दीपावली विशेष – दीपावली मनायें, विस्फोट नहीं

दशहरे के बाद दीपावली वर्ष का लगभग अन्तिम त्यौहार होता है। यह सबसे ज्यादा आकर्षक और मोहक त्यौहार है जब सारा जहान जगमगा उठता है। आतिशबाजियों का मोहक नजारा कितना आनंद देता है पर क्या आज दीपावली वाकई सही ढंग से मनायी जाती है? कितना अंतर आ गया है पुराने समय की दीपावली और आज की दीपावली में।


हर दीपावली पर कुछ नया ही मिलता है, इतना अलग कि पिछली दीपावली पर जिसके बारे में सोचा भी न था, वह मिल गया। आखिर यह क्या है? निश्चय ही विस्फोटक। प्रत्येक वर्ष दीवाली अपने साथ तरह-तरह के नये विस्फोटक उत्पन्न करती है पर क्या हमारी दीवाली विस्फोटक का ही पर्याय है। दीवाली तो दीपों से किये गये प्रकाश का त्यौहार है जो अंधेरे में उजाले का आगमन दर्शाती है जो अंधेरे को दूर कर उमंगों भरी रोशनी लाती है मगर आज दीवाली का मतलब ही बदल चुका है। दीवाली अतिशबाजियों का दिन बन गया है, वह भी ऐसी आतिशबाजियों का जो सिर्फ आपको ही नहीं बल्कि अन्यों को भी नुकसान पहुंचाती हैं।
फुलझड़ियों के जमाने लद गये हैं। वे आजकल छोटे-छोटे बच्चों के लिए ही सही समझी जाती हैं या डरपोक व्यक्तियों के लिए उपयुक्त समझी जाती हैं। तरह-तरह के बम आजकल शान बन चुके हैं। जो जितने ज्यादा ताकतवर बम विस्फोट करेगा, वह ही दम रखता है।


पटाखों के नाम पर ये मोटे-मोटे बारूद से भरे बम बेचे जाते हैं जिन्हें खरीदने वाले भी अपनी शान समझते हैं और बेचने वाले भी डरते नहीं जबकि अक्सर होता है कि एक पटाखे में आग लगते ही दुकान में रखे सारे पटाखे ऐसा विस्फोट करते हैं कि सामान तो सामान, बेचने खरीदने वालों की जान भी चली जाती है।


पटाखे खरीदने वाले यह भी नहीं सोचते कि आखिर कितने पटाखे लेने चाहिए। कोई तो सीमा होनी चाहिए पटाखों पर रूपया बर्बाद करने की। पटाखों की बढ़ती कीमत के बावजूद भी इन्हें खरीदने वालों की संख्या बढ़ रही है। जितना महंगा पटाखा या बम, उतना ज्यादा बिकेगा। कुछ लोगों का यही स्टैंडर्ड है। यह फिजूलखर्ची हर वर्ष बढ़ रही है। लोग यह नहीं समझते कि विस्फोट तो आतंकवादी करते ही रहते हैं। कम से कम विस्फोटकों से वे अपनी दीवाली और अपना घर तो बचाकर रखें।