शिमला, 11 सितंबर (भाषा) हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने शिमला शहर में यातायात की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि शहर उत्तराखंड के मसूरी की तरह ‘जैकेट पहनकर और छाता लेकर चलने’ की अपनी संस्कृति को खो रहा है।
अदालत ने साथ ही शिमला के जीर्णोद्धार की आवश्यकता पर भी बल दिया। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायमूर्ति रंजन शर्मा की खंडपीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
खंडपीठ ने हाल ही में राज्य के गृह सचिव व शिमला के पुलिस अधीक्षक को प्रतिबंधित सड़कों के लिए जारी किए गए वाहन पास पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने और पास धारकों के मानदंडों व श्रेणियों के बारे में विस्तार से बताने का निर्देश दिया था।
अदालत ने कहा कि शिल्ली चौक/शिमला क्लब से छोटा शिमला तक प्रतिबंधित मार्ग के लिए कई वाहन पास जारी किए गए, जिससे पैदल यात्रियों का आना-जाना मुश्किल हो गया।
मामले की अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को होगी।
पीठ ने जनहित याचिका का दायरा बढ़ाते हुए कहा कि ‘रॉक सी’ होटल से ‘विलो बैंक’ तक मॉल रोड के प्रतिबंधित हिस्से पर वाहन खड़े किए जाते हैं।
अदालत ने कहा, “भले ही वाहनों को यात्रियों को छोड़ने की अनुमति दी गई हो और ‘पास’ भी हों लेकिन इस बात पर कोई सवाल ही नहीं उठाता कि ऐसी अनुमति का इस्तेमाल रात भर वाहनों को वहां खड़ा करने के लिए किया जा सकता है और इसे सिर्फ और सिर्फ ‘ड्रॉप जोन’ ही माना जा सकता है।”
याचिकाकर्ता संभव भसीन ने सेना प्रशिक्षण कमान से राम बाजार तक सार्वजनिक सड़क पर स्वच्छता बनाए रखने और कूड़ा-कचरा हटाने के साथ-साथ क्षेत्र में दोपहिया वाहनों की पार्किंग के लिए उचित दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध करते हुए जनहित याचिका दायर की थी।
अदालत ने पाया कि याचिका के साथ संलग्न तस्वीरों से पता चलता है कि स्थिति बेहद खराब है क्योंकि सड़कों पर खड़े दोपहिया और चार पहिया वाहनों ने पैदल चलने वालों का रास्ता अवरुद्ध कर दिया है।
पीठ ने कहा कि स्थानीय निवासी वाहनों के पीछे कूड़ा-कचरा डाल देते हैं और सफाई न के बराबर होती है।
अदालत ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि नगर निगम द्वारा पर्याप्त शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा रहा है।”