हायर एजुकेशन से आपकी समझदारी का कोई लेना देना नहीं होता है.. आपकी डिग्री आपकी समझदारी तय नहीं करती है. किसी व्यक्ति ने अगर IIT से कंप्यूटर टेक्नोलॉजी की डिग्री ली है तो वो बस कंप्यूटर के बारे में ही जानेगा, उसे आप कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का ज्ञाता कह सकते हैं, समझदार या इंटेलिजेंट नहीं. ये एक आम भ्रम है हमारा कि हम साक्षरता को ‘इंटेलिजेंस” समझते हैं
कोई भी वैज्ञानिक खोज या कुछ भी रचनात्मक करने के लिए आपको किसी हायर एजुकेशन की ज़रूरत नहीं होती है.. यहाँ तक कि बहुत ज्यादा एजुकेशन और डिग्री आपकी रचनात्मकता और इंटेलिजेंस ख़त्म कर देती है.. संसार के ज़्यादातर वैज्ञानिक या कुछ भी बड़ा करने वाले लोग बड़ी बड़ी डिग्री धारी नहीं थे और आगे भी नहीं होंगे
इसलिए अगर आप ये कहें कि कोई भी एक इंसानी नस्ल बहुत अधिक साक्षर है इसलिए वो आगे बढ़ रही है, ये बात ठीक नहीं है.. इस समय साउथ कोरिया दुनिया का सबसे अधिक साक्षर देश है.. वहां एक भी विज्ञान का नोबेल नहीं मिला है किसी को अभी तक… जो लोग ये कहते हैं कि भारतियों को अच्छी एजुकेशन मिले तो वो भी वैज्ञानिक बन जायेंगे, ये भी ठीक नहीं है.. एक अमेरिका देश है, जहाँ चालीस लाख हिन्दू रहते हैं.. करीब इतने ही मुसलमान रहते हैं.. और सत्तर लाख के करीब यहूदी.. इन सबको अमेरिका के हर नागरिक अधिकार मिले हुवे हैं.. हर किसी को पढने और आगे बढ़ने का मौलिक अधिकार मिला है मगर कितने अमेरिकन मुसलमान और हिन्दू वैज्ञानिक बन गए.. या उन्होंने क्या कुछ नया रच दिया? वहीँ एक अमरीकी यहूदी ने फेसबुक बनाया, एक ने गूगल बनाया और आइन्स्टाइन समेत सैकड़ों अमेरिकी यहूदी वैज्ञानिक हैं
क्रांतिकारी यहाँ कहते मिलेंगे आपको कि हमको आरक्षण मिल जाए और हम साक्षर हो जाएँ तो हम भी वैज्ञानिक बन जायेंगे.. नहीं.. मैं इस बात को नहीं मानता.. आप अच्छे नौकर बन जायेंगे साक्षरता से मगर वैज्ञानिक, चित्रकार, दार्शनिक, अभिनेता, संगीतकार नहीं.. रचनात्मक होना एकदम अलग चीज़ है.. ये उन्नत मानसिक नस्ल की प्रजाति या ऐसा ही कुछ होना होता है.. जो मानव नस्लें हर तरह से पीछे रह गयी हैं, उनके भीतर थोक भाव में वैज्ञानिक पैदा होने में, हजारों साल या कई सदियों की समझ को विकसित होना होता है.. या फिर उन्हें मानव की अलग अलग समझदार नस्लों के साथ “संसर्ग” कर अच्छी समझ वाली नस्लें उत्पन्न करनी होती है