पटना, 28 सितंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन ने रविवार को कहा कि भारत की असली ताकत ‘‘धर्म’’ की वह अवधारणा है, जिसने भाषाई विविधता के बावजूद देश को एक सूत्र में पिरोए रखा है।
राधाकृष्णन यह बात पटना में साहित्य अकादमी और केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव ‘उन्मेष’ के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कही।
राधाकृष्णन ने कहा, ‘‘यूरोप के एक महानुभाव ने मुझसे पूछा कि भारत बिना किसी एक भाषा के कैसे एकजुट रह पाता है। मैंने उत्तर दिया कि यहां के लोग भले ही अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, लेकिन वे धर्म की अवधारणा के माध्यम से एकजुट रहते हैं।’’
उन्होंने इस धारणा को भी खारिज किया कि “लोकतंत्र एक पश्चिमी अवधारणा है”, और कहा कि “2,500 साल पहले, बिहार की इस भूमि ने एक ओर शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य को देखा और दूसरी ओर प्राचीन गणराज्य वैशाली का जन्मस्थान भी बना।’’
उपराष्ट्रपति ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘ ‘उन्मेष’ नए विचारों, आख्यानों और दृष्टिकोणों के जागरण का प्रतीक है, जो विचारों में विविधता का उत्सव मनाता है और भाषा, संस्कृति, भूगोल और विचारधारा के बीच की खाई को पाटता है।” उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि उन्मेष साहित्यिक संस्कृति का आधार बना रहेगा और लेखकों, विचारकों और पाठकों की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
उन्होंने बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के बारे में भी विस्तार से बात की, जहां प्राचीन काल में भगवान बुद्ध और महावीर द्वारा आध्यात्मिक पुनर्जागरण हुआ था और नालंदा एवं विक्रमशिला में शिक्षा के केंद्र थे,जहां दूर-दूर से विद्वान आते थे। उपराष्ट्रपति ने महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले ‘चंपारण सत्याग्रह’ को भी याद किया और राज्य की लोक संस्कृति की सराहना की, जो मधुबनी चित्रकला और छठ पर्व में परिलक्षित होती है।
उपराष्ट्रपति बनने के बाद राधाकृष्णन का यह बिहार का पहला दौरा था। पटना हवाई अड्डे पर उनका स्वागत राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने किया।
राधाकृष्णन ने अपने संबोधन के दौरान राज्यपाल खान को ‘‘एक पुराना मित्र’’ बताया और कहा कि दोनों सांसद रहते हुए भी साथ काम कर चुके हैं।
कार्यक्रम स्थल की ओर जाते समय रास्ते में उपराष्ट्रपति ने कुछ देर रुककर महान समाजवादी लोकनायक जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने अपने संबोधन में ‘लोकनायक’ से जुड़ा व्यक्तिगत अनुभव भी साझा किया।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं जब 19 वर्ष का था तब मैंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए संपूर्ण क्रांति आंदोलन में खुद को झोंक दिया था। बाद में मैं इस आंदोलन का जिला महासचिव भी बना।’’
राधाकृष्णन ने याद किया कि उनकी सामाजिक-राजनीतिक यात्रा की शुरुआत अपने गृह राज्य तमिलनाडु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक के रूप में हुई थी।