जलवायु परिवर्तन: बुजुर्गों के मक्ष जीवन का संध्या काल बिताने की चुनौती
Focus News 29 September 2025 0
जलवायु परिवर्तन अब केवल पर्यावरण की चुनौती नहीं रह गया है बल्कि यह मानवीय स्वास्थ्य पर एक गंभीर संकट बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) की हाल में जारी एक नई रिपोर्ट में बुजुर्गों पर मंडरा रहे जानलेवा संकट की चेतावनी दी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक बुज़ुर्ग लोग खास तौर पर जलवायु परिवर्तन के कारण गम्भीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना कर रहे हैं। यह रिपोर्ट पूरी दुनिया के बुजुर्गों
पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का खुलासा करती है। भारत जैसे देश में, जहां बुजुर्गों की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, वहां जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य पर प्रभाव और भी अधिक चिंताजनक होते जा रहे हैं।
बुजुर्ग न केवल शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं बल्कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी उम्र के साथ घटती जाती है। ऐसे में वे भीषण गर्मी और लू के थपेड़ों, शीत लहरों, वायु प्रदूषण और नई उभरती बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी में इजाफा हो रहा है। यह बुजुर्गों के लिए प्रमुख स्वास्थ्य जोखिम है क्योंकि लू और अत्यधिक तापमान के दौरान उनके शरीर की तापमान नियंत्रित करने की क्षमता कम हो जाती है।
वर्ष 2022 की द लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000-2004 और 2017-2021 के दौरान जलवायु परिवर्तन से भारत में गर्मी से संबंधित मौतों में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इनमें बुजुर्गों की संख्या अधिक है क्योंकि उनकी शारीरिक क्षमता जलवायु बदलाव को झेलने में कम होती है। पिछले कुछ वर्षों में उत्तरी राज्यों सहित भारत के कई हिस्सों में भीषण गर्मी और लू का प्रकोप बढ़ा है। गर्मियों में तापमान 45से 50 डिग्री तक पहुंच जाता है। जलवायु परिवर्तन से वायु गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। यह स्थिति अस्थमा और दिल की बीमारी से जूझते बुजुर्गों के लिए यह परिस्थिति जानलेवा साबित हो जाती है क्योंकि उनकी त्वचा और शरीर की तापमान संतुलन क्षमता कम हो चुकी होती है, जिससे लू लगने, डिहाइड्रेशन और हृदयाघात का खतरा बढ़ जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जहां गर्मी के दिन बढ़ते चले जा रहे हैं, वहीं सर्दियों में भी अत्यधिक ठंड पडऩे लगी है। शीत लहर के कारण बुजुर्गों को हाइपोथर्मियां, रक्तचाप में गिरावट, तथा जोड़ों के दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खासकर उत्तर भारत में दिसंबर-जनवरी की सर्दियां उनके लिए घातक साबित हो सकती हैं।
जलवायु परिवर्तन के चलते मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया जैसे रोगों का प्रसार बढ़ा है। बुजुर्गों के लिए ये रोग अधिक घातक सिद्ध हो सकते हैं। मौसम जनित प्रभावों से उनमें तनाव, अकेलापन और अवसाद की स्थिति बनती है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) की हाल में जारी रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 1990 के दशक से अब तक 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में तापलहर के कारण होने वाली मौतों में लगभग 85 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार ताप लहरें, बाढ़ और बर्फ के पिघलने जैसे जलवायु परिवर्तन के सबसे घातक प्रभावों में से एक हैं। इनका सामना लिए तैयार रहना होगा। वह भी खास तौर पर बुज़ुर्गों जैसे सबसे संवेदनशील वर्गों की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है।
रिपोर्ट के अनुसार बुज़ुर्ग लोग अक्सर पुरानी बीमारियों, चलने- फिरने में कठिनाई या शारीरिक कमजोरी से जूझते हैं, वो भीषण गर्मी में जानलेवा खतरे का सामना करते हैं। ये खतरे तब और बढ़ जाते हैं जब वो प्रदूषित, भीड़भाड़ वाले शहरों या तटीय इलाकों में रहते हैं, जहां बुज़ुर्गों की आबादी ज़्यादा है और समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है।
हमारे देश में पहले तो दिल्ली, पटना, लखनऊ, कानपुर, जयपुर, जोधपुर जैसे बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यू) ‘खतरनाक’ श्रेणी में पहुंचता था, अब तो राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ समेत विभिन्न छोटे शहर भी इस स्थिति में आने लगे हैं। जाहिर है, समस्या बढ़ती ही जा रही है। भारत में 60 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों की संख्या अब लगभग 14 करोड़ तक पहुंच चुकी है और यह संख्या 2050 तक दोगुनी होकर 34 करोड़ 60 लाख हो जाने का अनुमान है। एक ओर जहां बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है, वहीं जलवायु परिवर्तन का असर भी तेज हो रहा है। इसके दुष्प्रभावों से बुजुर्गों को बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने ही होंगे। जलवायु परिवर्तन भारत में बुजुर्गों के स्वास्थ्य के लिए एक नया संकट बन कर उभरा है। हीटवेव, वायु प्रदूषण और संक्रामक रोगों के बढ़ते खतरे ने बुजुर्गों को गंभीर संकट में डाल दिया है।
जरूरत इस बात की है कि सरकारें, नीति निर्माता, स्वास्थ्य कर्मी और समाज के लोग मिलकर ऐसे समाधान खोजें जो बुजुर्गों को जलवायु परिवर्तन के बदलावों से सुरक्षित रख सकें। यूएनईपी की रिपोर्ट में इसके लिए शहरों को प्रदूषण मुक्त, सुदृढ़ और हर किसी के लिए सुलभ बनाने की सिफारिश की गई है, जहां हरित क्षेत्रों की पर्याप्त मौजूदगी हो। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि इसके लिए प्रमुख रणनीतियों में सुनियोजित शहरी विकास, सामुदायिक आधारित आपदा जोखिम प्रबंधन, और बुज़ुर्ग आबादी के लिए जलवायु संबंधी सूचनाओं तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित की जाए।
जलवायु परिवर्तन की आंच सबसे पहले और सर्वाधिक गहराई से बुजुर्ग शरीर को महसूस होती है। यह वह वर्ग है जिसने देश को दशकों तक अपने श्रम, ज्ञान और सेवा से समृद्ध किया है। अब जरूरत है कि हम उन्हें एक ऐसा वातावरण दें जहां वे जीवन का संध्या काल अच्छे स्वास्थ्य के साथ बिता सकें। यह केवल एक स्वास्थ्य संकट नहीं, बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी है।
अमरपाल सिंह वर्मा