रामलीला : हमारी लोक संस्कृति

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भगवान श्रीराम भारतीय जन मानस की आत्मा हैं। भगवान श्रीराम का जीवन हम सभी के लिए आदर्श है। भगवान श्रीराम व्यक्ति नहीं, विश्वास हैं। श्रीराम को जानने के लिए उनके जीवन चरित्र को समझना अति आवश्यक है। राम का नाम इस भवसागर से पार उतार ले जाता है। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। श्रीराम हम सबके अंदर बसे हैं. राम नाम ही हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे साथ रहता है। जब श्रीराम की बात होती है तो श्रीरामकथा और रामलीला की बात जरूर होती है। श्रीरामकथा करने वाले विद्वान आचार्य, साधु, संत महात्मा होते हैं जो स्वयं राममय होकर राम नाम को जीते हैं।

जहां तक रामलीला की बात है, भारतीय लोक संस्कृति में रामलीला का बहुत महत्व है। रामलीला का मंचन भारतीय जनमानस में नवऊर्जा और नवप्राण भर देने का काम करती है। भारतीय जनमानस में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं होगा, जिसने रामलीला ना देखी हो। रामलीला का मंचन अपने आप में अद्भुत है। श्रीराम का चरित्र, उनसे जुड़ी घटनाएं, हम सबके लिए आदर्श हैं। रामलीला का एक-एक दिन अलग-अलग शिक्षा देती रहती है। भगवान श्रीराम के चरित्र को रामलीला के माध्यम से मंचित किया जाता है। रामलीला में हर वर्ग का व्यक्ति हिस्सा लेता है और दर्शक भी हर वर्ग का होता है। उसमें बच्चे, युवा सभी आते हैं। रामलीला का महत्व केवल इतना ही नहीं है कि उसमें श्रीराम के चरित्र को दिखाया बताया जाता है बल्कि आप इसे सांस्कृतिक दृष्टि से भी देखें और समझे तो रामलीला के अंदर पूरा भारतीय समाज दिखाई देता है।

 

 दूसरी ओर रामलीला में लोकगीतों की एक बहुत लंबी परंपरा छिपी हुई है। रामलीला के लगभग हर एक दृश्य में लोकगीत चलते हैं और उनका गायन भी होता है। कई सारी रामलीलाएं तो संगीत आधारित होती हैं अर्थात चौपाइयों के गायन या फिर लोकगीतों के आधार पर होती हैं। कलाकार अपनी कलाएं, अपनी मुद्राएं बिखेर कर दर्शकों को रसानुभूति कराते हैं। लोकगीत के साथ-साथ लोक नृत्य भी रामलीला का प्रमुख अंग है। रामलीला के अंदर कई दृश्यों में नृत्य की मुद्राएं भी सामने आ जाती हैं। इन सभी बातों के अलावा रामलीला हम सबके रीति-रिवाज, परंपराओं को भी दिखाती है। राजसी वेशभूषा, तपस्वी वेशभूषा, आरती, पूजा पाठ, तीज-त्योहार, सामान्य जन का सहयोग आदि सभी कुछ दिखाया जाता है। भगवान श्रीराम का जीवन मर्यादाओं से बंधा है और वह सृष्टि के हर एक जीव को अपने साथ लेकर चलते हैं। हर एक जीव से बात करते हैं, जिससे कि लोगों में सृष्टि, संस्कृति, पर्यावरण, प्रकृति के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है।

रामलीला में समाज का हर एक रूप दिखाई देता है। भगवान श्रीराम की सामाजिक चेतना यह है कि वह राजघराने से निकलकर वनवासी रूप में आते हैं और रावण का वध करके वापस राजा बनते हैं। कठोर व्रत को धारण करते हैं, वनवास के समय किसी भी राजा के राजमहल या सुख-सुविधा का आनंद नहीं लेते हैं। इस पूरी यात्रा में भगवान श्रीराम वानर, भालू, पक्षी, नदी, पहाड़, झरने सभी से मिलते हैं और सभी भगवान राम का सहयोग भी करते हैं। भगवान श्रीराम भी कहीं ना कहीं इनका सहयोग करते हैं। रामलीला में यह सामाजिक चेतना समाज को नवजीवन भरने का संदेश देती है। कैसे भगवान होते हुए भी स्वयं श्रीराम प्रकृति को बचाने का संदेश दे रहे हैं। रीति-रिवाज, परंपराओं को पुनः जीवित करने का काम करते हैं।

हर वर्ष रामलीला का होना हमारी संस्कृति का बहुत बड़ा हिस्सा है। रामलीलाओं से समाज को शिक्षा, संस्कृति, रीति-रिवाज, लोक नृत्य, लोक गायन आदि सभी का ज्ञान होता है। समाज अपनी परंपराओं से जुड़ा रहता है। रामलीला केवल मंचन ही नहीं, दृश्य या कोई नाटक ही नहीं, बल्कि समाज रीति-रिवाज, परंपरा, लोकगीत, लोकनृत्य आदि का समावेश है। रामलीला का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ा है, भारतीय समाज की बात करें तो रामलीलाओं में नए युग का प्रादुर्भाव भी हुआ है। तकनीक के साथ रामलीला को जोड़ा गया है। रामलीला भारतीय लोककला और लोकसंस्कृति का बहुत बड़ा कार्य है। रामलीला में सभी पात्र अपने पूरी निष्ठा, भक्ति, प्रेम के साथ काम करते हैं। रामलीला केवल मंच पर दिखने वाला दृश्य ही नहीं बल्कि एक  भक्तिपरक, भावात्मक पक्ष है।

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