विश्व पटल पर रामकथा की प्राचीनता

भारतीय आर्य भाषा की सांस्कृतिक काव्य-परंपरा का श्री गणेश आदि काव्य वाल्मीकि ‘रामायणÓ से ही होता है। प्राचीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, प्राचीन हिंदी तथा लोक भाषाओं में गुम्फित है। सभी भारतीय भाषाओं में बारहवीं शताब्दी से रामकथा की काव्यमय रचनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। कतिपय भाषाओं में इसके पूर्व भी रामकथा की रचनाएं हुई हैं।
धीरे-धीरे रामकथा का प्रचार-प्रसार भारत में ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी हुआ। उनकी जीवन-गाथा पर अनेक ग्रंथों की रचना हुई। जिनमें क्षेत्र, परंपरा, रुचि तथा लेखकीय भावनाओं के अनुरूप कुछ अंतर और विरोधाभास भी आये और यह स्वाभाविक ही था। एक मान्यता यह भी है कि प्रत्येक कल्प में राम अवतार हुए, जिनकी जीवन गाथाओं में भिन्नता रही है। यही भिन्नता इन कथाओं में प्रकट हुई है।


रामायण, राम के माध्यम से युग-युग संगठन-शक्ति, साहस और शौर्य का इतिहास है। ऐसा इतिहास, जो बीत गया, जो बीतेगा। जो सांस-सांस में जीवित है। मानव की पवित्रता का इतना प्रबल बोध शायद ही किसी अन्य ग्रंथ में हो। रामायण महाकाव्य न केवल अपने युग का प्रतिनिधित्व करता है अपितु वह सनातन प्रतिनिधि भी है। प्रतिनिधि ही नहीं नेता है। प्रेरक है। किसी भी वर्ग का मनुष्य हो, किसी भी देश का मनुष्य हो, सभी राम के चरित्र से प्रेरित होते हैं। मनुष्य कैसे पूर्ण बन सकता है? संसार का अधिकतम सुख कैसे प्राप्त कर सकता है? कैसे रोज-रोज की ईष्र्या और कलह से बच सकता है? कैसे अपने और समाज के असामथ्र्य को पराक्रम में बदल सकता है? यह रायल एशियाटिक सोसायटी से प्रकाशित विल्स ने रामायण की व्याख्या करके बताया था। इसके बाद एल.पी. टेस्सिट्री जे.एन. कारपेंटर, सर जार्ज ग्रियर्सन व्यवस्थित रूप से रामकथा को प्रकाशित कराया। सारी रामायण / रामकथा बताती है कि रामकथा एक साथ समूह और व्यक्ति दोनों विधा की निर्माता है। समष्टिवादी और व्यक्तिवादी दोनों के वाद को लेकर एक साथ चलने का विधान भी रामकथा में है। रामकथा सामूहिक कल्याण के प्रति सावधान है।


यूरोपीय भाषाओं में रामकथा का प्रचार प्रसार सत्रहवीं शताब्दी से आरंभ होता है। उन्नीसवीं शताब्दी में सर्वप्रथम एच. एन. कराया और बीसवीं शताब्दी में फादर कामिल बुल्के के अतिरिक्त विश्व के अन्य विभिन्न देशों ने राम कथा पर महत्वपूर्ण कार्य किया। कई देशों में रामकथा साहित्य, शिलालेखों भित्ति चित्रों, मंदिरों और विभिन्न देवी देवताओं के विग्रहों के रुप में विद्यमान है जो रामकथा के विश्वव्यापी होने का ज्वलंत प्रमाण हैं। विदेशी विद्वानों ने रामकथा पर अपने-अपने ढंग से कलम चलाई है।


विश्व में विभिन्न देशों में रामकथा जिस रुप में व्याप्त है, उनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है-
नेपाल- यहां के राष्ट्रीय अभिलेखागार में वाल्मीकि की दो प्राचीन पाण्डुलिपियाँ नेपाल के राष्ट्रीय अभिलेखागार में सुरक्षित हैं। इसमें एक पाण्डुलिपि किष्किंधा कांड की पुष्पिका पर नेपाल नरेश गांगेयदेव का नाम अंकित है। इसकी तिथि वि.सं. 1076 (1019 ई.) है। दूसरी पांडुलिपि नेपाली संवत 795 (1764 ई.) की है। भानुभक्त आचार्य ( 1814- 1868ई.) ने 1833 में पाली भाषा में रामायण की रचना आरंभ की। सन् 1849 में रामायण का बालकाण्ड तथा कारागार में रहते हुए उन्होंने अयोध्या काण्ड एवं सुंदरकांड की रचना की। अगले वर्ष शेष 2 भाग पूर्ण किए। इस प्रकार 11 वर्षों में रामायण पूरी हुई। सन् 1954 ई. में भारत जीवन प्रेस काशी से इनका प्रकाशन हुआ।


इस रामायण की कथा का आधार आध्यात्म रामायण है। तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस को जो लोकप्रियता भारत में प्राप्त है उतनी ही लोकप्रियता नेपाल में भानुभक्त की रामायण को प्राप्त है। इसके पूर्व नेपाली रामकाव्य परंपरा में गुमानी पंत और रघुनाथ भट्ट का नाम उल्लेखनीय है। रघुनाथ भट्ट कृत रामायण सुंदरकांड की रचना 19 वीं शती के पूर्वाद्र्ध में हुई और इसका प्रकाशन ‘नेपाल साहित्य सम्मेलन दार्जिलिंग द्वारा 1932 ई. में हुआ। सुंदरानंद रामायण एवं आदर्श राघव के नाम से भी नेपाली भाषा में रामकथा की रचना हुई।


मिथिलांचल- मिथिला में रामकथा की रचना की स्फुट परंपरा का आरंभ चंद्र झा रचित मिथिला भाषा रामायण से होता है। इसका प्रथम प्रकाशन 1891 ई. में हुआ। दूसरा प्रकाशन 1909 ई. में तीसरा प्रकाशन 1931 ई. में तथा गुटका के रुप में 1949 ई. में हुआ। यह मूलत: अध्यात्म्य रामायण पर आधारित है। इसमें सात सर्ग हैं। इसके बाद लालदास रचित रमेश्वर चरित को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसमें सात काण्डों के अतिरिक्त आठवाँ पुष्कर काण्ड भी है। पं. तेजनाथ कृत राम जन्म, पं. जीवन नाथ झा रचित रावण वध श्री वैद्यनाथ मल्लिक विधु रचित महाकाव्य सीताराम, पं. विश्वनाथ झा का राम सुयेश सागर, रमाकांत व्यथा भुवनेश्वर प्रसाद रचित मैथिल बाल रामायण, पं. सीताराम झा कृत मैथिली रामायण, श्रीमती ध्यामा देवी कृत मैथिली रामायण, राजलक्ष्मी कृत विभीषण शरणापत्र साहेब रामदास कृत हनुमान फागु के अतिरिक्त लक्ष्मीनाथ गोसांई एवं अजूबा दास ने भी मैथली में राम काव्य की रचना की। आधुनिक परंपरा में मोदलता, स्नेहलता, रसनिधि, रूपलता तथा नारायण भक्त श्रीमाली राम कथा के सृजन में निरत हैं।


म्यांमार (वर्मा) – यहां के क्यानझित्था नरेश (1084-1113) तो स्वयं को भगवान राम का वंशज ही मानते थे। वर्मा में अधिकांश नगरों के नाम राम के नाम पर मिलते हैं। जैसे रामवती नगर। यहां राम को यम, सीता को शिंडा, लक्ष्मण को लखन एवं परशुराम को पशुयान कहते हैं। अमरपुर के एक बिहार में लक्ष्मण, सीता और हनुमान के चित्र आज तक अंकित है। यहां यम जटडों के नाम से रामायण प्रचलित है। 18वीं शताब्दी के लगभग यू-तो-की द्वारा रामांयागन की रचना वर्मी भाषा में की गई थी जिसे यहां पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त है।
तिब्बत-तिब्बती रामायण की 6 प्रतियां तनु-हुआंग नामक स्थान से प्राप्त हुई हैं। उत्तर पश्चिम चीन में स्थित तनु-हुआंग पर 787 से 858तक तिब्बतियों का अधिकार था। ऐसा अनुमान किया जाता है कि इसी अवधि में इन गैर बौद्ध परंपरावादी रामकथाओं का सृजन हुआ। तिब्बत की सबसे प्रमाणिक रामकथा किरंस-पुंस-पा हैं जो काव्यादर्श की श्लोक संख्या 297 और 289 के संदर्भ में व्यवस्थित हुई है और जो तिब्बती रामायण नाम से जानी जाती है।
चीन- चीनी प्राच्यविद एवं इतिहासज्ञ जी जियानलिन ने 1960-76 ई. के दौरान वाल्मीकि रामायण का संस्कृत से चीनी भाषा में अनुवाद किया। इस कार्य हेतु हमारी भारत सरकार ने उन्हें 2008 ई. में पद्य भूषण से सम्मानित किया था। इण्डो चायना में रामकथा रामकीर्ति या राम कैर्ति तथा खमैर रामायण नाम से उपलब्ध हैं। चीनी साहित्य में रामकथा पर आधारित कोई मौलिक रचना नहीं है।


रूस- रूस के काल्मिक प्रदेश के शहर एलिस्ता में काल्मिक भाषा में रामायण प्रकाशित हुई है। रूस के प्रसिद्ध हिन्दी समर्थक अलैक्सेई वासन्निकोव ने रामचरित मानस का रुसी भाषा में अनुवाद किया और संपूर्ण रुस तथा निकटवर्तीय अन्य देशों में रामकथा का प्रचार किया। रुस में तीसरी से नौवीं शताब्दी के बीच तिब्बती और खेतानी भाषा में लिखी संक्षिप्त रामकथाएं प्राप्त होती हैं, जो उन दिनों काफी लोकप्रिय थीं। श्रीमती नतालिया गुलेवा ने रामकथा पर बच्चों के लिए रंगमंचीय नाटक तैयार किए हैं।


थाईलैंड- यहां के पुराने रजवाड़ों में भारत की भांति ही राम पादुकाएं लेकर राज्य करने की परंपरा पाई जाती है। यहां के निवासी अपने को रामवंशी मानते हैं। यहां अजुढिय़ा, लवपुरी और जनकपुरी जैसे नामों वाले नगर हैं। यहां पर मंदिरों में स्थान-स्थान पर रामकथा के प्रसंग चित्रित हैं। थाईलैंड भारतीय आदि संस्कृति का एक दूसरा स्तंभ हैं। रामायण का प्रचार यहां घर-घर में है ।


जब मूल रामकिएन (1767-1782 ई.) यहां के सम्राट बने तब उन्होंने थाई भाषा में रामकाव्य रामकिएन की छंदोबद्ध रचना 4 खण्डों में 2,012 पदों में की। सम्राट राम ( 1782-1809) ने अनेक कवियों के सहयोग से रामकिएन की पुन: रचना कराई, जिसमें 50, 188 पद है। यह थाई भाषा की पूर्ण रामायण है।


कम्बोडिया- यहां हिन्दू सभ्यताओं के अन्य अंगों की भांति रामायण का प्रचलन वर्तमान समय तक है। छठी शताब्दी के एक शिलालेख के अनुसार यहां कई स्थानों पर रामायण तथा महाभारत का पाठ होता था।


यहां खमैर भाषा में रामकोर /रामकेर/ रीमकेर/ रामकीर्ति आदि विभिन्न नामों से रामकथा लिखी गई है। यह वाल्मीकि रामायण का कम्बोडियाई संस्करण है।


मलेशिया – यहां रामकथा का प्रचार वर्तमान काल तक है। यहां के मुस्लिम धर्मावलंबी भी अपने नाम के साथ बहुधा राम, लक्ष्मण और सीता के नाम जोड़ते हैं। मलेशियायी भाषा बहासा मेलायु में यहां हिकायत सेरी राम नाम से रामकथा उपलब्ध है। इसका लेखक अज्ञात है। इसका रचनाकाल 1400-1500 ई. माना जाता है। इसके अतिरिक्त मैक्सवेल द्वारा सम्पादित सेरीराम, विंसटेड द्वारा प्रस्तुत प्रकाशित पातानी रामकथा और ओवरवेक द्वारा प्रस्तुत हिकायत महाराज रावण के नाम उल्लेखनीय हैं। हिकायत सेरीराम का फ्रांसीसी लेखक पियरे वर्नार्ड लाफोट (1926-2008) ने फ्रेंच भाषा में अनुवाद फोम्स चक शीर्षक से किया है।


जावा- यहां श्रीराम राष्ट्रीय पुरुष के रुप में सम्मानित हैं। यहां की सबसे बड़ी नदी का नाम सरयू है। रामायण के अनेक प्रसंगों के आधार पर यहां अब भी रात-रात भर कठपुतलियों का नाच होता हैं। यहां के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के श्लोक स्थान पर अंकित हैं। यहां की भाषा में रामकथा 1. लेखराम, 2. सैरी राम, 3. रामकेलिंग तथा 4. पातानी ग्रंथों के रुप में उपलब्ध हैं।


सुमात्रा – द्वीप का वाल्मीकि रामायण में स्वर्ण भूमि नाम दिया गया है। रामायण यहां के जन जीवन में वैसे ही अनुप्राणित है जैसे भारत वासियों में है।


बाली- यह द्वीप भी थाईलैंड, जावा और सुमात्रा की भांति भारतीय आदि संस्कृति का दूसरा सीमा स्तंभ है। रामायण का प्रचार यहां घर-घर में हैं।


मंगोलिया- चीन के उत्तर पश्चिम में स्थित मंगोलिया के लोगों को रामकथा की विस्तृत जानकारी है। दानिदनसुरेन (1908-1986) नामक एक मंगोलियाई लेखक और भाषाविद् ने मंगोलियाई और कल्मिक भाषा में लिखित चार रामकथाओं की खोज की है।
खेतानी रामायण- मध्येशिया में चीनी तुर्किस्तान (सिंकियांग) की मरुभूमि के दक्षिणी सिरे पर एक नगर खेतान है । जिसकी भाषा खेतानी है। एच. डब्ल्यू, बेली, पेरिस पाण्डुलिपि संग्रहालय से खैतानी रामायण को खोजकर प्रकाश में लाते। उनकी गणना के अनुसार इसकी तिथि नवम शताब्दी है। खेतानी रामायण अनेक स्थानों पर तिब्बती रामायण के समान है।


जापान- यहां के एक लोकप्रिय काव्य संग्रह होबुत्सूथू संक्षिप्त में संकलित है। इसकी रचना 12 वीं शताब्दी में तैरानों यथुयोरी ने की थी। इसमें रामकथा का उल्लेख मिलता है।


लाओस – रामकथा संबंधी दो ग्रंथ यहां फोलाक फालम तथा फोमचक्र नाम से मिलते हैं। लाओस की रामायण यहां का राष्ट्रीय महाकाव्य हैं। लाओस में प्रचलित रामायण की गाथा वट – पा- केन मंदिर में सुरक्षित है। 20-20 पृष्ठों में इसके 40 भाग हैं। इसी तरह रामायण की एक दूसरी पाण्डुलिपि वट सिस्केत मंदिर में सुरक्षित है।


वियतनाम- यहां का पूर्व नाम चम्पा था। केंत्रो – किउ नामक स्थान में राजा प्रकाश धर्म प्रथम (653-686ई.) के एक शिलालेख में आदि कवि वाल्मीकि का स्पष्ट उल्लेख है-कवोराधस्य महर्ष वाल्मीकि तथा उसी में वाल्मीकि के प्राचीन मंदिर का उल्लेख है।


इण्डोनेशिया- इसे मुस्लिम बहुल देश का गौरव प्राप्त हैं। यहां न्यायालयों में प्राय: रामायण पर ही हाथ रखकर सत्य भाषण की शपथ ली जाती है। लगभग 870 ई. में मेडंग साम्राज्य में रचित काकविन रामायण सर्वमान्य कथा है। विद्वानों के अनुसार काकविन रामायण की रचना छठीं- सातवीं शताब्दी में भारतीय संस्कृत कवि भट्टि विरचित रावण वध (भट्टिकाव्य) पर आधारित है। इसमें 26 सर्ग तथा 2778 पद हैं। काकविन रामायण को काकाविल भी कहा जाता है। बहरसा इण्डोनिशियायी भाषा में रचा गया है।


फिलीपींस – सन् 1768ई. में प्रो. जॉन आर फ्रांसीस्को ने स्थानीय इस्लामी मरानियों जाति के लोगों में रामायण की एक संक्षिप्त कथा पायी थी। जिसका नाम महारादिया लावन (महाराजा रावण) है। उसमें राम को एक प्राचीन अवतार कहकर प्रस्तुत किया है।


फ्रांस- फ्रांसीसी विद्वान मार्सादतासी ने फ्रांसीसी भाषा में इस्त्वार दला लितरात्योर इंदुई ऐं हिंदुस्तानी नाम से हिंदी साहित्य का इतिहास दो भागों में सन् 1839 और 1846 ई. में प्रकाशित कराया। इसका दूसरा संस्करण तीन भागों में सन् 1871 ई. में प्रकाशित हुआ। गार्सादतासी भारतीय साहित्य और संस्कृति से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने रामायण के सुंदर कांड का अनुवाद फ्रेंच भाषा में किया। ईनीविल ने फ्रेंच भाषा में किया। ईनीविल ने फ्रेंच भाषा में स्वतंत्ररूप से रामकथा की रचना की। पियरे बर्नार्ड लार्फोट (1926-2008) नामक एक फ्रांसीसी लेखक ने फ्रांं-लाक-राम का संक्षिप्त फ्रांसीसी संस्करण फ्रोमचक्क शीर्षक से प्रकाशित किया। फ्रांसीसी विदुषी शार्तल वोविल ने मानस के रचना क्रम का गंभीर विश्लेषण किया है।


इटली – यहां के विद्वान डॉ. लुहजीपियों टेसीटेरी ने रामकथा पर शोधकार्य इटैलियन भाषा में करके फलोरेंस विश्व-विद्यालय से पी-एच डी की उपाधि अर्जित की है।


इंग्लैंड- वाल्मीकि रामायण का प्रथम अंग्रेजी अनुवाद फ्रेडरिक सालमन ने सन् 1883 ई. में किया था। रामचरित मानस का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद एफ.एस. ग्राउज ने सन् 1871 ई. में किया था। फादर कामिल बुल्के ने तो अपना पूरा जीवन ही रामचरित मानस के अध्ययन, अध्यापन एवं प्रचार, प्रसार में लगा दिया।


इण्डो चायना (हिंद चीन ) – हिंद चीन के अनाम में कई शिलालेख मिले हैं जिनमें राम का यशोगान है। यहां के निवासियों में ऐसा विश्वास प्रचलित है कि वे वानर कुल उत्पन्न हैं और श्री राम नाम के राजा यहां के सर्वप्रथम शासक थे। रामायण पर आधारित कई नाटक यहां के साहित्य में मिलते हैं ।


श्रीलंका- यहां कई रूपों में रामकथा प्रचलित है। रामलीला की ही भांति यहां नाटक खेले जाते हैं। लंका नरेश धातुसेन (512-520ई.) उन्होंने जानकी हरणम नामक महाकाव्य की रचना की। यह संस्कृत का उत्कृष्ट महाकाव्य हैं। बारहवीं शताब्दी में किसी अज्ञात कवि ने इसका सिंहली भाषा में शब्दश: अनुवाद किया। जान डिसिल्वा (1857-1922 ई.) जैसे सिंहली नाटककारों ने रामकथा पर आधारित नाटकों की रचना की।


मैक्सिको एवं मध्य अमेरिका की मय सभ्यता और इन्का सभ्यता पर प्राचीन भारतीय संस्कृति की जो छाप मिलती है उसमें रामायणकालीन संस्कारों का प्राचुर्य है। पेरु में राजा अपने को सूर्यवंशी ही नहीं कौशल्या सुत राम के वंशज मानते हैं। राम सीतव नाम से आज भी यहां रामसीता महोत्सव मनाया जाता है। मीलों क्लेव लैंड ने बाल साहित्य के रूप में रामकथा को ऐडवेंचर ऑफ राम शीर्षक से लिखकर प्रकाशित की। रामकथा की व्याप्ति इसके कालजयी होने के कारण है। रामकथा में विश्व मानवता को नवीन चेतना देने की क्षमता पूर्ववत् आज भी विद्यमान है तथा उसके शाश्वत जीवन मूल्यों को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। आज के अनास्थावादी युग में तो रामकथा का महत्व और भी अधिक बढ़ता जा रहा है।


आज भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में यह स्थिति है कि हम मूल को न सींचकर पत्तों को सींचने का प्रयत्न कर रहे हैं। इसी कारण सारा संसार संकट ग्रस्त हो रहा है। यदि हम रामकथा के अनुसार कार्य करें तो स्वराज्य और सुराज दोनों की आदर्श स्थिति लाई जा सकती है। रामकथा का अर्थ है आनंद, सुख और शांति।