कुमार की माता कहलाने योग्य खुद को महसूस किया?