
डॉ घनश्याम बादल
विविधताओं का देश भारत भाषाई विविधता का अनूठा संगम है। संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं स्वीकृत है, देश में सबसे अधिक लिखी, बोली, पढ़ी एवं सुनी जाने वाली देवनागरी हिंदी राष्ट्रभाषा होने के सभी मानकों पर खरी उतरती है परंतु क्षेत्रीयता एवं राजनीति के चलते आज तक इस उपलब्धि को हासिल नहीं कर पाई है।
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को भारत संघ की राजभाषा का दर्जा प्रदान किया उसी दिन को विशिष्ट बनाने हेतु हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी दिवस हिंदी के सामने खड़ी चुनौतियों, उसकी खूबियों और श्री वृद्धि की यात्रा समीक्षा का सबसे उपयुक्त दिन है ।
चुनौतियाँ
हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद उसके समक्ष अनेक चुनौतियाँ उपस्थित हुईं। इनमें कुछ ऐतिहासिक, कुछ राजनीतिक और कुछ सामाजिक बाधाएं थीं।
भाषाई विविधता और क्षेत्रीयता का प्रश्न – भारत में लगभग 19,500 मातृभाषाएँ और बोलियाँ प्रचलित हैं। दक्षिण भारत में द्रविड़ भाषाओं का बोलबाला है, जहाँ हिंदी के प्रति शुरुआती दौर में विरोध भी देखने को मिला। हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देने के प्रस्ताव पर तीव्र बहस हुई और समझौता सूत्र के रूप में अंग्रेजी को भी सह-राजभाषा बनाया गया।
अंग्रेजी का प्रभाव और वैश्वीकरण
शिक्षा, रोजगार और तकनीक के क्षेत्र में अंग्रेजी का बढ़ता वर्चस्व हिंदी के लिए चुनौती बन गया। उच्च शिक्षा, विज्ञान, न्यायपालिका और कॉर्पोरेट सेक्टर में आज भी अंग्रेजी का प्रभुत्व है।
तकनीकी शब्दावली और मानकीकरण हिंदी में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और प्रशासन के लिए उपयुक्त शब्दावली विकसित करना कठिन कार्य रहा। कठिन और संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के कारण आमजन में दूरी बनी।
उपनिवेशवाद की मानसिकता
लंबे समय तक अंग्रेजी शासन के कारण अंग्रेजी को आधुनिकता और प्रगति का प्रतीक माना जाने लगा। हिंदी को कभी-कभी “ग्रामीण” या “पिछड़ेपन” की भाषा मानने की प्रवृत्ति ने भी इसकी स्वीकृति में बाधा डाली।
मीडिया और बाजार की प्राथमिकताएँ सिनेमा, विज्ञापन और सोशल मीडिया ने कई बार हिंदी को मिश्रित (हिंग्लिश) स्वरूप में प्रस्तुत किया। इससे शुद्ध हिंदी की स्वीकृति कम हुई और भाषा का शुद्ध रूप हाशिए पर जाने लगा।
चुनौतियां केवल यही नहीं थी बल्कि हिंदी के प्रति है हेय भाव रखने की मानसिकता, अंग्रेजी दां लोगों को श्रेष्ठ समझना, हिंदी को वैश्विक भाषा के तौर पर कमजोर सिद्ध करने के प्रयास और राजनीति व क्षेत्रीयतावाद ने भी हिंदी के पांव में बेड़ियां डालने का काम किया
लेकिन अगिणित चुनौतियों के बावजूद यदि हिंदी ने अपने विकास की यात्रा जारी रखी तो उसके पीछे हिंदी का सामर्थ्य है । उसकी वैज्ञानिकता एवं भावों के अनुरूप शब्द भंडार उसकी ताकत बनी है।
हिंदी की खूबियाँ :
हिंदी की कुछ विशेषताएँ ऐसी हैं जिनके कारण यह समय के साथ अधिक प्रासंगिक और लोकप्रिय बन गई है।
सरलता और सहजता
हिंदी अपेक्षाकृत सरल व्याकरण वाली भाषा है। इसके ध्वनि-तत्व स्पष्ट हैं और शब्द उच्चारणानुकूल हैं। इसमें मुख्य सुख का नियम आड़े नहीं आता। इससे यह जनसामान्य के लिए सुगम हो गई।
लचीलापन व आत्मसात करने की क्षमता हिंदी में अरबी, फारसी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के शब्दों को अपनाने की क्षमता है। इसने इसे समावेशी और आधुनिक बनाया। भले ही बहुत से विद्वान इसे हानिकारक एवं हिंदी की कमजोरी मानते हैं लेकिन हिंदी के लगातार बढ़ने के पीछे इसका सबसे बड़ा गुण है अन्य भाषाओं के शब्दों को अपने अनुसार ढाल लेना एवं उन्हें आत्मसात कर लेना।
साहित्यिक समृद्धि
जहां तक हिंदी साहित्य की बात है तो वीर गाथा कल से लेकर उत्तर आधुनिक काल तक हिंदी में एक से बढ़कर एक साहित्यिक ग्रंथ एवं साहित्यकार दिए हैं । सूरदास कबीरदास तुलसी केशव बिहार जायसी भारतेंदु हरिश्चंद्र सेनापति जैसे हीरों के साथ-साथ प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, अज्ञेय, हरिवंश राय बच्चन जैसे रचनाकार दिए जिन्होंने कविता, उपन्यास, नाटक, कहानी और पत्रकारिता के विविध रूपों में हिंदी ने अद्वितीय योगदान दिया।
जनभाषा
आज के डिजिटल युग में भी अपनी खूबियों के चलते हिंदी जनसंचार की भाषा बन चुकी है। बॉलीवुड और टीवी ने उसे पूरे देश में लोकप्रिय बना दिया। हिंदी फिल्मी गीतों ने इसे भावनाओं की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया। जहां सरकार के कदमों से हिंदी को अधिक बल नहीं मिला वहीं रोजगार एवं बाजार में हिंदी को बिना तक की ही सही राष्ट्रभाषा बना दिया है।
राष्ट्रीय एकता की सूत्र भाषा
हिंदी ने विभिन्न प्रांतों के बीच संपर्क भाषा का कार्य किया। स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी के माध्यम से जनजागरण हुआ, जिसने इसे राष्ट्रीय चेतना की भाषा बना दिया। आज देश के किसी कोने में भी जाएं आपको हिंदी भाषा बोलने लिखने एवं समझने वाले लोग आसानी से मिल जाएंगे वास्तव में ही भाषा के रूप में अकेली हिंदी ही ऐसी है जो भारत को पूरब से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण तक जोड़ने की सामर्थ्य रखती है।
हिंदी के श्रीवृद्धि तत्व
हिंदी की प्रगति आकस्मिक नहीं बल्कि विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और तकनीकी तत्वों के सामूहिक प्रयास का परिणाम है।
शिक्षा और विश्वविद्यालय विश्वविद्यालयों में हिंदी विभागों और शोध संस्थानों की स्थापना हुई। साहित्य अकादमी और केंद्रीय हिंदी संस्थान जैसी संस्थाएँ हिंदी भाषा के विकास में अग्रणी रहीं। आज भारत के अलावा लगभग डेढ़ सौ विश्वविद्यालय हिंदी को अपने पाठ्यक्रम में शामिल किए हुए हैं।
मीडिया और मनोरंजन
आकाशवाणी, दूरदर्शन, समाचार पत्रों और डिजिटल प्लेटफॉर्मों वह टीवी तथा यूट्यूब चैनलों ने हिंदी को व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुँचाया है। आज गर्व के साथ सोशल मीडिया पर हिंदी सामग्री का उपभोग तेजी से बढ़ रहा है।
प्रवासी भारतीय और वैश्विक मंच
विश्व के अनेक देशों में हिंदी भाषी प्रवासी रहते हैं। फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, नेपाल और खाड़ी देशों में हिंदी बोलने वालों की संख्या काफी है। इससे हिंदी का अंतरराष्ट्रीय महत्व बढ़ा।
आर्थिक कारक
हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी भाषा के विकास में सरकार बाजार एवं रोजगार की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विभिन्न कंपनियों ने हिंदी में विज्ञापन और ब्रांडिंग शुरू की है क्योंकि यह उपभोक्ताओं तक सबसे प्रभावी ढंग से पहुँचती है। “हिंदी हार्टलैंड” का महत्व राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से बढ़ा।
प्रौद्योगिकी और इंटरनेट
आज गूगल, यूट्यूब और अन्य प्लेटफॉर्मों पर हिंदी कंटेंट की माँग तेजी से बढ़ी। भाषाई एआई, मशीन अनुवाद और वॉइस असिस्टेंट ने हिंदी को डिजिटल युग में सशक्त बनाया।
आज बेहिचक कहा जा सकता है कि हिंदी ना बेचारी भाषा है, ना बेचारों की भाषा है बल्कि यह भावना एवं विचारों की ऐसी भाषा है जो हृदय एवं मस्तिष्क दोनों के मानकों पर खरी उतरती है।