डिप्रेशन का रोगी कोई क्यों बन जाता है, इसके कई कारण बतलाये जाते हैं। डिप्रेशन के लक्षण क्या क्या होते हैं, इसकी कोई निश्चित सूची नहीं है। यह मानसिक विकार जनित रोग है जो मनुष्य की भावनाओं से जुड़ा है।
डिप्रेशन में आदमी हतोत्साहित रहता है। उसमें ऊर्जा शक्ति क्षीण रहती है जिसके कारण उसमें शौर्य, साहस, संघर्ष करने की शक्ति, आगे बढ़ने का हौसला क्षीण होता जाता है। जिसके फलस्वरूप डिप्रेशन के रोगी अपने को दीन हीन और असहाय समझते हैं। उसका महत्त्व उसकी अपनी नजर में गिर जाता है। डिप्रेशन में गुणों का Ðास हो जाता है और उसकी जगह ‘दुर्गण’ बढ़ जाते हैं।
आदमी में सकारात्मक सोच और रचनात्मक प्रकृति या तो मर जाती है या निष्प्रभावी बन जाती है। जब आदमी यह सोचने लगे कि हमसे यह काम नहीं होगा, कोई काम करने में भयभीत हो जाये, असाध्य होने का डर बना रहे तो ऐसी हालत में वह आदमी किसी काम का नहीं होता। तब वह सकारात्मक सोच से नकारात्मक सोच की ओर तथा रचनात्मक प्रकृति, से विध्वंसात्मक प्रकृति को ओर भागने लगता है। वह किसी काम का कोई उत्तदायित्व नहीं लेना चाहता। उसमे आगे बढ़कर कोई काम करने की हिम्मत नहीं होती।
डिप्रेशन में विचारों का ऐसा असंतुलन हो जाता है कि सामान्य से हटकंर बिलकुल असामान्य रूप से बोलने और व्यवहार करने लगता है। वह ऐसा विवादग्रस्त होता है कि अवसाद में डूबा रहता है और हरदम उदास रहता है। नकारात्मक सोच के कारण आदमी को हर काम कठिन और असंभव लगता है। अगर, कोई व्यक्ति कोई काम करता है तो उसमें दोष तथा त्राटि देखने का वह आदि हो जाता है। वह पराक्रमी तथा पुरूषार्थ व्यक्ति की छाया से भी डरता हे। वह आदमी में तो क्या, वह भगवान में भी दोष देखने लगता है। असल में जब वह कुछ करने की स्थिति में नहीं होता तो अपनी हैसियत या हस्ती दूसरों को नीचा दिखाने में करता है।
दूसरों का मजाक उड़ाना, दूसरों की खुशी में भाग लेने से भागना, दूसरे की उपलब्धियों की उपेक्षा करना या नगण्य समझना उसकी नियति हो जाती है। डिप्रेशन आदमी में इतना अवसाद पूर्ण हो जाता है कि वह अपनी ऊंची डिग्रियां, योग्यता और सामर्थ्य को भी भुला देता है।
ऐसा व्यक्ति अपने मित्रों से कतराता है, अपने परिवारों से दूर रहता है और जो उसके नजदीक रहने वाले होते हैं उनसे वे झगड़ा करने पर उतारू हो जाता है। झगड़ा करने तथा गाली गलौज करता है। वह समस्त मानवीय मर्यादाओं तथा नाते रिश्ते की गरिमा भुला देता है। वह अकेला रहना पसंद करता है। अपने काम के प्रति उदासीन तो हो ही जाता है, इस तरह उसकां अपना चित्रा, चरित्रा भी धूमिल हो जाता है। उनका व्यवसाय या उद्योग धंधे भी खराब हो जाते हैं।
ऐसे लोगों को कोई नहीं समझा सकता है और न ही उन्हें चिकित्सा के लिए डाक्टर के पास भेजा जा सकता है। डिप्रेशन में ऐसा लगता है जैसे रोगी का सिर नीचे तथा पैर ऊपर हो। वह बिलकुल उल्टी खोपड़ी का आदमी बन जाता है।
जो आदमी उल्टी खोपड़ी का होता है, वह हर बात उल्टी ही बोलेगा, हर काम उल्टा ही करेगा। ऐसी स्थिति में उसका बड़ा घातक परिणाम सामने आता है। इसलिए यदि मानसिक विकारों से ग्रसित व्यक्ति को डिप्रेशन की श्रेणी में रखा जाता है और यदि समय पर इसका इलाज नहीं हुआ तो ‘पागल’ की श्रेणी में चला जाता है। ऐसे केस में रोगी की चिकित्सा भी की जाती है तथा उसके साथ कॉउसलिंग भी की जाती है, जहां उसके साथ बातचीत के द्वारा उसके दिमाग को जागृत किया जाता है ताकि वह असामान्य अवस्था से उबर कर सामान्य जीवन के मार्ग पर आ सके।