नयी दिल्ली, लंबे समय से युद्ध जैसी स्थिति का सामना कर रहे अफगानिस्तान की क्रिकेट टीम ने आईसीसी वनडे विश्व कप में तीन पूर्व चैंपियन को हराकर क्रिकेट जगत को उन्हें गंभीरता से लेने का स्पष्ट संदेश दिया, जिसकी गूंज आने वाले वर्षों में भी सुनाई देगी।
अफगानिस्तान ने जब इंग्लैंड को हराया तो उसे मौजूदा विश्व कप का सबसे बड़ा उलटफेर करार दिया गया। कारण साफ था क्योंकि अफगानिस्तान इससे पहले पिछले दो विश्व कप में केवल एक जीत दर्ज कर पाया था और वह भी उसे 2015 में स्कॉटलैंड के खिलाफ मिली थी।
लेकिन मौजूदा विश्व कप में अफगानिस्तान का शानदार प्रदर्शन जारी रहा और उसने शीर्ष टीमों को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर किया। इंग्लैंड के बाद उसने दो अन्य पूर्व चैंपियन पाकिस्तान और श्रीलंका को पटखनी दी और साबित किया कि गत चैंपियन के खिलाफ उसकी जीत महज संयोग नहीं थी।
अफगानिस्तान का बड़ी टीमों को अपनी जद में लेने का अभियान यहीं पर नहीं थमा। उसने पांच बार के चैंपियन आस्ट्रेलिया को भी हार के कगार पर पहुंचा दिया था जबकि दक्षिण अफ्रीका को उस पर जीत के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था।
अफगानिस्तान क्षेत्ररक्षण की कमजोरी और बड़े मौकों पर अनुभव की कमी के कारण सेमीफाइनल में जगह नहीं बना पाया लेकिन उसने 2025 की चैंपियंस ट्रॉफी के लिए क्वालीफाई करके अपने लिए एक और मंच तैयार किया। उसने यह करिश्मा तब दिखाया जबकि तालिबान शासन के कारण पिछले कुछ वर्षों में उसकी तैयारियां प्रभावित हुई थी।
अफगानिस्तान को कुछ मलाल जरूर होंगे, जिनमें ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मैक्सवेल का कैच छोड़ना और बांग्लादेश के खिलाफ बल्लेबाजों की नाकामी भी शामिल है।
ऑस्ट्रेलिया ने 292 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए सात विकेट 91 रन पर गंवा दिए थे। मैक्सवेल जब 33 रन पर थे तब उन्हें जीवनदान मिला जिसका फायदा उठाकर वह दोहरा शतक जड़कर अफगानिस्तान के मुंह से जीत छीनने में सफल रहे।
कहते हैं ‘कैच मैच जीतते हैं’ और अगर उस समय मुजीब उर रहमान ने कैच लपक लिया होता तो कहानी बदल जाती और हो सकता था कि भारत के सामने सेमीफाइनल का प्रतिद्वंदी न्यूजीलैंड की बजाय अफगानिस्तान होता।
गेंदबाजी विशेषकर स्पिन विभाग अफगानिस्तान का मजबूत पक्ष रहा है, जिसमें राशिद खान जैसे विश्वस्तरीय स्पिनर शामिल हैं। बल्लेबाजी उसकी कमजोरी मानी जा रही थी और जब अपने पहले मैच में उसकी टीम बांग्लादेश के खिलाफ केवल 156 रन पर आउट हो गई तो तब किसी को विश्वास भी नहीं रहा होगा कि अफगानिस्तान उलटफेर का चैंपियन बनकर वास्तविक खतरे के रूप में सामने आएगा।
टूर्नामेंट आगे बढ़ने के साथ अफगानिस्तान की बल्लेबाजी में निखार आता गया जिसका प्रभाव परिणाम पर भी पड़ा और उसकी टीम इंग्लैंड, पाकिस्तान और श्रीलंका के अलावा नीदरलैंड को हराकर सेमीफाइनल में पहुंचने की दावेदार बन गई थी।
अफगानिस्तान की तरफ से बल्लेबाजी में इब्राहिम जदरान (376 रन), अजमत उमरजई (353) , रहमत शाह (320) और कप्तान हशमतुल्लाह शाहिदी (310) ने शानदार प्रदर्शन किया। गेंदबाजी में राशिद, मुजीब, मोहम्मद नबी और नूर अहमद जैसे स्पिनरों के अलावा तेज गेंदबाज नवीन उल हक और फजलहक फारूकी ने भी अपनी छाप छोड़ी। उमरजई ने खुद को अदद ऑलराउंडर साबित किया।
भारतीय दिग्गज सचिन तेंदुलकर भी अफगानिस्तान के प्रदर्शन से बेहद प्रभावित थे। अफगानिस्तान के खिलाड़ियों को उनसे कुछ सीख भी मिली जिसका असर तुरंत ही देखने को मिला। इब्राहिम जदरान ने इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ नाबाद 129 रन बनाए और विश्व कप में शतक जड़ने वाले अफगानिस्तान के पहले बल्लेबाज बने। अजमत उमरजई दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ केवल तीन रन से शतक से चूक गए थे।
अफगानिस्तान की विशेषता यह रही कि उसने किसी भी मैच में आसानी से हार नहीं मानी। उसके खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन में निरंतरता बनाए रखी और विरोधी टीम पर हावी होने की अपनी क्षमता का खुलकर परिचय दिया।
विश्व कप में अपने प्रदर्शन से अफगानिस्तान ने यह तो सुनिश्चित कर दिया कि भविष्य में कोई भी टीम उन्हें हल्के से लेने की गलती नहीं करेगी। अफगानिस्तान की वर्तमान टीम के 15 में से 11 खिलाड़ियों की उम्र 25 साल से कम है और अगर उन्हें पर्याप्त मौके मिलते रहे तो आने वाले वर्षों में उसकी टीम क्रिकेट जगत की शीर्ष टीमों में भी शामिल हो सकती है।
कप्तान हशमतुल्लाह शाहिदी ने भी टीम के आखिरी लीग मैच के बाद कहा था,‘‘हमने दुनिया को अच्छा संदेश पहुंचा दिया है। हमने बड़ी टीमों के खिलाफ कड़ा मुकाबला किया और भले ही हम हार गए हों लेकिन हमने आखिर तक हार नहीं मानी। हमें अपनी कुछ गलतियों से सीख मिली जिससे भविष्य में हम अपने खेल में सुधार करने की कोशिश करेंगे।’’