अयोध्या स्थित सप्तहरियों के मंदिरों में धर्महरि के नाम से विख्यात श्री चित्रगुप्त जी महाराज का मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना व महत्वपूर्ण इस मंदिर की व्यवस्था लगभग एक सौ साल से कायस्थ धर्मसभा अयोध्या फैजाबाद द्वारा की जा रही है, जहां पर प्रतिवर्ष यमद्वितीया के अवसर पर श्री चित्रगुप्त जी की पूजन का भव्य समारोह आयोजित होता है। इस मंदिर में देश के कोने-कोने से कायस्थजन मंदिर प्रांगण में पहुंचकर श्रीचित्रगुप्त जी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। अयोध्या में कार्तिक मास में निवास करने वाले कल्प वासियों के लिए यह मंदिर नियमित पूजा-पाठ का स्थान बन गया है, जहां यह कल्पवासी पूरे एक माह तक भगवान श्री के समक्ष दीपदान करते हैं।
भगवान चित्रगुप्त का आविर्भाव इस धरती पर तथा उनकी ख्याति यमदेवता के मुख्य सहायक पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले देवता के रूप में है। माना जाता है कि समस्त मानवों के कर्मों का लेखा-जोखा भगवान श्री चित्रगुप्त जी ही रखते हैं। कायस्थ समाज प्रारंभ से बहुत होशियार एवं जागृत समाज माना जाता रहा है। शताब्दियों से विभिन्न नामों से इस समाज के लोग भू-क्षेत्र की देखरेख का काम करते रहे हैं। बदलते सामाजिक परिवेश में भूलेख निरीक्षक पद से आगे बढ़ते हुए आज इस समाज के लोग समाज के विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित होकर समाज के गौरव में वृद्धि कर रहे हैं।
यही कारण है कि आज भी कायस्थ समाज के लोग प्रशासनिक पदों पर आगे दिखाई देते हैं। साहित्यिक प्रमाणों से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारंभ में कायस्थ शब्द कर्मोप्राधिक था तथा इस पद का प्रयोग राजकर्मचारियों के लिए किया जाता था, वह प्रारंभ में जातिपरक नहीं होता था।
भगवान चित्रगुप्त के आविर्भाव के बारे में कहा जाता है कि समस्त प्राणियों के कर्मों का लेखा-जोखा रखने हेतु प्रजापति ब्रह्मा ने अपने अन्तस्तल में भगवान श्री विष्णु का ध्यान करके हाथ में कलम-दवात लिए कार्तिक शुक्ल द्वितीया को जिस महापुरुष की रचना की उसे समयानुसार चित्रगुप्त की संज्ञा दी गई। श्री चित्रगुप्त कायस्थों के आदिपुरुष माने जाते हैं। भविष्यपुराण में श्री चित्रगुप्त को समुद्र से लक्ष्मी जी के साथ प्रगट हुआ बताया गया है। ‘श्रिया सहमुत्पन्न मुद्रमन्थोद भाव। चित्रगुप्त! महावाहो ममाद्यो वरदो।।‘ श्री चित्रगुप्त जी की उत्पत्ति एवं लेखनकला की स्थापना एक ही युग में हुई है। उन्होंने लेखनकला के प्रकाश द्वारा मानवजाति का कल्याण कर उसे सतत प्रगति के पथ पर अग्रसर किया है।
श्री चित्रगुप्त जी एक महान प्रशासक, समाजरक्षक तथा ब्राह्मण और क्षत्रियधर्म के ज्ञाता और न्यायमूर्ति थे। सम्पूर्ण कलाओं से युक्त श्री चित्रगुप्त जी अवतारी शक्तियों में से एक थे, जिन्होंने ब्राहण तथा क्षात्रगुणों का समन्वय करके समाज को सुव्यवस्थित किया।