दिल्ली में प्रदूषण लाइलाज आखिर कब तक?

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दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते मौसमी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये साल दर साल बहुतेरे उपाय किये गए, लेकिन जानलेवा प्रदूषण का मर्ज लगातार बढ़ता ही चला गया। सच कहूं तो यह किसी लाइलाज बीमारी जैसा दिखाई पड़ रहा है। ऐसे में सबसे पहला सवाल यह कि आखिर महज एक सप्ताह में ही हालात इतने कैसे और क्यों बिगड़ गए? आखिर देश की राजधानी नई दिल्ली और उसके आसपास के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर में निरंतर प्रदूषण बढ़ते रहने की क्या वजहें हैं और उन्हें कैसे दूर किया जाए कि भद्रलोक दिल्ली कभी गैसचैंबर नहीं बने जैसा कि दिवाली से कुछ पहले और कुछ बाद तक दृष्टिगोचर होता आया है।

 

आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि पिछले कुछ दिनों में राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता ही जा रहा है। गुरुवार को एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई का स्तर 392 था, जो शुक्रवार को बढ़कर 504 पर चला गया। कहने का तातपर्य यह कि दिल्ली की हवा ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच चुकी है। वहीं, सबसे खराब हालत यूपी से सटे आनंद विहार की है, जहां एक्यूआई का स्तर 865 पर आ गया है। समझा जाता है कि यूपी के साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र साइट 4 आदि और नोएडा के औद्योगिक एरिया 62-63 आदि के करीब है, जिसके चलते यहां की स्थिति इतनी बिगड़ जाती है।

 

जानकारों के मुताबिक, राजधानी दिल्ली सहित एनसीआर में अगले कुछ दिनों तक राहत मिलने की कतई उम्मीद नहीं है क्योंकि दिल्ली के लिए एयर क्वालिटी अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (एक्यूईडब्ल्यूएस) ने बुलेटिन में बताया कि अगले छह दिनों में भी एयर क्वालिटी ‘बहुत खराब’ श्रेणी में रहने की संभावना है। लिहाजा, विषैली हवा से संघर्षरत दिल्ली व उसके आसपास के इलाकों को बचाने के लिए पिछले दो दिनों में 10 आपात कदम उठाए गए हैं। सवाल है कि जब दिल्ली में वायु प्रदूषण से हालात गंभीर हैं तो फिर कोई कोई ठोस प्लान और उसका असर जमीन पर आखिर क्यों नहीं दिखाई दे रहा है? आखिर में हर साल दिल्ली कैसे गैस चैंबर बन जाती है और इंद्रलोक का अभिजात्य वर्ग सिर्फ टुकुर टुकुर ताकता भर रह जाता है।

 

क्या दिल्ली की खराब एयर क्वालिटी महज ‘रेड लाइट ऑन-गाड़ी ऑफ’ कैंपेन से सुधर जाएगी या फिर दिल्ली को दमघोंटू हवा से निजात दिलाने के लिए कतिपय पाबंदियां स्थाई रूप से लगाई जाएंगी। क्योंकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक, एक्यूआई का स्तर जब 401 से 500 के बीच रहता है तो उसे ‘गंभीर’ श्रेणी का माना जाता है। क्योंकि इतना ज्यादा प्रदूषण होने पर स्वस्थ लोगों की भी तबियत बिगड़ सकती है। वहीं, जो लोग किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे हैं, उन पर भी काफी गंभीर असर हो सकता है।

 

लोगों के दिलोदिमाग में रह रह कर ये सवाल उठता है कि आखिर में अचानक दिल्ली व उसके आसपास के इलाकों की हवा खराब कैसे हो गई? क्या इस साल अक्टूबर में बारिश का नहीं होना इसकी वजह है या फिर पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं के बढ़ने से ऐसे अप्रत्याशित हालात उतपन्न हुए। क्योंकि मौसम विज्ञानियों का कहना है कि इस वर्ष मॉनसून खत्म होने के बाद बारिश नहीं होने के चलते हवा में प्रदूषणकारी तत्व जमा हो गए हैं। आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में अक्टूबर 2022 में 129 मिमी बारिश हुई थी, जबकि अक्टूबर 2021 में 123 मिमी बारिश हुई थी। वहीं, इस साल अक्टूबर में महज 5.4 मिमी बारिश ही हुई है, जिससे प्रदूषण का बढ़ना स्वाभाविक है। ऐसे में  प्रकाश व आतिशबाजी पर्व दीपावली के दिन प्रदूषण का स्तर क्या होगा, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

 

वहीं, कमिशन ऑन एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम) के मुताबिक, इस वर्ष 15 सितंबर से 29 अक्टूबर के बीच पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल की तुलना में लगभग आधी हो गई थीं लेकिन इन राज्यों में इसके बाद पराली जलाने की घटनाएं अचानक बढ़ गईं जिसके पश्चात 30 अक्टूबर को 1852, 31 अक्टूबर 2,901 और 1 नवंबर को 2,386 पराली जलाने की घटनाएं हुईं। यही वजह है कि गुरुवार को दिल्ली की हवा में पीएम2.5 बढ़ाने में पराली की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत थी, जो शुक्रवार को बढ़कर 35 प्रतिशत के पार हो गई। इससे स्पष्ट रूप से मालूम होता है कि पराली जलने से ही दिल्ली की हवा खराब हो रही है, जो सार्वजनिक चिंता का विषय है। चूंकि दिल्ली-पंजाब में आप की सरकार है और यूपी-हरियाणा में भाजपा और एनडीए गठबंधन की सरकार है। इसलिए उन्हें संयुक्त रूप से अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए और उसका निर्वहन करना चाहिए। यही जनहित में है।

 

वहीं, सर्वाधिक चिंता का पहलू यह भी है कि आखिर में हरेक साल यही कहानी क्यों दुहराई जा रही है? क्या अब दिल्ली व उसके आसपास के इलाकों में विषाक्त हवा में सांस लेना अब ‘न्यू नॉर्मल’ बन गया है। क्योंकि अमूमन  दिल्ली-एनसीआर में अक्टूबर से हवा खराब होनी शुरू हो जाती है, जबकि नवंबर, दिसंबर और जनवरी में ये पीक आवर पर होती है। इस अवधि में केवल दिल्ली ही नहीं, बल्कि एनसीआर समेत पड़ोसी राज्यों, यथा- हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है।

 

पर्यावरण वैज्ञानिकों का मानना है कि वायु प्रदूषण की कोई एक वजह नहीं है, बल्कि इसकी कई सारी वजहें हैं। आपको पता है कि दिल्ली का न तो अपना मौसम है और न ही अपनी पानी है। पहाड़ों पर बर्फबारी होते ही यहां ठंडक पड़ने लगती है, जबकि राजस्थान के रेगिस्तान के तपते ही यहां भयंकर लू चलने लगती है। वहीं, दिल्ली के तराई वाले मैदानी इलाके ही यहां पर हवा की गति, दिशा, नमी, तापमान और दबाव पैदा करते हैं, जो अक्सर वायु प्रदूषण के स्तर को प्रभावित करते हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि जब अगस्त 2018 में देश की एक संसदीय समिति ने राज्यसभा में ‘दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की स्थिति’ पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट पेश की थी, तो उसमें वायु प्रदूषण बढ़ाने वाले कारणों के बारे में सविस्तार बताया गया था जिसके मुताबिक, गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ, निर्माण कार्यों (कंस्ट्रक्शन), उद्योगों (इंडस्ट्रीज) से निकलने वाला धुंआ, ठोस कचरा जलाने पर निकलने वाला धुंआ और सड़कों पर जमी धूल की वजह से प्रदूषण बढ़ने का जिक्र किया गया था।

 

ऐसे में यहां पर यह जानना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर में दिल्ली व इसके आसपास के इलाकों में कब, कैसे और कितना प्रदूषण बढ़ता है और उसे नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? पहला, सर्दियों में गाड़ियों से निकलने वाले धुंए की वजह से हवा में पीएम2.5 की मात्रा 25 प्रतिशत और गर्मियों में 9 प्रतिशत रहती है। जिसमें सबसे ज्यादा 46 प्रतिशत योगदान ट्रकों से निकलने वाले धुंए का होता है। वहीं, 33 प्रतिशत दोपहिया वाहन, 10 प्रतिशत कारों और 5 प्रतिशत बसों से निकलने वाले धुंए का योगदान अधिक होता है, जिस पर लगाम लगाने के लिए गम्भीरता पूर्वक विचार करना होगा।

 

वहीं, संसदीय समिति ने 2015 में हुई आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन के हवाले से बताया गया था कि सड़कों पर जमी धूल-मिट्टी भी पीएम10 और पीएम2.5 की मात्रा बढ़ाते हैं। वहीं, सर्दियों में हवा में पीएम10 की मात्रा बढ़ाने में 14.4 प्रतिशत और पीएम2.5 की मात्रा बढ़ाने में 4.3 प्रतिशत योगदान सड़कों पर जमी धूल-मिट्टी का होता है।

वहीं, निर्माण कार्यों (कंस्ट्रक्शन) से जुड़े काम से भी वायु प्रदूषण बढ़ता है। सर्दियों में जितना पीएम10 हवा में पाया जाता है, उसमें से 3.1 प्रतिशत कंस्ट्रक्शन से जुड़े काम के कारण होता है। इसी तरह 1.5 प्रतिशत पीएम 2.5 कंस्ट्रक्शन के कारण होता है।

 

वहीं, दिल्ली में गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में लैंडफिल साइट है, जहां हर दिन साढ़े 5 हजार टन कचरा डाला जाता है। मसलन, कुछ सालों से तीनों लैंडफिल साइट पर आगजनी की घटनाएं होती रहीं हैं। इससे जहरीली गैसें निकलती हैं जो प्रदूषण बढ़ाती हैं। वहीं, दिल्ली और आसपास के इलाकों में पटाखों की वजह से भी सर्दियों में प्रदूषण बढ़ जाता है। दिल्ली में पटाखों पर प्रतिबंध होने के बावजूद लोग पटाखे जलाते हैं। चूंकि सस्ते पटाखों से जहरीली गैसें निकलती हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, पिछले साल दिवाली के अगले दिन दिल्ली में एक्यूआई का स्तर 302 पर पहुंच गया था।

 

वहीं, हर साल अक्टूबर-नवंबर में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान पराली जलाते हैं। पराली जलाने से हवा में पीएम10 और पीएम2.5 की मात्रा बढ़ जाती है। हवा में पीएम10 की मात्रा बढ़ाने में पराली का 17 प्रतिशत और पीएम 2.5 बढ़ाने में 26 प्रतिशत का योगदान रहता है।

 

सवाल है कि आखिर जनस्वास्थ्य के लिए खराब हवा कितनी खतरनाक है? वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। एक अध्ययन के मुताबिक, 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 16.7 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल खराब हवा की वजह से 70 लाख लोग बेमौत मारे जाते हैं। इतना ही नहीं, दुनिया की 99 फीसदी आबादी खराब हवा में सांस ले रही है। वहीं, एक रिपोर्ट ये भी बताती है कि खराब हवा की वजह से उम्र भी कम हो जाती है। दुनिया में ये एवरेज 2.2 साल का है। जबकि, दिल्ली में 9.7 साल और उत्तर प्रदेश में 9.5 साल का है।

 

कहने का तातपर्य यह कि यदि आप दिल्ली में रहते हैं तो खराब हवा की वजह से आपकी उम्र में 9 साल 7 महीने की कमी आ सकती है। इसके अलावा, 2020 की एक रिपोर्ट बताती है कि 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 1.16 लाख नवजातों की मौत हो गई थी। यानी, ये बच्चे एक महीने भी जी नहीं पाए थे। ये आंकड़ा दुनिया में सबसे ज्यादा था। भारत के बाद नाइजीरिया था, जहां करीब 68 हजार नवजातों की मौत हुई थी।

 

सवाल यह भी है कि आखिर में लोगों को कैसे पता चलती है कि कोई हवा खराब है या फिर अच्छी? दरअसल, इसे एयर क्वालिटी इंडेक्स से मापा जाता है। जब एक्यूआई का स्तर 0 से 50 के बीच रहता है तो उसे ‘अच्छा’ माना जाता है। वहीं, 51 से 100 के बीच रहने पर ‘संतोषजनक’, 101 से 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 से 300 के बीच ‘खराब’, 301 से 400 के बीच ‘बहुत खराब’ और 401 से 500 के बीच रहने पर ‘गंभीर’ माना जाता है।

 

मसलन, जैसे-जैसे एक्यूआई का स्तर बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे सेहत पर इसका उल्टा असर भी पड़ने लगता है। एक्यूआई का स्तर जब ‘मध्यम’ श्रेणी में आता है, तो अस्थमा या फेफड़े और दिल की बीमारी से जूझ रहे लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। वहीं, जब ये ‘गंभीर’ की श्रेणी में चला जाता है तो बीमारियों से जूझ रहे लोग ही नहीं, स्वस्थ लोगों को भी सांस लेने में परेशानी आने लगती है।

 

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने 12 तत्वों की एक सूची बनाई है, जो वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं। इनमें पीएम10, पीएम2.5, कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ), सल्फर डाईऑक्साइड (एसक्यू2), नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (एनओ2), अमोनिया (एनएच3), ग्राउंड लेवल ओजोन (ओ3), लीड (सीसा), आर्सेनिक, निकेल, बेन्जेन और बेन्जो पायरिन शामिल हैं। हवा में जब इनकी मात्रा बढ़ती है तो वायु प्रदूषण बढ़ता है। इनमें सबसे खतरनाक पीएम2.5 होता है, क्योंकि ये हमारे बालों से भी 100 गुना छोटा होता है। पीएम2.5 का मतलब है 2.5 माइक्रॉन का कण। माइक्रॉन यानी 1 मीटर का 10 लाखवां हिस्सा।

 

बताया जाता है कि हवा में जब इन कणों की मात्रा बढ़ जाती है तो दृश्यता प्रभावित होती है। ये इतने छोटे होते हैं कि हमारे शरीर में जाकर खून में घुल जाते हैं। इससे अस्थमा और सांस लेने में दिक्कत होती है। आलम है कि अभी सर्दियां आई भी नहीं कि देश की राजधानी दिल्ली का दम फिर फूलने लगा, हवा जहरीली होने लगी और दिल्ली गैस चैम्बर बनी हुई है। सवाल फिर वही कि आखिर कबतक?