अजीर्ण या मंदाग्नि से बचाव

जब कोई मनुष्य बहुत समय तक अनुपयुक्त अथवा अधिक आहार करता है तथा कुसमय भोजन करता है तो उसकी पाचन शक्ति निर्बल हो जाती है जिसके कारण कभी कब्ज़ियत होना या कभी पतले दस्त होना, भूख मर जाना, पेट फूलना, पेट में वायु का संचय होना, पेट दर्द, छाती में जलन आदि लक्षण पैदा हो जाते हैं। यह स्थिति अजीर्ण कहलाती है। अजीर्ण को बदहज़मी, अपच, मंदाग्नि तथा अग्निमांध भी कहते हैं।


जब बिना भूख लगे अभ्यास या परिस्थितिवश अधिक भोजन किया जाता है तो वह भोजन बिना ठीक से परिपाक हुए आंतों में चला जाता है। आंतों में उस भोजन से जो रस बनता है वह कच्चा होता है। उसमें सड़न होने लगती है जिससे आंव की उत्पत्ति होती है। यह आंव नसों को कमज़ोर कर देता है जिससे मंदाग्नि का रोग अपनी जड़ जमा लेता है।


मंदाग्नि को दूर करने के लिए बिना भूख लगे नहीं खाना चाहिए। भूख लगने पर ही खाना चाहिए। झूठी भूख आमाशय में अम्लरस एकत्रित हो जाने के कारण लगती है। सच्ची भूख की पहचान ‘चरक संहिता‘ में इस प्रकार बतलाई गई है ‘‘पहली बार के भोजन के उपरांत जब मलमूत्रा का उत्सर्ग हो जाए, मन प्रसन्न हो, वातपित्त, कफ की स्थिति यथोचित हो, शुद्ध डकार आए, अधोवायु निकल जाए, जठराग्नि प्रदीप्त हो, देह हल्की हो, तब नियम तथा काल का ध्यान रखते हुए भोजन करना उचित है।


भारत के सर्वप्रथम आयुर्वेदाचार्य ने भी आदेश दिया है कि स्वाभाविक भूख लगने पर भोजन करना चाहिए। उस समय मनुष्य जो साधारण रोटी, दाल आदि खाता है वह उसके स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है। इसके विपरीत बिना भूख लगे घी, दूध, मिठाई, फल पौष्टिक आहार खाते रहने पर भी कोई लाभ नहीं होता और ऐसा व्यक्ति प्रायः किसी न किसी रोग के चंगुल में फंसा रहता है और धीरे-धीरे कमज़ोर और रक्तहीन हो जाता है। इस रोग के उपचार की कई विधियां हैं।


आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा कब्ज़ की चिकित्सा की भांति इसमें भी वहीं नियम एवं क्रियाएं करनी चाहिए। साथ-साथ आयुर्वेदिक निरापद औषधियों के सेवन से जल्दी लाभ मिलता है।


लवण भास्कर चूर्ण रोज़ भोजन के बाद 1 ग्राम से 3 ग्राम, ज़रूरत के अनुसार 10 ग्राम तक सेवन करने से मंदाग्नि का रोग उत्पन्न नहीं होता।


हिग्वष्टक चूर्ण भोजन के समय पहले ग्रास में घी में मिलाकर खाने से वायु प्रधान मंदाग्नि अच्छी हो जाती है और पेट में वायु का जमा होना, डकार आना, भूख न लगना आदि ठीक हो जाता है।


सौंफ, सोंठ और मिश्री बराबर मिलाकर ताज़े पानी के साथ लेने से भी लाभ होता है।
चुंबकीय चिकित्सा के अंतर्गत एक विधि द्वारा पेट पर चुंबक लगाने एवं रोगी को दिन में कई बार चुंबकीय जल पिलाने से इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है किंतु चुंबक चिकित्सक से परामर्श लेकर ही करना चाहिए।


योगाभ्यास द्वारा उपचार, सूर्य नमस्कार, पवन मुक्तासन के कुछ अभ्यास, अग्निसार क्रिया नौलि, वस्ति एवं प्रतिदिन लघुशंका प्रक्षालन करने से पुरानों से पुराना रोग ठीक हो जाता है। योग्य शिक्षक या योग्य चिकित्सक से मार्गदर्शन व उपचार कराए जाने पर अवश्य लाभ मिलता है।


मंदाग्नि के रोगी को हल्का और पौष्टिक भोजन लेना चाहिए। पानी ज़्यादा पीना चाहिए।
मौसमी फल पपीता, संतरा, नींबू, अदरक, हरा पुदीना लेना एवं तेल खोया, भांग, तंबाकू आदि छोड़ना बहुत लाभदायक होता है। भोजन का पाचन न होने पर नाना प्रकार की व्याधियां उत्पन्न होती है। उपवास द्वारा भोजन का पाचन हो जाता है और कड़ी भूख लगती है, इसलिए प्राकृतिक चिकित्सक के संरक्षण में युक्ति युक्त उपवास करना चाहिए।


किसी महापुरूष ने कहा है कि जिन्हें लंबी जिंदगी जीनी है, उन्हें बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी नहीं खाना चाहिए। इस नियम का पालन करने से हम इस रोग से सरलता से बच सकते हैं।